हिमालय का गर्भ संचित हो रही ऊर्जा से बड़े भूकंप का बढ़ रहा खतरा!

- उत्तराखंड में आ सकता है विनाशकारी भूकंप!
देहरादून : बीते 50 सालों में हिमालय के गर्भ में एकत्र हो रही ऊर्जा वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस ऊर्जा से कभी भी आठ रिक्टर स्केल से अधिक क्षमता का भूकंप आ सकता है। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार बीते 50 सालों में हिमालय (उत्तर-पश्चिम) में जितनी भूकंपीय ऊर्जा भूगर्भ में एकत्रित हुई है, उस ऊर्जा में से केवल तीन से पांच प्रतिशत ऊर्जा का एक छोटा सा हिस्सा ही बाहर निकल पाया है। इस बात का खुलासा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ताजे अध्ययन में हुआ है। अब वैज्ञानिक निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि यह इतनी ऊर्जा है कि इससे कभी भी हिमालयी क्षेत्र में आठ रिक्टर स्केल से अधिक क्षमता का भूकंप आ सकता है।
लंबे समय से यह बात सामने आ रही थी कि हिमालय (उत्तर-पश्चिम) में कांगड़ा में वर्ष 1905 में 7.8 रिक्टर स्केल के भूकंप के बाद कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है। इससे माना जा रहा था कि धरती में भूकंपीय ऊर्जा एकत्रित हो रही है। हालांकि अब तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया था, जिससे साफ तौर पर कुछ कहा जा सके।
वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार के मुताबिक एकत्रित ऊर्जा व बाहर निकल रही ऊर्जा का आकलन करने के लिए वर्ष 1968 से अब तक आए भूकंपों और इंडियन प्लेट के भूगर्भ में 14 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की रफ्तार से सिकुड़ने या मूवमेंट से जमा हो रही ऊर्जा का अध्ययन किया गया।
भू-वैज्ञानिकों के अनुसार किये गए अध्ययन में इस अवधि में आए 1.8 से 5.6 रिक्टर स्केल के 423 छोटे भूकंपों को शामिल किया गया। इसके अलावा मध्यम स्तर के किन्नौर में वर्ष 1975 में आए 6.8 रिक्टर स्केल, उत्तरकाशी में वर्ष 1991 में आए 6.4 रिक्टर व चमोली में वर्ष 1999 में आए 6.6 रिक्टर स्केल के मध्यम भूकंप में बाहर निकली ऊर्जा को भी इसका हिस्सा बनाया गया।
वैज्ञानिकों को पता चला कि इन सभी भूकंपों के बाद भी सिर्फ तीन से पांच फीसद ऊर्जा ही बाहर निकल पाई है। यानी कि अभी भी कम से कम 95 फीसद भूकंपीय ऊर्जा भूगर्भ में ही जमा है। यह ऊर्जा भविष्य में कब बाहर निकलेगी, इसका पता नहीं लगाया जा सकता। सिर्फ आने वाले बड़े भूकंप से निपटने को समुचित तैयारी की जा सकती है।
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार के मुताबिक उत्तराखंड, हिमालय से लेकर जम्मू और कश्मीर तक फैले उत्तर-पश्चिम हिमालय के 20 हजार किलोमीटर क्षेत्रफल में यह अध्ययन किया गया। जिसमें धरती के रैंप में अधिक ऊर्जा अध्ययन में धरती के भीतर उन रैंप (स्टेप) का अध्ययन भी किया गया, जहां गैप होने के चलते अधिक ऊर्जा जमा होती है। इसमें उच्च हिमालय में 12 से 22 किलोमीटर नीचे के रैंप व टेथिस हिमालय में 28 से 40 किलोमीटर नीचे बने रैंप में जमा ऊर्जा का भी आकलन किया गया है जो खतरे के संकेत दे रहे हैं ।
भू-वैज्ञानिकों के अनुसार किये गए अध्ययन में उत्तराखंड में भूकंप के 134 फॉल्ट सक्रिय स्थिति में हैं। ये भूकंपीय फॉल्ट भविष्य में सात रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता के भूकंप लाने की क्षमता रखते हैं। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ‘एक्टिव टेक्टोनिक्स ऑफ कुमाऊं एंड गढ़वाल हिमालय’ नामक ताजा अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है। सबसे अधिक 29 फॉल्ट उत्तराखंड की राजधानी दून में पाए गए हैं। गंभीर यह कि कई फॉल्ट लाइन में बड़े निर्माण भी किए जा चुके हैं। गढ़वाल में कुल 57, जबकि कुमाऊं में 77 सक्रिय फॉल्ट पाए गए।
संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरजे पेरुमल के मुताबिक भूकंपीय फॉल्ट का अध्ययन करने के लिए गढ़वाल व कुमांऊ मंडल को अलग-अलग जोन में विभाजित किया गया। फॉल्ट की पहचान के लिए सेटेलाइट चित्रों का सहारा लिया गया। इसके बाद धरातल पर जाकर हर एक फॉल्ट की लंबाई नापी गई और उनकी सक्रियता का भी पता लगाया गया।
अध्ययन में पता चला कि इन सभी फॉल्ट में कम से कम 10 हजार साल पहले सात व आठ रिक्टर स्केल तक के भूकंप आए हैं। जबकि इनकी सक्रियता यह बता रही है कि भविष्य में इनसे कभी भी सात रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता का भूकंप आ सकता है। कुमाऊं मंडल में रामनगर से टनकरपुर के बीच कम दूरी पर ऐसे भूकंपीय फॉल्टों की संख्या सबसे अधिक पाई गई।