देहरादून। उत्तराखंड के कुछ केन्द्रीय विभाग भी नियमों और कानूनों के नाम पर बेरोजगारों का शोषण कर रहे हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भारतीय वन्यजीव संस्थान है। जहां वर्षों से संविदा पर काम कर रहे कर्मचारियों का दोहन और शोषण दोनों हो रहा है। पिछले दिनों संस्थान में एक ऐसा घोटाला हुआ है,जिसे भर्ती घोटाले की संज्ञा दी जाए तो अतिउक्ति नहीं होगी।
भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा दिसम्बर 2015 में 11 लिपिकीय भर्तियां निकाली गई,जो कुछ खास लोगों को समायोजित करने के लिए निकाली गई होगी। ऐसा उनके प्रयासों से लगता है। वित्त मंत्रालय के शासनादेश के अनुसार किसी प्रमोशन-सेवानिवृत्ति आदि के उपरांत खाली कोई भी रिक्ति एक वर्ष के अन्दर ही भरनी होती है अन्यथा वह रिक्त खत्मध्अबोलिश मानी जाती है। परन्तु संस्थान में पिछले 10 वर्षों में बनी रिक्तियां अब तक नहीं भरी गई थी और दिसंम्बर 2015 में रिक्ति जारी कर दी गई, जो शासनादेश की अवहेलना तो है ही इसके लिए वित्त मंत्रालय से आवश्यक स्वीति नहीं ली गई।
सूत्रों की माने तो भारतीय वन्यजीव संस्थान में गु्रप-सी (क्लैरिकल) के कुल स्वीकृत पद 07 हैं, इनमें से 1 भरा हुआ तथा 6 रिक्त हैं,6 पदों के सापेक्ष संस्थान 11 रिक्तियों पर भर्ती कर रहा है,जो अपने आप में किसी बड़े भ्रष्टाचार का संकेत देता है। पता चला है कि संस्थान ने कुछ पद स्टेनोग्राफ र से पदावनत कर ( गु्रप-सी ) लिपिकीय में कर भरने हेतु संचालक मंडल से अनुमति मांगी गई। जिस पर उक्त पदों के लिए अस्थायी प्रबंधन करने क ी स्वीकृति दी गई थी। जिसे संस्थान के कुछ अधिकारियों ने नजरंदाज करते हुए नियमित भर्ती शुरू कर दी,जो नियमों के विरुद्घ है। साथ ही संचालक मंडल किसी पद को बदलने के लिए केवल अनुमोदित कर सकती है, स्वीकृति नहीं दे सकता। स्वीकृति देने का अधिकार सिर्फ मंत्रालय का है। इसी प्रकार कुछ पद प्रदोन्नत द्वारा रिक्त हुए थे,जिसे संस्थान ने भरना शुरू कर दिया है,जबकि प्रदोन्नत के प्रकरण में एक याचिका द्वारा उसे चुनौती दी गई है।
इतना ही नहीं संस्थान ने प्रदोन्नत आदेश में भी लिखा है कि न्यायालय के आदेश बाद आपकी वरिष्ठता प्रभावित हो सकती है। इसके बाद भी संस्थान ने इन प्रोन्नतियों से रिक्त हुए चार पदों को भरने हेतु विज्ञापित कर दिया। नियमानुसार न्यायालय में याचिका के लंबित रहने तक इन पर भर्ती नहीं की जा सकती। इसी प्रकार संस्थान द्वारा अपने कर्मचारियों को गे्रच्युटी भी नहीं दी जा रही है। भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के नियमानुसार संविदाकर्मी भी नौकरी छोडने के उपरान्त गे्रच्युटी के हकदार होते हैं,परन्तु लगता है कि केन्द्र सरकार का यह प्रतिष्ठान भारतीय वन्यजीव संस्थान भारत सरकार के इस कानून का पुरजोर विरोधी है। कईं व्यक्ति जो संस्थान छोडक़र जा चुके हैं, उनके बार-बार आग्रह के बाद भी संस्थान उन्हें उनकी ग्रेच्युटी नहीं दे रहा है। बताया जाता है कि इस संबंध में संस्थान ने अपने एडवोकेट से सलाह भी ली है, एवं एडवोकेट के द्वारा भी अपनी सलाह में यही कहा गया है कि संविदाकर्मी भी ग्रेच्युटी का हकदार है फि र भी संस्थान ग्रेच्युटी देने के मामले में टाल-मटोल का रवैया अपना रहा है,जो किसी भ्रष्टाचार से कम नहीं है।
इस संदर्भ में भारतीय वन्यजीव संस्थान के निदेशक डा. वी.वी. माथुर का कहना है कि कर्मचारी कुछ मामलों में न्यायालय गए हैं। जहां तक भर्ती वाली बात है रिक्ति निकाली गई थी,लेकिन कोई भर्ती नहीं हुई। ऐसे में किसी घोटाले का प्रश्न नहीं बनता। जहां तक कर्मचारियों के ईपीएफ का प्रकरण है। इस प्रकरण पर विभाग द्वारा जांच की जा रही है। यदि कर्मचारियों को ईपीएफ दिया जाना वाजिब होगा तो बोर्ड उन्हें ईपीएफ देगा। हम कर्मचारियों के विरोधी नहीं हैं। यदि उनकी कोई उचित मंाग है तो उसे पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। डा$ वी$वी$ माथुर का कहना है कि भारतीय वन्यजीव संस्थान केन्द्रीय नियमों कानूनों से संचालित है पर हम हर कानून का सम्मान करते हैं।