लोगों की सेहत से जुड़े सबसे बड़े खतरों से निपटने की कोशिशों को लग रहा झटका
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डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रदूषण को ‘सेहत के लिये पर्यावरण सम्बन्धी सबसे बड़ा खतरा’ घोषित किये जाने के बावजूद 51 प्रतिशत देशों के 1.4 अरब लोग सार्वजनिक रूप से सुलभ वायु गुणवत्ता सम्बन्धी आंकड़ों से हैं महरूम
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इन देशों को बाह्य वायु प्रदूषण के मामले में कुछ सबसे बुरी हालत से गुजर रहे मुल्कों में भी शुमार किया जाता है, जहां इसके कारण हर साल 42 लाख मौतें होती हैं। उनमें भी 90 फीसद मौतें निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में होती हैं।
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पाकिस्तान, नाइजीरिया और इथोपिया जैसे अनेक प्रमुख देशों की सरकारें वायु प्रदूषण से जुड़ा एक भी राष्ट्रीय, सार्वजनिक आंकड़ा नहीं करती सार्वजनिक
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चीन, भारत, रूस, फिलीपींस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसी दुनिया की अनेक प्रमुख ताकतें वायु प्रदूषण सम्बन्धी आंकड़ों को पूरी तरह खुले और पारदर्शी तरीके से नहीं करती साझा
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कुछ विदेशी सहायता कार्यक्रम वायु गुणवत्ता पर केन्द्रित हैं और फाउंडेशन से मिलने वाली दान राशि का सिर्फ 0.02 प्रतिशत हिस्सा ही स्वच्छ वायु की उपलब्धता पर सीधे तौर पर (हर 5000 डॉलर पर मात्र 1 डॉलर) होता है खर्च
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नासा द्वारा समर्थित शोध :‘‘खुला हुआ डेटा स्वच्छ वायु हासिल करने की दिशा में एक छोटा सा कदम ’’
देवभूमि मीडिया वर्ड डेस्क
वॉशिंग्टन डीसी : वॉशिंग्टन डीसी स्थित अंतरराष्ट्रीय एनजीओओपन एक्यू (OpenAQ)द्वारा जारी एक रिपोर्ट में दुनिया भर में वायु की गुणवत्ता से जुड़ी जानकारी की उपलब्धता में बड़े पैमाने पर असमानताएं उजागर हुई हैं। दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी की वायु की गुणवत्ता संबंधी सरकारी आंकड़ों तक पहुंच नहीं है। यह तब है जब विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया के हर 10 में से 9 लोग प्रदूषण के उच्च स्तर वाली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। ‘ओपन एयरक्वालिटीडेटा : द ग्लोबल स्टेट ऑफ प्ले‘ शीर्षक वाले इस अध्ययन में दुनिया के 212 देशों को शामिल किया गया है और यह पाया गया है कि उनमें से 109 (51%) देशों की सरकारें प्रमुख प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन को नापने वाले वायु गुणवत्ता संबंधी डेटा को तैयार नहीं करतीं। ओपन एक्यू ने सरकारों द्वारा वायु की गुणवत्ता की हो रही निगरानी की एक सूची तैयार की है जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है।
इस शोध को नासा के वैज्ञानिकों का समर्थन प्राप्त है। वे ओपन एक्यू प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं। नासा के वायु गुणवत्ता संबंधी सेटेलाइट डेटा को ओपन एक्यू प्रणाली के साथ जोड़ दें तो इसमें दुनिया के हर व्यक्ति को वायु गुणवत्ता संबंधी सूचनाएं उपलब्ध कराने की क्षमता है।
सूचना उपलब्ध न होने की वजह से लोग अपनी सरकारों से स्वास्थ्य के प्रति सबसे बड़े पर्यावरणीय खतरे से निपटने के लिए जरूरी कार्यवाही की मांग नहीं कर पाते। साथ ही वे पर्यावरण के प्रति अपने व्यवहार में भी बदलाव नहीं ला पाते। एक अनुमान के मुताबिक बाह्य वायु प्रदूषण की वजह से हर साल 42 लाख लोगों की मौत होती है। यह संख्या एचआईवी/एड्स, इबोला, टीबी और मलेरिया से होने वाली कुल मौतों (27 लाख) से कहीं ज्यादा है।
इस मामले में अमीर मुल्कों और लोगों से जरूरी सहयोग नहीं मिल रहा है। वैश्विक स्तर पर एक अनुमान के मुताबिक लोकोपकारी फाउंडेशंस [5] द्वारा हर साल 150 अरब डॉलर से भी ज्यादा की रकम निवेश की जाती है। हालांकि बाह्य वायु प्रदूषण की मद में इन संगठनों द्वारा दिया जाने वाला धन कुल (वर्ष 2018 में 3 करोड़ डॉलर) का मात्र 0.02% ही है। यानी हर 5000 में से मात्र 1 डॉलर।
रिपोर्ट में विदेशी विकास कोषों को ओपन डेटा और वायु प्रदूषण से जोड़े जाने का आह्वान किया गया है।
बेइंतेहा प्रदूषण से जूझ रहे अनेक देशों की सरकारें वायु की गुणवत्ता संबंधी आंकड़ों को अक्सर बहुत कम मात्रा में उपलब्ध कराती हैं। ओपन एक्यू ने पीएम 2.5 पार्टिकुलेट मैटर (वायु प्रदूषण की एक घातक किस्म जो हृदय रोग, पक्षाघात, फेफड़े का कैंसर और डायबिटीज से जुड़ी है) के विभिन्न स्तरों की गणना करने वाले निगरानी केंद्रों की संख्या की तुलना के लिए 93 देशों के 11000 वायु निगरानी केंद्रों से 50 करोड़ डेटा बिंदुओं का विश्लेषण किया और यह पाया कि जहां निगरानी केंद्रों की संख्या जितनी ज्यादा है वहां वायु प्रदूषण का स्तर उतना ही कम है।
