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चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में आख़िर कब तक जाएंगी और कितनी जानें

अधिकांश पर्वतीय इलाकों की जीती जागती यही तस्वीर है यहां का यही यथार्थ है यहां की यही है पीड़ा 

इस तरह की घटनाओं के बाद भी इनके कानों में यहाँ की माँ बहनों और बेटियों की कराह आखिर कब तक पहुंचेगी ? 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
उत्तरकाशी :  सुदूर पर्वतीय जिले उत्तरकाशी के मोरी विकास खंड के सुदूरवर्ती गांव गंगाड़ की प्रियंका प्रसव पीड़ा से तड़पती रही। सड़क के न होने के कारण ग्रामीणों ने कई किलोमीटर इसे अपने कंधों पर मोटर मार्ग हेड तालुका तक पहुंचाया, जब फोन किया तो पता चला स्वास्थ्य की सवारी 108 भी गायब। स्थानीय ग्रामीणों ने इस प्रसव वेदना में गुजर महिला को किसी तरह प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र मोरी पहुंचाया लेकिन वहां भी महिला चिकित्सक नहीं मिली।  यह कोई कहानी नहीं बल्कि अधिकांश पर्वतीय इलाकों की जीती जागती तस्वीर है यहां का यथार्थ है यहां की यही पीड़ा है। 
फिर इस महिला को स्थानीय ग्रामीण और उसके घरवाले ढाई सौ किलोमीटर दूर देहरादून ले जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि इतने में उसका बहुत ही कष्टदायक प्रसव हुआ, जिसमें बच्चे की जान तो चली गई लेकिन  महिला की जान बामुश्किल बची। घटना हालांकि इसी 23 मार्च है लेकिन उत्तराखंड में स्वस्थ्य सुविधाओं की पोल खोलने के लिए काफी है। प्रदेश सरकार और शासन को और कितने उदाहरण पेश करने होंगे ? इस तरह की घटनाओं के जो इनके कानों में यहाँ की माँ बहनों और बेटियों की कराह आखिर कब तक पहुंचेगी ? 
इधर स्थानीय जन प्रतिनिधि आने वाले 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हैं लेकिन उन्हें ऐसी ह्रृदय विदारक घटनाओं को चुपचाप देखने की शायद आदत सी पड़ गई है। भाजपा हो या कांग्रेस और या कोई और दल सबको केवल सत्ता चाहिए और एक अदद कुर्सी लेकिन जिस जनता के दम पर वे उस कुर्सी तक पहुंचना चाहते हैं उस जनता का दम तो चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में निकला जा रहा है। 
स्थानीय लोगों महत्वपूर्व और वाजिब मांग है कि दो सौ किमी क्षेत्र में फैली यमुना व टौंस घाटी के सिर्फ रैफरल अस्पताल बन चुके दर्जन भर अस्पतालों में से किसी एक में तो योग्य सर्जन, महिला चिकित्सक व मेडिकल संसाधन की व्यवस्था तो ठीक हो जो यहां की माँ बहनों और बेटियों की जान तो कम से कम बच सके। 

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