हाई कोर्ट ने अपने मुकदमों की स्वयं पैरवी के लिए बनाई नई और संशोधित नियमावली
अपने मुकदमों की स्वयं पैरवी के लिए व्यक्ति को ”पार्टी इन पर्सन ” को जांच के लिए गठित कमेटी के समक्ष होना होगा प्रस्तुत
पैरवी करने वाले को कोर्ट डेकोरम, आचरण, बहस की भाषा सहित विभिन्न आवश्यक पहलुओं की दी जाएगी जानकारी
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
राष्ट्रीय चिह्न का अब नहीं होगा कॉज लिस्ट में प्रयोग
हाईकोर्ट की एक अन्य अधिसूचना के अनुसार अब वादों की सूची (कॉज लिस्ट) में राष्ट्रीय चिह्न प्रकाशित नहीं किया जाएगा।
हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल धनंजय चतुर्वेदी की ओर से इस आशय की अधिसूचना जारी कर दी गई है। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू भी कर दिया गया है।
नैनीताल : उत्तराखंड हाईकोर्ट की ओर से अपने मुकदमों की स्वयं पैरवी के लिए पहले से जारी व्यवस्था पार्टी इन पर्सन को संशोधित कर नई नियमावली तैयार की गई है। नई नियमावली के अनुसार अपने मुकदमों की स्वयं पैरवी के लिए ”पार्टी इन पर्सन” यानि उस व्यक्ति को जिसे अपने मामले की पैरवी खुद न्यायालय के समक्ष करनी है,को न्यायालय में खड़े होने से पहले जांच के लिए गठित एक कमेटी के सामने प्रस्तुत होना होगा। कमेटी की अनुशंषा के बाद और आवश्यक पड़ताल व पैरवी के लिए दिए गए निर्देशों के क्रम में शपथपत्र देने के बाद ही वह व्यक्ति पैरवी के लिए पात्र माना जायेगा।
उत्तराखंड हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल धनंजय चतुर्वेदी ने जारी अधिसूचना में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने अपने मुकदमों की पैरवी स्वयं करने (पार्टी इन पर्सन) के संबंध में नियमावली बनाई है। नियमों के तहत जो भी व्यक्ति अपने वादों में पार्टी इन पर्सन पैरवी करना चाहते हैं उन्हें इस संबंध में रजिस्ट्री कार्यालय में प्रार्थना पत्र देना होगा। इस प्रार्थना पत्र के क्रम में मुख्य न्यायाधीश की ओर से गठित कमेटी इस पर विचार करेगी।
पार्टी इन पर्सन कमेटी में रजिस्ट्री कार्यालय के दो अफसर नामित होंगे। कमेटी के अधिकारी आवश्यक जांच आदि के बाद ही संबंधित व्यक्ति को पैरवी के लिए प्रमाण पत्र देंगे। इस दौरान मुख्य रूप से पैरवी करने वाले को कोर्ट डेकोरम, आचरण, बहस की भाषा सहित विभिन्न आवश्यक पहलुओं की जानकारी दी जाएगी। उसके बाद पार्टी इन पर्सन रहने वाले व्यक्ति को भी कोर्ट की गरिमा के पालन करने का शपथपत्र देना होगा। इसके बाद वह अपने वाद की पैरवी कर सकेगा।
उल्लेखनीय है कि अभी तक यह व्यवस्था थी कि कोई भी व्यक्ति अपने केस की पैरवी या बहस बिना अधिवक्ता नियुक्त किए स्वयं कर सकता था। हाईकोर्ट ने कोर्ट की मर्यादा, डेकोरम सहित विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए यह नियमावली बनाई है।
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