UTTARAKHAND

स्वदेशी चिंतन ग्राम आधारित चिंतन

ग्राम आधारित उद्योगों को मिले बढ़ावा 

भारत में लोकल को वोकल और ग्लोबल बनाने के लिए स्वदेशी उत्पादों की होगी ई-मार्केटिंग 

कमल किशोर डुकलान
पश्चिम के चिंतन और भारतीय चिंतन में अधिक अंतर भोगवादी का है। पश्चिम की मान्यता के दुनिया में उपभोग के लिए व्यक्ति-केंद्रित विकास की अवधारणाएं है। जबकि भारत में ठीक इसके विपरीत घटक-व्यक्ति , परिवार , समाज , राष्ट्र और सृष्टि के आधार पर विकास की अवधारणाएं पांच मापदंडों का निर्धारण करती है। भारतीय चिंतन में व्यक्ति चिंतन के साथ समाज और आध्यात्मिक चिंतन का समावेश है। यहाँ समाज परस्पर एक दूसरे की चिंता करता है ,जबकि पश्चिम का चिंतन ठीक इसके बिल्कुल विपरीत है। ”
भारत में महिलाओं रोजगार के क्षेत्र में पुरुषों की अपेक्षा प्रतिशत बहुत कम है। मानव की उपभोग्य वृत्ति के कारण पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है, जिस कारण प्रकृति,वन्य जीव एवं मानव को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। पर्यावरण असंतुलन के कारण हो रहा ऋतु परिवर्तन चिंता का विषय है। हमें प्रकृति प्रदत्त सभी संसाधनों का संरक्षण करना चाहिए। स्वदेशी का चिंतन करते हुए हमें ग्राम आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। महात्मा गांधी जी के स्वदेशी चिंतन के अनुसार हमें सबसे नजदीक जो चीजें उपलब्ध है ,उसका प्रयोग करना चाहिए। वर्तमान समय में मुद्रा उद्योग,स्टार्टअप,आयुष्मान जैसी भारत सरकार की जो सम्पूर्ण देशभर में चल रही हैं, वे सभी योजनाएं व्यक्ति एवं समाज केंद्रित बनाई गई हैं।
वर्तमान भारत सरकार का नारी सशक्तिकरण के संकल्प का प्रभाव समाज के सभी क्षेत्रों में मातृशक्ति की उपलब्धियों के रूप में देखा जा रहा है। आने वाले समय में भारत के शहरी अथवा ग्रामीण सभी क्षेत्रों में महिलाओं का लघु और सूक्ष्म उद्योगों में उत्पादन के प्रयास सार्थक होंगे। वर्तमान समय में कोरोना संकट से भारत सहित विश्व की जो हालत है। उससे महिलाओं के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता और विकास का नये रास्ते खुलने की सम्भावनाएं बलवती होती दिखाई दे रही हैं। आज सरकार महिलाओं के समानांतर समाज के साथ है। देश में खादी, दस्तकारी और हस्तशिल्प की स्वदेशी व्यवस्था को फिर से बढ़ाने का यह उपयुक्त अवसर है। सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के सम्पूर्ण मार्ग बनाते हैं। ताकि हम अपना स्वनिर्मित काम बढ़ायें। वैश्विक हाथों से बना सामान हाथों हाथ लिया जाता है। यह समय इसके साथ अनुकूलन करने का है।
महिला आबादी के अनुसार मातृशक्ति को अर्थव्यवस्था से जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए। भारत में लोकल को वोकल और ग्लोबल बनाने के लिए स्वदेशी उत्पादों का ई-मार्केट भी शुरू किया जा सकता है।

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