पर्यावरण विज्ञानी डॉक्टर क्रिस्टा हसेनकॉफ ने ओपन एक्यू की स्थापना की है। इसका मकसद वायु गुणवत्ता संबंधी डेटा की बेहतर उपलब्धता सुनिश्चित करना है। क्रिस्टा ने कहा “वायु गुणवत्ता के डाटा तक बुनियादी पहुंच दरअसल उस हवा को बेहतर बनाने की दिशा में पहला कदम है, जिसमें हम सांस लेते हैं। पूरी तरह से मुक्त डेटा उपलब्ध कराकर सरकारें अपनी सिविल सोसाइटी को सशक्त कर सकती हैं। इनमें वैज्ञानिकों से लेकर नीतियों के विश्लेषक और कार्यकर्ता शामिल हैं जो वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए मिलजुल कर काम करेंगे। इससे सरकारी डेटा की अधिकतम प्रभावशीलता और संभावनाओं के दरवाजे पूरी तरह खुल जाएंगे। साथ ही इससे नवाचार को बढ़ावा मिलेगा और वायु प्रदूषण पर काम करने के लिए विभिन्न समुदाय प्रेरित होंगे।”
ओपन एक्यू का एपीआई दुनिया भर के वैज्ञानिकों, सॉफ्टवेयर डेवलपर्स, एनजीओ और पर्यावरण अभियानकर्ताओं के लिए खुला है। नतीजतन उस पर डेटा के लिए हर महीने साढे़ तीन करोड़ अर्जियां आती हैं।
मिसाल के तौर पर नासा के वैज्ञानिक वैश्विक वायु गुणवत्ता संबंधी अपनी पूर्वानुमान प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए ओपन एक्यू द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा का इस्तेमाल करते हैं। यह डाटा और वायु प्रदूषण से संबंधित नासा के सेटेलाइट डेटा को एकसाथ मिला दें तो उसमें दुनिया के हर व्यक्ति के पास वायु गुणवत्ता से जुड़ी सूचनाएं पहुंचाने की क्षमता है। उन स्थानों पर भी जहां जमीन पर कोई निगरानी केंद्र मौजूद नहीं है।
नासा के पर्यावरणीय वैज्ञानिक डॉक्टर ब्रायन डंकन ने कहा ‘‘मुक्त डेटा साफ हवा की उपलब्धता की दिशा में एक छोटा सा कदम है। वायु प्रदूषण से मुकाबला करने के लिए हमें मानव स्वास्थ्य पर उसके खराब प्रभावों के बारे में जन जागरूकता को बढ़ाने की जरूरत है जिसके लिए वायु प्रदूषण संबंधी डाटा की आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। ओपन एक्यू प्लेटफार्म हमारे नीति निर्धारकों को यह मौका देता है कि वह यह आसानी से देख सकें कि दुनिया में कहां पर वायु प्रदूषण से निपटने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और कहां पर अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत है।”
दक्षिण अफ्रीका की राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद सीएसआईआर (काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) में प्रिंसिपल रिसर्चर डॉक्टर रेबेका गारलैंड ने कहा “हम हवा की खराब गुणवत्ता की समस्या का हल तब तक नहीं निकाल सकते जब तक यह न जान लेंकि यह समस्या दरअसल कितनी बड़ी है। दक्षिण अफ्रीका में निगरानी डेटा का इस्तेमाल करने पर हमने पाया कि हमारे प्रदूषित इलाकों में प्रदूषणकारी तत्वों का वातावरणीय संकेंद्रण का वास्तविक अक्स अक्सर वैश्विक अनुमानों में नहीं देखा जा पाता। यह फिक्र की बात है, क्योंकि इन्हीं वैश्विक अनुमानों के आधार पर पहले से ही बढ़ चुके प्रभावों का आकलन किया जाता है।”इस रिपोर्ट से यह जाहिर होता है कि पूरे अफ्रीका में निगरानी और वायु प्रदूषण संबंधी डेटा की मुक्त रिपोर्टिंग को बढ़ाने की सख्त जरूरत है। इस वक्त डेटा की मुक्त उपलब्धता नहीं होने की वजह से अफ्रीका में वायु प्रदूषण के प्रभावों को लेकर बड़े पैमाने पर अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। इन खामियों को भरने के लिए वैश्विक मॉडल के जरिये कोशिश की जा रही है, लेकिन तुलना के लिए जमीनी डेटा मौजूद न होने की वजह से वे प्रयास से ज्यादा सफल नहीं हो रहे हैं।
दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि देश में वायु प्रदूषण का स्तर वैश्विक मॉडल द्वारा लगाए गए अनुमानों से करीब 4 गुना ज्यादा हो सकता है।क्लीन एयर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में यह पाया गया है कि हाईवेल्ड प्रायरिटी एरिया और वाल ट्रायंगल एयरशेड प्रायरिटी एरिया में प्रदूषण के स्तर को 3.7 फैक्टर कम आंका गया है।
भीड़ के जरिए एकत्र वायु गुणवत्ता संबंधी सूचना उपलब्ध कराने वाले पाकिस्तान एयर क्वालिटी इनीशिएटिव (पीएक्यूआई) के संस्थापक आबिद उमर ने कहा “नीला आसमान और साफ हवा किसी मुल्क के अच्छे शासन का पैमाना है। अंतर्राष्ट्रीय वित्त पोषण को हवा की गुणवत्ता सुधारने संबंधी लक्ष्यों से जोड़ने की जरूरत है। खास तौर पर लाहौर जैसे इलाकों में, जो जहरीली हवा की वजह से औसत संभावित जीवन अवधि (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) में 5 साल के नुकसान का सामना कर रहे हैं।
