कैग रिपोर्ट ने माना निजी विश्वविद्यालयों को खोलने में हुई गड़बड़ियां

शिक्षक हैं और न ही इन्फ्रास्ट्रक्चर खोल दिए विश्व विद्यालय
देहरादून : प्रदेश में नए विश्वविद्यालय खोलने की होड़ में न तो मानकों की जांच की गई और न ही सरकार के फैसलों को अधिनियमों का हिस्सा बनाया गया। 11 में से 10 विश्वविद्यालय ऐसे खोले गए हैं, जिनमें नियमों की पूरी प्रक्रिया अमल में नहीं लाई गई है। भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में यह चिंताजनक तथ्य सामने आया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, निजी विवि की स्थापना के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति प्रस्ताव का अनुमोदन करती है। इसके बाद राज्य सरकार प्रायोजित संस्था एक आशय पत्र जारी करती है। इस पत्र में निजी विवि की स्थापना के लिए सभी शर्तें शामिल होती हैं।
इसकी आख्या आने के बाद उच्च स्तरीय समिति इसकी जांच करती है और इसके बाद राज्य सरकार को आख्या भेजती है। लेकिन पड़ताल में सामने आया है कि केवल एक निजी विवि के मामले में दिशा निर्देशों का पूर्ण अनुपालन किया गया है।
शेष 10 निजी विवि के मामले में विभाग ने मूल्यांकन नहीं किया कि आशय पत्र के शर्तों का पालन हुआ या नहीं। तीन विवि के पास अपेक्षित भूमि नहीं होने के बावजूद उनका अधिनियम पास कर दिया गया।
एक विवि के पास न तो शिक्षक हैं और न ही इन्फ्रास्ट्रक्चर। एक विवि के लिए सरकार ने फैसला लिया था कि दस प्रतिशत आरक्षण प्रदेश के स्थायी निवासी छात्रों को दिया जाएगा। लेकिन इसके अधिनियम में यह शामिल नहीं किया गया।
एक अन्य निजि विवि में राज्य के स्थायी निवासियों को 25 प्रतिशत आरक्षण के साथ ही प्रवेश परीक्षा के लिए निशुल्क प्रशिक्षण कार्यक्रम सरकार ने तय किया था। लेकिन विवि के अधिनियम में यह शामिल नहीं किया गया।
कई निजी विवि ने प्रदेश के युवाओं के लिए 40 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने, शुल्क में 26 प्रतिशत छूट देने, समूह ग व घ के पदों पर केवल उत्तराखंड मूल निवासियों को रोजगार देने के दावे किए हैं, लेकिन सरकार या विभाग ने अभी तक इसकी कोई जांच पड़ताल या कार्रवाई नहीं की।