हे सखा! तुम असमय कहाँ चले गए!पहाड़ में जनसरोकारों की पत्रकारिता हो या कोईआंदोलन, उसमें सशरीर अथवा वैचारिक रूप से सदैव उपस्थित रहने वाले हमारे परम सखा पुरुषोत्तम असनोड़ा असमय ही हमसे विदा हो गए। 4 दिन पहले बड़े सबेरे खबर मिली कि वे हॄदय की कमजोरी का अनुभव कर रहे हैं और गैरसैंण में एक क्लीनिक में हैं तथा जल्दी ही हेलीकॉप्टर से देहरादून लाये जा रहे हैं तो एक झटका सा लगा। अगले 2 दिनों में उनका समुचित उपचार होने के समाचारों से कुछ आशा जगी थी कि वे पूर्ण स्वस्थ होकर हनरे बीच आएंगे, पुनः सामाजिक संघर्षों से जुड़ेंगे लेकिन दैव को कुछ और ही मंजूर था। वे कल 15 मार्च 2020 को शाम लगभग 4 बजे ऋषिकेश स्थित एम्स से ही अनन्त यात्रा पर निकल गए। यह दुःखद समाचार जिसको भी मिला, वह सन्न रह गया।असनोड़ा जी जीवन और सामाजिक संघर्षों के एक जीवंत प्रतीक रहे हैं। उनका गैरसैंण में होना इस बात का पुख्ता भरोसा था कि वहाँ किसी भी सामाजिक संघर्ष या उपक्रम को आगे बढ़ाने में कोई कठिनाई नहीं आने वाली। वे सब कुछ सम्भाल लेंगे, सब कुछ झेलते हुए भी। वे स्वयं एक संस्था जैसे थे, जहाँ प्रत्येक सामाजिक सरोकार वाले व्यक्ति अथवा संगठनों के लिए एक विश्वास से परिपूर्ण सम्भावना सदैव विद्यमान रही है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का तो वह एक ऐसा ठौर रहा, जहाँ कभी भी, कोई भी अपना सिर छिपा सकता था। उनका घर, गृहणी, बच्चे, सब सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध जैसे थे। अब गैरसैंण में सदाशयता, प्रेम और अपनत्व वाला, हल्की मुस्कराहट से अपना बना लेने वाला और हर समस्या के समाधान के लिए जूझने वाला वह चेहरा नहीं मिलेगा। क्योंकि अब भौतिक रूप से वहाँ पुरुषोत्तम असनोड़ा नहीं होगा। यह एक बड़ी सामाजिक क्षति है, जिसकी भरपाई शायद ही कभी हो।
अपने छोटे से व्यवसाय के साथ पत्रकारिता की सीख उन्होंने प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी और अपर गढ़वाल में पत्रकारिता के अग्रदूत देवभूमि के सम्पादक रामप्रसाद बहुगुणा जी से प्राप्त की। उनके सामाजिक सेवा की प्रतिबद्धता के मंत्र को जीवन में उतारते हुए असनोड़ा जी ने फिर कभी न पीछे मुड़कर देखा और न बड़ी से बड़ी विपत्ति में कोई समझौता किया। अनेक झंझावातों से भी न डिगते हुए उन्होंने पत्रकारिता को सामाजिक सशक्तता के एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में प्रयुक्त किया। इसके माध्यम से उन्होंने अनेक सामाजिक आंदोलनों में भागीदारी की। नशा नहीं, रोजगार दो, उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन, वन आंदोलन, गैरसैंण स्थायी राजधानी आंदोलन, पत्रकार संघर्ष समिति, उत्तराखण्ड लोक वाहिनी सहित सामाजिक उत्कर्ष के लिए किये जाने वाला शायद ही ऐसा कोई आंदोलन या विषय हो, जिसमें उनकी भागीदारी न हो। रामप्रसाद बहुगुणा जी के देहावसान के बाद उनकी स्मृति को जीवंत रखने के लिए हम लोगों ने मिल कर रामप्रसाद बहुगुणा स्मृति समिति बनाई थी। उसमें नियमित सक्रिय और उत्साहपूर्ण भागीदार के अलावा असनोड़ा जी के नेतृत्व में पर्वतीय पत्रकार परिषद ने उत्तराखंड सरकार से उनकी स्मृति में राज्यस्तरीय पुरस्कार आरम्भ करने का महत्वपूर्ण कार्य करवाया। इसके अन्तर्गत सरकार ने प्रति वर्ष हिंदी पत्रकारिता दिवस (30 मई) को उत्तराखण्ड के 3 पत्रकारों को सम्मानित करने का निर्णय लिया है।
मेरे प्रति उनके प्रेम का तो वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता। अनिकेत के प्रसार, समाचार प्रेषण व पोषण में उनकी निरन्तर भागीदारी रही। 1987 में जब अनिकेत के दैनिक प्रकाशन का निर्णय हुआ तो उसमें उनकी आर्थिक एवं नैतिक सहायता भी महत्वपूर्ण रही।
एक मित्र और अनुज के विछोह की इस त्रासदी को क्या कहा जाय कि इस समय उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने की स्थिति भी नहीं बन पा रही है। विकट वैश्विक महामारी- कोरोना वायरस जनित महामारी ‘कोविड-19’ के संक्रमण को रोकने के लिए देश में लागू सुरक्षात्मक बन्दी के चलते अपनी संवेदना व्यक्त करने उनके घर, परिवार में भी नहीं जा सकते, परिजनों के साथ मिलकर दुःख भी नहीं बाँट सकते।
हे प्रिय सखा! तुम असमय अनन्त यात्रा पर चले गए। तुम्हारे सेवा-कार्य निश्चय ही तुम्हें सद्गति प्रदान करेंगे और समाज को प्रेरणा देंगे। तुम्हारी आत्मा को शांति प्राप्त हो, यही भावना और कामना है। हार्दिक श्रद्धांजलि।