पाकिस्तान स्थित लाहौर जैसे शहर साल के ज्यादातर महीनों में जहरीली हवा का शिकार रहते हैं, जिसकी वजह से लाइफ एक्सपेक्टेंसी में 5 साल की गिरावट हो गई है। साथ ही इसका जबर्दस्त आर्थिक दुष्प्रभाव भी पड़ रहा है। रियल टाइम सरकारी डेटा की उपलब्धता के बगैर पाकिस्तानी नागरिकों को वायु प्रदूषण के स्तर नापने के लिए निजी सेंसरों का इस्तेमाल करना पड़ता है। नागरिकों को डेटा का यह अंतर भरना होगा मगर यह तभी होगा जब उन्हें वायु की गुणवत्ता संबंधी डेटा की उपलब्धता उतनी ही आसान होगी, जितनी कि मौसम संबंधी डेटा की जानकारी। सरकार द्वारा रिफरेंस स्टैंडर्ड उपकरण का इस्तेमाल कर हासिल किए गए रियल टाइम डेटा को स्वतंत्र थर्ड पार्टी सत्यापन के बाद उपलब्ध कराने से साफ हवा को लेकर उत्पन्न होने वाली जागरूकता कुछ मुट्ठी भर नागरिकों के बजाय बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंच पाएगी।
नई दिल्ली के एक उद्यमी अमृत शर्मा ने ‘स्मोकी’ नामक एक चैटबोट तैयार किया है, जिसमें ओपन एक्यू का डाटा इस्तेमाल किया जाता है। इसके जरिए दुनिया के 48 देशों में फेसबुक, टि्वटर और व्हाट्सएप के जरिए लोगों को प्रदूषण संबंधी अलर्ट भेजे जाते हैं ताकि वे यह तय कर सकें कि अधिक प्रदूषण की संभावना वाले दिन वे या तो मास्क पहनकर बाहर जाएं या फिर घर में ही रहें।
भारत के एक स्वतंत्र अनुसंधान समूह अर्बनएमिशंस.इन्फोके संस्थापक डॉक्टर सरथ गुट्टीकुंडा ने कहा “ओपन एक्यू ने विभिन्न देशों द्वारा डेटा उपलब्ध कराने में आने वाली प्रारूप संबंधी बाधाओं, डाटा प्राप्त करने में आने वाली बोझिल दिक्कतों और विभिन्न असमानताओं को दूर करते हुए आम जनता, शोधकर्ताओं और यहां तक कि सार्वजनिक इकाइयों के लिये भी वायु की गुणवत्ता संबंधी भौगोलिक तर्ज को समझना आसान बना दिया है।”
कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के प्रोफेसर माइकल ब्राआ ने कहा “स्वास्थ्य से जुड़ी वैश्विक चुनौतियां में से वायु प्रदूषण एक ऐसी चुनौती है जिसका समाधान हमें मालूम है और इसे जमीन पर उतारने में कामयाबी के अनेक मजबूत उदाहरण मौजूद हैं। डेटा को उपलब्ध कराने, कार्रवाई करने तथा उसकी प्रगति पर नजर रखने के लिए इस डेटा का इस्तेमाल करना सभी को साफ हवा दिलाने की दिशा में बेहद ज़रूरी कदम है। इस रिपोर्ट को ब्लूमबर्ग फिलैंट्रोफीज, क्लीन एयर फंड और क्लाइमेट वर्क फाउंडेशन का समर्थन प्राप्त है।
इस शोध का समर्थन करने वाले थिंक टैंक और फिलैंट्रोफिक फाउंडेशन ‘क्लीन एयर फंड’ के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर जेन बर्सटन ने कहा “साफ हवा की उपलब्धता मूलभूत मानव अधिकार है। इसके बावजूद पूरी दुनिया में होने वाली हर आठमें से एक व्यक्ति की मौत वायु प्रदूषण की वजह से होती है। यह स्पष्ट है कि सरकारों को वायु प्रदूषण रोकने को फौरन तरजीह देने की जरूरत है और खुले डेटा की उपलब्धता सुनिश्चित करना इस दिशा में पहला अहम कदम है। वायु प्रदूषण की निगरानी के लिए जरूरी प्रौद्योगिकी पहले से ही उपलब्ध है लेकिन इस रिपोर्ट से यह साफ जाहिर हो गया है कि अनेक सरकारों को डाटा तैयार करने और इसे अपने नागरिकों तक पहुंचाने के लिए और अधिक काम करना होगा।”
ब्लूमबर्ग फिलैंट्रोफीज में पर्यावरण संबंधी कार्यक्रमों की वैश्विक प्रमुख डॉक्टर अंथा विलियम्स ने कहा “डाटा का एकत्रीकरण, उसे व्यवस्थित करना और उसका विश्लेषण करना ब्लूमबर्ग फिलैंट्रोफीज के वैश्विक स्वच्छ हवा संबंधी प्रयासों की बुनियाद है “अर्थपूर्ण और कार्रवाई करने लायक नीतियां तैयार करने और सबसे ज्यादा संख्या में लोगों की जिंदगी को बेहतर और लंबी बनाने के लिए इस सूचना को हासिल करना बेहद जरूरी है। दुनिया भर में सबसे ज्यादा जोखिम में जी रही आबादी वायु प्रदूषण के कारण बेतरतीब ढंग से प्रभावित है। वह सांस संबंधी बीमारियों से लेकर जिंदगी कम होने तक जैसे दुष्प्रभावों से जूझ रही है। हमें डाटा की उपलब्धता में व्याप्त इस अंतर को खत्म करना होगा तभी दुनिया में सभी लोगों को स्वच्छ और सांस लेने लायक हवा का मूल अधिकार मिल सकेगा।
ओपन एक्यू ने यह पाया है कि दुनिया के मात्र 13 देशों में वायु प्रदूषण निगरानी संबंधी कार्यक्रमों में निवेश किए जाने से एक अरब लोगों को फायदा होगा। इनमें पाकिस्तान, नाइजीरिया और इथोपिया जैसे देश भी शामिल हैं।
इस रिपोर्ट में सरकारों और नीति निर्धारकों से आह्वान किया गया है कि वे विदेश से मिलने वाली आर्थिक मदद का इस्तेमाल हवा को साफ करने और डाटा की पारदर्शिता के लिए करें। रिपोर्ट में कहा गया है किवायु गुणवत्ता संबंधी कार्यक्रमों को आगे बढ़ा रही विभिन्न सरकारों और संगठनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके द्वारा किया जा रहा निवेश दरअसल डेटा की पारदर्शिता और उसके खुलेपन को बढ़ावा दे। इस रिपोर्ट में रेखांकित किए गए दायरे के हिसाब से यह काम अगर किया गया तो इससे डाटा के इस्तेमाल से संबंधित तमाम संभावनाएं खुल जाएंगी जिसके परिणाम स्वरूप वायु की गुणवत्ता में सुधार होगा।
दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले 13 मुल्कों में लगभग एक अरब लोग रहते हैं। ऐसा लगता है कि इन देशों में जमीनी स्तर का दीर्घकालिक वातावरणीय वायु गुणवत्ता निगरानी संबंधी एक भी राष्ट्र स्तरीय कार्यक्रम नहीं चल रहा है।
देश– आबादी – ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीस (Global Burden of Disease)के मुताबिक वर्ष 2017 में मौतों और अपंगता के खतरे के तौर पर वायु प्रदूषण के खतरे की रैंकिंग
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पाकिस्तान – 221 मिलियन #5
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नाइजीरिया – 206 मिलियन – #3
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इथोपिया – 115 मिलियन – #4
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कांगो गणराज्य – 90 मिलियन – #7
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तंजानिया – 60 मिलियन – #3
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केन्या – 54 मिलियन – #5
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युगांडा – 46 मिलियन – #4
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अल्जीरिया – 44 मिलियन – #8
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सूडान – 44 मिलियन – #6
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इराक – 40 मिलियन – #7
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अफगानिस्तान – 39 मिलियन – #2
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उज्बेकिस्तान – 33 मिलियन – #8
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अंगोला – 33 मिलियन#4
कम से कम 30 देशों की सरकारें ऐसी हैं जो रियल-टाइम डेटा तो तैयार करती हैं लेकिन उसे खुले तौर पर साझा नहीं करतीं
इस डेटा को अधिक खुले तौर पर पेश किये जाने से चीन, भारत, रूस, ब्राजील, फिलीपींस और जापान की 4.4 अरब आबादी को फायदा मिलेगा।
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लोगों की सेहत से जुड़े सबसे बड़े खतरों से निपटने की कोशिशों को लग रहा झटकाडब्ल्यूएचओ द्वारा प्रदूषण को ‘सेहत के लिये पर्यावरण सम्बन्धी सबसे बड़ा खतरा’ घोषित किये जाने के बावजूद 51 प्रतिशत देशों के 1.4 अरब लोग सार्वजनिक रूप से सुलभ वायु गुणवत्ता सम्बन्धी आंकड़ों से हैं महरूम इन देशों को बाह्य वायु प्रदूषण के मामले में कुछ सबसे बुरी हालत से गुजर रहे मुल्कों में भी शुमार किया जाता है, जहां इसके कारण हर साल 42 लाख मौतें होती हैं। उनमें भी 90 फीसद मौतें निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में होती हैं।पाकिस्तान, नाइजीरिया और इथोपिया जैसे अनेक प्रमुख देशों की सरकारें वायु प्रदूषण से जुड़ा एक भी राष्ट्रीय, सार्वजनिक आंकड़ा नहीं करती सार्वजनिक चीन, भारत, रूस, फिलीपींस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसी दुनिया की अनेक प्रमुख ताकतें वायु प्रदूषण सम्बन्धी आंकड़ों को पूरी तरह खुले और पारदर्शी तरीके से नहीं करती साझा कुछ विदेशी सहायता कार्यक्रम वायु गुणवत्ता पर केन्द्रित हैं और फाउंडेशन से मिलने वाली दान राशि का सिर्फ 0.02 प्रतिशत हिस्सा ही स्वच्छ वायु की उपलब्धता पर सीधे तौर पर (हर 5000 डॉलर पर मात्र 1 डॉलर) होता है खर्च नासा द्वारा समर्थित शोध :‘‘खुला हुआ डेटा स्वच्छ वायु हासिल करने की दिशा में एक छोटा सा कदम ’’देवभूमि मीडिया वर्ड डेस्क वॉशिंग्टन डीसी : वॉशिंग्टन डीसी स्थित अंतरराष्ट्रीय एनजीओओपन एक्यू (OpenAQ)द्वारा जारी एक रिपोर्ट में दुनिया भर में वायु की गुणवत्ता से जुड़ी जानकारी की उपलब्धता में बड़े पैमाने पर असमानताएं उजागर हुई हैं। दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी की वायु की गुणवत्ता संबंधी सरकारी आंकड़ों तक पहुंच नहीं है। यह तब है जब विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया के हर 10 में से 9 लोग प्रदूषण के उच्च स्तर वाली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। ‘ओपन एयरक्वालिटीडेटा : द ग्लोबल स्टेट ऑफ प्ले‘ शीर्षक वाले इस अध्ययन में दुनिया के 212 देशों को शामिल किया गया है और यह पाया गया है कि उनमें से 109 (51%) देशों की सरकारें प्रमुख प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन को नापने वाले वायु गुणवत्ता संबंधी डेटा को तैयार नहीं करतीं। ओपन एक्यू ने सरकारों द्वारा वायु की गुणवत्ता की हो रही निगरानी की एक सूची तैयार की है जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है।इस शोध को नासा के वैज्ञानिकों का समर्थन प्राप्त है। वे ओपन एक्यू प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं। नासा के वायु गुणवत्ता संबंधी सेटेलाइट डेटा को ओपन एक्यू प्रणाली के साथ जोड़ दें तो इसमें दुनिया के हर व्यक्ति को वायु गुणवत्ता संबंधी सूचनाएं उपलब्ध कराने की क्षमता है।