”देवभूमि मीडिया” की खबर का हुआ असर,बागियों से छिनी CISF सुरक्षा

*अनावश्यक रुप से केंद्रीय सुरक्षा का लाव लश्कर लेकर चल रहे सत्ताधारियों की सुरक्षा छिनी*
देहरादून : देवभूमि मीडिया ने कुछ दिन पूर्व सवाल उठाया था कि कांग्रेस से बगावत करने वाले नेताओं ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत और उनकी सरकार से अपने को सुरक्षा का खतरा बताते हुए भारत सरकार से सुरक्षा की मांग की थी और उन्हैं तत्काल CISF जैसी चुस्त सुरक्षा का चक्र प्रदान भी कर दिया गया था किंतु चुनावों में कांग्रेस की बुरी तरह हार के बाद और प्रचंड बहुमत से भारतीय जनता पार्टी के राज्य में सत्तासीन होने के बाद भी ये सभी राजनेता सुरक्षाकर्मियों की नुमाइश कराते चल रहे थे। वे इस सुरक्षा को अपने प्रभाव और जनता के बीच गौरव का अनुभव करते हुए प्रदर्शन कर रहे थे।
देवभूमि मीडिया ने पत्रकारिता के मानदंडों और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और निष्ठा का निर्वहन करते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा कि जब हरीश रावत सरकार नहीं रही तो इन सत्ताधारियों को किससे खतरा है? वह परिस्थितियां भी नहीं रही और अधिकतर सुरक्षाधारी इनमें मंत्री और विधायक हो गए हैं जो कि स्वयं राज्य की सुरक्षा को लेकर चल रहे हैं ऐसे में देवभूमि मीडिया के समाचार का संज्ञान लिया गया और केंद्रीय एजेंसियों द्वारा इनकी सुरक्षा की समीक्षा होने के बाद CISF की सुरक्षा वापस लिया जाना साबित करता है कि राज्य सरकार की मशीनरी खुफिया विभाग और राजनेताओं के जीवन पर खतरे की समीक्षा करने वाली एजेंसियां कितनी सुस्त और गैर जिम्मेदार हैं।
देवभूमि मीडिया ने इसलिए भी इस बात को उठाया कि जहां नक्सलवाद है, माओवाद है सीमाओं पर तनाव है, शहरों में भीड़ भाड़ वाले इलाकों में किसी भी समय अनहोनी की आशंका रहती है या कश्मीर जैसा अशांत क्षेत्र जहां हाल ही में अमरनाथ यात्रियों पर जानलेवा हमला हुआ है ऐसे में जिन्हें ज्यादा सुरक्षा की आवश्यकता है और शांत देवभूमि के नेतागण सुरक्षाकर्मियों की नुमाइश करते हुए चलें यह राज्य की स्वभाव, राज्य की तासीर और यहां के जनमानस के चिंतन के खिलाफ है ।
आख़िर केंद्र सरकार ने हमारी खबर का संज्ञान लिया क्योंकि न राज्य में किसी ने मीडिया में यह सवाल उठाया और न राज्य सरकार ने केंद्र से इनकी सुरक्षा की समीक्षा के संबंध में कहा । हम मानते है देवभूमि मीडिया ने इस ओर ध्यान दिलाया जो कि हमारी जिम्मेदारी भी है। जिस कारण आज केंद्र सरकार ने अनावश्यक रुप से राज्य में चल रही सीआईएसएफ की सुरक्षा को वापस लेने के आदेश दिए हैं और साथ ही सवाल उठता है गैर जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों पर सरकार में बैठे हुए मंत्रियों विधायकों और चुनाव हार चुके नेताओं पर जो भारी भरकम सुरक्षा लेकर चलना अपनी प्रतिष्ठा समझ रहे थे।
अभी तक इस मामले में यूपी बिहार को बदनाम किया जाता था कि वहां के राजनेता सरकारी तंत्र और सुरक्षा का दुरुपयोग करते हैं मगर वह ललचाती नजरें शांत देवभूमि के नेताओं की भी है जो सुरक्षाकर्मियों के साथ चलना अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ते हैं जबकि राज्य उत्तराखंड की महान जनता, शहीदों, महिलाओं विद्यार्थियों और कर्मचारियों के बदौलत निर्माण हुआ है जिसका श्रेय कहीं से भी यहां के राजनेताओं को नहीं जाता है ऐसे में उत्तराखण्ड के राजनेताओं का पदों पर यह सत्ता से जुड़ी सुविधाओं से चिपका रहना राज्य बनने की भावनाओं के विपरीत का आचरण है।
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