सूचना उपलब्ध न होने की वजह से लोग अपनी सरकारों से स्वास्थ्य के प्रति सबसे बड़े पर्यावरणीय खतरे से निपटने के लिए जरूरी कार्यवाही की मांग नहीं कर पाते। साथ ही वे पर्यावरण के प्रति अपने व्यवहार में भी बदलाव नहीं ला पाते। एक अनुमान के मुताबिक बाह्य वायु प्रदूषण की वजह से हर साल 42 लाख लोगों की मौत होती है। यह संख्या एचआईवी/एड्स, इबोला, टीबी और मलेरिया से होने वाली कुल मौतों (27 लाख) से कहीं ज्यादा है।इस मामले में अमीर मुल्कों और लोगों से जरूरी सहयोग नहीं मिल रहा है। वैश्विक स्तर पर एक अनुमान के मुताबिक लोकोपकारी फाउंडेशंस द्वारा हर साल 150 अरब डॉलर से भी ज्यादा की रकम निवेश की जाती है। हालांकि बाह्य वायु प्रदूषण की मद में इन संगठनों द्वारा दिया जाने वाला धन कुल (वर्ष 2018 में 3 करोड़ डॉलर) का मात्र 0.02% ही है। यानी हर 5000 में से मात्र 1 डॉलर।रिपोर्ट में विदेशी विकास कोषों को ओपन डेटा और वायु प्रदूषण से जोड़े जाने का आह्वान किया गया है।बेइंतेहा प्रदूषण से जूझ रहे अनेक देशों की सरकारें वायु की गुणवत्ता संबंधी आंकड़ों को अक्सर बहुत कम मात्रा में उपलब्ध कराती हैं। ओपन एक्यू ने पीएम 2.5 पार्टिकुलेट मैटर (वायु प्रदूषण की एक घातक किस्म जो हृदय रोग, पक्षाघात, फेफड़े का कैंसर और डायबिटीज से जुड़ी है) के विभिन्न स्तरों की गणना करने वाले निगरानी केंद्रों की संख्या की तुलना के लिए 93 देशों के 11000 वायु निगरानी केंद्रों से 50 करोड़ डेटा बिंदुओं का विश्लेषण किया और यह पाया कि जहां निगरानी केंद्रों की संख्या जितनी ज्यादा है वहां वायु प्रदूषण का स्तर उतना ही कम है।पर्यावरण विज्ञानी डॉक्टर क्रिस्टा हसेनकॉफ ने ओपन एक्यू की स्थापना की है। इसका मकसद वायु गुणवत्ता संबंधी डेटा की बेहतर उपलब्धता सुनिश्चित करना है। क्रिस्टा ने कहा “वायु गुणवत्ता के डाटा तक बुनियादी पहुंच दरअसल उस हवा को बेहतर बनाने की दिशा में पहला कदम है, जिसमें हम सांस लेते हैं। पूरी तरह से मुक्त डेटा उपलब्ध कराकर सरकारें अपनी सिविल सोसाइटी को सशक्त कर सकती हैं। इनमें वैज्ञानिकों से लेकर नीतियों के विश्लेषक और कार्यकर्ता शामिल हैं जो वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए मिलजुल कर काम करेंगे। इससे सरकारी डेटा की अधिकतम प्रभावशीलता और संभावनाओं के दरवाजे पूरी तरह खुल जाएंगे। साथ ही इससे नवाचार को बढ़ावा मिलेगा और वायु प्रदूषण पर काम करने के लिए विभिन्न समुदाय प्रेरित होंगे।”ओपन एक्यू का एपीआई दुनिया भर के वैज्ञानिकों, सॉफ्टवेयर डेवलपर्स, एनजीओ और पर्यावरण अभियानकर्ताओं के लिए खुला है। नतीजतन उस पर डेटा के लिए हर महीने साढे़ तीन करोड़ अर्जियां आती हैं।मिसाल के तौर पर नासा के वैज्ञानिक वैश्विक वायु गुणवत्ता संबंधी अपनी पूर्वानुमान प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए ओपन एक्यू द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा का इस्तेमाल करते हैं। यह डाटा और वायु प्रदूषण से संबंधित नासा के सेटेलाइट डेटा को एकसाथ मिला दें तो उसमें दुनिया के हर व्यक्ति के पास वायु गुणवत्ता से जुड़ी सूचनाएं पहुंचाने की क्षमता है। उन स्थानों पर भी जहां जमीन पर कोई निगरानी केंद्र मौजूद नहीं है।नासा के पर्यावरणीय वैज्ञानिक डॉक्टर ब्रायन डंकन ने कहा ‘‘मुक्त डेटा साफ हवा की उपलब्धता की दिशा में एक छोटा सा कदम है। वायु प्रदूषण से मुकाबला करने के लिए हमें मानव स्वास्थ्य पर उसके खराब प्रभावों के बारे में जन जागरूकता को बढ़ाने की जरूरत है जिसके लिए वायु प्रदूषण संबंधी डाटा की आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। ओपन एक्यू प्लेटफार्म हमारे नीति निर्धारकों को यह मौका देता है कि वह यह आसानी से देख सकें कि दुनिया में कहां पर वायु प्रदूषण से निपटने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और कहां पर अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत है।”दक्षिण अफ्रीका की राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद सीएसआईआर (काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) में प्रिंसिपल रिसर्चर डॉक्टर रेबेका गारलैंड ने कहा “हम हवा की खराब गुणवत्ता की समस्या का हल तब तक नहीं निकाल सकते जब तक यह न जान लेंकि यह समस्या दरअसल कितनी बड़ी है। दक्षिण अफ्रीका में निगरानी डेटा का इस्तेमाल करने पर हमने पाया कि हमारे प्रदूषित इलाकों में प्रदूषणकारी तत्वों का वातावरणीय संकेंद्रण का वास्तविक अक्स अक्सर वैश्विक अनुमानों में नहीं देखा जा पाता। यह फिक्र की बात है, क्योंकि इन्हीं वैश्विक अनुमानों के आधार पर पहले से ही बढ़ चुके प्रभावों का आकलन किया जाता है।”इस रिपोर्ट से यह जाहिर होता है कि पूरे अफ्रीका में निगरानी और वायु प्रदूषण संबंधी डेटा की मुक्त रिपोर्टिंग को बढ़ाने की सख्त जरूरत है। इस वक्त डेटा की मुक्त उपलब्धता नहीं होने की वजह से अफ्रीका में वायु प्रदूषण के प्रभावों को लेकर बड़े पैमाने पर अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। इन खामियों को भरने के लिए वैश्विक मॉडल के जरिये कोशिश की जा रही है, लेकिन तुलना के लिए जमीनी डेटा मौजूद न होने की वजह से वे प्रयास से ज्यादा सफल नहीं हो रहे हैं।दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि देश में वायु प्रदूषण का स्तर वैश्विक मॉडल द्वारा लगाए गए अनुमानों से करीब 4 गुना ज्यादा हो सकता है।क्लीन एयर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में यह पाया गया है कि हाईवेल्ड प्रायरिटी एरिया और वाल ट्रायंगल एयरशेड प्रायरिटी एरिया में प्रदूषण के स्तर को 3.7 फैक्टर कम आंका गया है।भीड़ के जरिए एकत्र वायु गुणवत्ता संबंधी सूचना उपलब्ध कराने वाले पाकिस्तान एयर क्वालिटी इनीशिएटिव (पीएक्यूआई) के संस्थापक आबिद उमर ने कहा “नीला आसमान और साफ हवा किसी मुल्क के अच्छे शासन का पैमाना है। अंतर्राष्ट्रीय वित्त पोषण को हवा की गुणवत्ता सुधारने संबंधी लक्ष्यों से जोड़ने की जरूरत है। खास तौर पर लाहौर जैसे इलाकों में, जो जहरीली हवा की वजह से औसत संभावित जीवन अवधि (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) में 5 साल के नुकसान का सामना कर रहे हैं।पाकिस्तान स्थित लाहौर जैसे शहर साल के ज्यादातर महीनों में जहरीली हवा का शिकार रहते हैं, जिसकी वजह से लाइफ एक्सपेक्टेंसी में 5 साल की गिरावट हो गई है। साथ ही इसका जबर्दस्त आर्थिक दुष्प्रभाव भी पड़ रहा है। रियल टाइम सरकारी डेटा की उपलब्धता के बगैर पाकिस्तानी नागरिकों को वायु प्रदूषण के स्तर नापने के लिए निजी सेंसरों का इस्तेमाल करना पड़ता है। नागरिकों को डेटा का यह अंतर भरना होगा मगर यह तभी होगा जब उन्हें वायु की गुणवत्ता संबंधी डेटा की उपलब्धता उतनी ही आसान होगी, जितनी कि मौसम संबंधी डेटा की जानकारी। सरकार द्वारा रिफरेंस स्टैंडर्ड उपकरण का इस्तेमाल कर हासिल किए गए रियल टाइम डेटा को स्वतंत्र थर्ड पार्टी सत्यापन के बाद उपलब्ध कराने से साफ हवा को लेकर उत्पन्न होने वाली जागरूकता कुछ मुट्ठी भर नागरिकों के बजाय बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंच पाएगी।नई दिल्ली के एक उद्यमी अमृत शर्मा ने ‘स्मोकी’ नामक एक चैटबोट तैयार किया है, जिसमें ओपन एक्यू का डाटा इस्तेमाल किया जाता है। इसके जरिए दुनिया के 48 देशों में फेसबुक, टि्वटर और व्हाट्सएप के जरिए लोगों को प्रदूषण संबंधी अलर्ट भेजे जाते हैं ताकि वे यह तय कर सकें कि अधिक प्रदूषण की संभावना वाले दिन वे या तो मास्क पहनकर बाहर जाएं या फिर घर में ही रहें।भारत के एक स्वतंत्र अनुसंधान समूह अर्बनएमिशंस.इन्फोके संस्थापक डॉक्टर सरथ गुट्टीकुंडा ने कहा “ओपन एक्यू ने विभिन्न देशों द्वारा डेटा उपलब्ध कराने में आने वाली प्रारूप संबंधी बाधाओं, डाटा प्राप्त करने में आने वाली बोझिल दिक्कतों और विभिन्न असमानताओं को दूर करते हुए आम जनता, शोधकर्ताओं और यहां तक कि सार्वजनिक इकाइयों के लिये भी वायु की गुणवत्ता संबंधी भौगोलिक तर्ज को समझना आसान बना दिया है।”कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के प्रोफेसर माइकल ब्राआ ने कहा “स्वास्थ्य से जुड़ी वैश्विक चुनौतियां में से वायु प्रदूषण एक ऐसी चुनौती है जिसका समाधान हमें मालूम है और इसे जमीन पर उतारने में कामयाबी के अनेक मजबूत उदाहरण मौजूद हैं। डेटा को उपलब्ध कराने, कार्रवाई करने तथा उसकी प्रगति पर नजर रखने के लिए इस डेटा का इस्तेमाल करना सभी को साफ हवा दिलाने की दिशा में बेहद ज़रूरी कदम है। इस रिपोर्ट को ब्लूमबर्ग फिलैंट्रोफीज, क्लीन एयर फंड और क्लाइमेट वर्क फाउंडेशन का समर्थन प्राप्त है।इस शोध का समर्थन करने वाले थिंक टैंक और फिलैंट्रोफिक फाउंडेशन ‘क्लीन एयर फंड’ के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर जेन बर्सटन ने कहा “साफ हवा की उपलब्धता मूलभूत मानव अधिकार है। इसके बावजूद पूरी दुनिया में होने वाली हर आठमें से एक व्यक्ति की मौत वायु प्रदूषण की वजह से होती है। यह स्पष्ट है कि सरकारों को वायु प्रदूषण रोकने को फौरन तरजीह देने की जरूरत है और खुले डेटा की उपलब्धता सुनिश्चित करना इस दिशा में पहला अहम कदम है। वायु प्रदूषण की निगरानी के लिए जरूरी प्रौद्योगिकी पहले से ही उपलब्ध है लेकिन इस रिपोर्ट से यह साफ जाहिर हो गया है कि अनेक सरकारों को डाटा तैयार करने और इसे अपने नागरिकों तक पहुंचाने के लिए और अधिक काम करना होगा।”ब्लूमबर्ग फिलैंट्रोफीज में पर्यावरण संबंधी कार्यक्रमों की वैश्विक प्रमुख डॉक्टर अंथा विलियम्स ने कहा “डाटा का एकत्रीकरण, उसे व्यवस्थित करना और उसका विश्लेषण करना ब्लूमबर्ग फिलैंट्रोफीज के वैश्विक स्वच्छ हवा संबंधी प्रयासों की बुनियाद है “अर्थपूर्ण और कार्रवाई करने लायक नीतियां तैयार करने और सबसे ज्यादा संख्या में लोगों की जिंदगी को बेहतर और लंबी बनाने के लिए इस सूचना को हासिल करना बेहद जरूरी है। दुनिया भर में सबसे ज्यादा जोखिम में जी रही आबादी वायु प्रदूषण के कारण बेतरतीब ढंग से प्रभावित है। वह सांस संबंधी बीमारियों से लेकर जिंदगी कम होने तक जैसे दुष्प्रभावों से जूझ रही है। हमें डाटा की उपलब्धता में व्याप्त इस अंतर को खत्म करना होगा तभी दुनिया में सभी लोगों को स्वच्छ और सांस लेने लायक हवा का मूल अधिकार मिल सकेगा।ओपन एक्यू ने यह पाया है कि दुनिया के मात्र 13 देशों में वायु प्रदूषण निगरानी संबंधी कार्यक्रमों में निवेश किए जाने से एक अरब लोगों को फायदा होगा। इनमें पाकिस्तान, नाइजीरिया और इथोपिया जैसे देश भी शामिल हैं।इस रिपोर्ट में सरकारों और नीति निर्धारकों से आह्वान किया गया है कि वे विदेश से मिलने वाली आर्थिक मदद का इस्तेमाल हवा को साफ करने और डाटा की पारदर्शिता के लिए करें। रिपोर्ट में कहा गया है किवायु गुणवत्ता संबंधी कार्यक्रमों को आगे बढ़ा रही विभिन्न सरकारों और संगठनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके द्वारा किया जा रहा निवेश दरअसल डेटा की पारदर्शिता और उसके खुलेपन को बढ़ावा दे। इस रिपोर्ट में रेखांकित किए गए दायरे के हिसाब से यह काम अगर किया गया तो इससे डाटा के इस्तेमाल से संबंधित तमाम संभावनाएं खुल जाएंगी जिसके परिणाम स्वरूप वायु की गुणवत्ता में सुधार होगा।दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले 13 मुल्कों में लगभग एक अरब लोग रहते हैं। ऐसा लगता है कि इन देशों में जमीनी स्तर का दीर्घकालिक वातावरणीय वायु गुणवत्ता निगरानी संबंधी एक भी राष्ट्र स्तरीय कार्यक्रम नहीं चल रहा है। देश– आबादी – ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीस (Global Burden of Disease)के मुताबिक वर्ष 2017 में मौतों और अपंगता के खतरे के तौर पर वायु प्रदूषण के खतरे की रैंकिंगपाकिस्तान – 221 मिलियन #5नाइजीरिया – 206 मिलियन – #3इथोपिया – 115 मिलियन – #4कांगो गणराज्य – 90 मिलियन – #7तंजानिया – 60 मिलियन – #3केन्या – 54 मिलियन – #5युगांडा – 46 मिलियन – #4अल्जीरिया – 44 मिलियन – #8सूडान – 44 मिलियन – #6इराक – 40 मिलियन – #7अफगानिस्तान – 39 मिलियन – #2उज्बेकिस्तान – 33 मिलियन – #8अंगोला – 33 मिलियन#4कम से कम 30 देशों की सरकारें ऐसी हैं जो रियल-टाइम डेटा तो तैयार करती हैं लेकिन उसे खुले तौर पर साझा नहीं करतींदेश– जनसंख्या – पूरी तरह मुक्त डेटा के वह प्रमुख मापदंड, जिन्हें अपनाया नहीं जा रहा हैचीन – 1.439 अरबप्रोग्रामेटिक एक्सेज, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स (Programmatic Access; Station-Level & Coordinates)भारत – 1.380 अरबप्रोग्रामेटिक एक्सेज(Programmatic Access)इंडोनेशिया – 274 मिलियनफिजिकल डेटा, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स एवं प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Physical Data; Station-Level & Coordinates; Programmatic Access)ब्राजील – 213 मिलियनस्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स एवं प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Station-Level & Coordinates; Programmatic Access)रशियन फेडरेशन – 146 मिलियनफिजिकल डेटा, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स,प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Physical Data; Station-Level & Coordinates; Programmatic Access)जापान – 126 मिलियनस्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स,प्रोग्रामेटिकएक्सेज (Station-Level & Coordinates; Programmatic Access)फिलीपींस- 110 मिलियनफिजिकल डेटा, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स, टाइमली फाइन-स्केल टेम्पोरल इन्फॉर्मेशन, प्रोग्रामेटिक एक्सेज (Physical Data; Station-Level & Coordinates; Timely Fine-Scale Temporal Information; Programmatic Access)इजिप्ट – 102 मिलियनफिजिकल डेटा, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स, टाइमली फाइन-स्केल टेम्पोरल इन्फॉर्मेशन, प्रोग्रामेटिक एक्सेज (Physical Data; Station-Level & Coordinates; Timely Fine-Scale Temporal Information; Programmatic Access)वियतनाम – 97 मिलियनफिजिकल डेटा, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स,प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Physical Data; Station-Level & Coordinates; Programmatic Access)तुर्की – 84 मिलियनप्रोग्रामेटिक एक्सेज(Programmatic Access)ईरान – 84 मिलियनटाइमली फाइन-स्केल टेम्पोरल इन्फॉर्मेशन, फिजिकल डेटा, प्रोग्रामेटिक एक्सेज (Timely Fine-Scale Temporal Information; Physical Data; Programmatic Access)थाईलैंड- 70 मिलियनप्रोग्रामेटिक एक्सेज(Programmatic Access)दक्षिण अफ्रीका – 59 मिलियनअधिक जानकारी के लिये कृपया सम्पर्क करें ……………….
पांच करोड़ से ज्यादा आबादी वाले 13 देश (कुल जनसंख्या 4.2 अरब) कुछ प्रारूपों में हवा की गुणवत्ता सम्बन्धी रियल टाइम डेटा तैयार तो कर रहे हैं मगर वे उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह मुक्त ढंग से साझा नहीं कर रहे।
देश– जनसंख्या – पूरी तरह मुक्त डेटा के वह प्रमुख मापदंड, जिन्हें अपनाया नहीं जा रहा है
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चीन – 1.439 अरब
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प्रोग्रामेटिक एक्सेज, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स (Programmatic Access; Station-Level & Coordinates)
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भारत – 1.380 अरब
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प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Programmatic Access)
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इंडोनेशिया – 274 मिलियन
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फिजिकल डेटा, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स एवं प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Physical Data; Station-Level & Coordinates; Programmatic Access)
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ब्राजील – 213 मिलियन
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स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स एवं प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Station-Level & Coordinates; Programmatic Access)
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रशियन फेडरेशन – 146 मिलियन
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फिजिकल डेटा, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स,प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Physical Data; Station-Level & Coordinates; Programmatic Access)
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जापान – 126 मिलियन
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स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स,प्रोग्रामेटिकएक्सेज (Station-Level & Coordinates; Programmatic Access)
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फिलीपींस- 110 मिलियन
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फिजिकल डेटा, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स, टाइमली फाइन-स्केल टेम्पोरल इन्फॉर्मेशन, प्रोग्रामेटिक एक्सेज (Physical Data; Station-Level & Coordinates; Timely Fine-Scale Temporal Information; Programmatic Access)
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इजिप्ट – 102 मिलियन
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फिजिकल डेटा, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स, टाइमली फाइन-स्केल टेम्पोरल इन्फॉर्मेशन, प्रोग्रामेटिक एक्सेज (Physical Data; Station-Level & Coordinates; Timely Fine-Scale Temporal Information; Programmatic Access)
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वियतनाम – 97 मिलियन
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फिजिकल डेटा, स्टेशन-लेवल एवं कोऑर्डिनेट्स,प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Physical Data; Station-Level & Coordinates; Programmatic Access)
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तुर्की – 84 मिलियन
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प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Programmatic Access)
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ईरान – 84 मिलियन
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टाइमली फाइन-स्केल टेम्पोरल इन्फॉर्मेशन, फिजिकल डेटा, प्रोग्रामेटिक एक्सेज (Timely Fine-Scale Temporal Information; Physical Data; Programmatic Access)
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थाईलैंड- 70 मिलियन
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प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Programmatic Access)
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दक्षिण अफ्रीका – 59 मिलियन
- प्रोग्रामेटिक एक्सेज(Programmatic Access)
अधिक जानकारी के लिये कृपया सम्पर्क करें ……………….
एलेक्स बिगम, लंदन, alex@alexbigham.com +44 7830 195 812
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