Uttarakhand

पर्यावरण को बचाए रखना ही है ग्रीन कांसेप्ट : वीरेन्द्र रावत

  • ग्रीन स्कूलों के लिए अलग से सिलेबस किया है डिजाइन

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून  : भारत से लेकर विदेशों तक ग्रीन कांसेप्ट पहुँचाने वाले उत्तराखंड के वीरेन्द्र रावत आज देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक में वे पर्यावरण मित्र के रूप में विख्यात हैं।  ग्रीन डिफरेंस अवार्ड – 2016 और बोस्टन में ग्रीन इनिशेटिव अवार्ड से नवाजे गए वीरेन्द्र रावत को कुछ लोग तो इन्हें अब ग्रीन मैन भी कहने लगे हैं।  उनका कहना है उत्तराखंड का पर्वतीय इलाका सबसे ज्यादा पर्यावरण फ्रेंडली यानि ग्रीन कांसेप्ट को आगे बढाने वाले हैं। टिहरी गढ़वाल के प्रतापनगर ब्लॉक के हेरवाल गांव निवासी मुकुंद सिंह रावत के बेटे वीरेंद्र रावत ने गुजरात सहित कई राज्यों में 100 से अधिक ग्रीन स्कूल खोले हैं । इतना ही नहीं विश्व के कई देशों में भी वे ग्रीन कांसेप्ट पर आधारित स्कूल खोल चुके हैं। उनके इस कांसेप्ट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी काफी सराहा है। वीरेन्द्र रावत का ग्रीन स्कूल कांसेप्ट प्रकृति के पांच तत्वों पृथ्वी, जल, हवा, आग और आकाश पर आधारित है। उनका कहना है कि सामान्य स्कूलों से इतर इन स्कूलों में प्रकृति  से कुछ नजदीकियों का फील होता है।

वीरेंद्र रावत ने यहाँ बातचीत में भी बताया है कि ग्रीन स्कूलों के लिए उन्होंने अलग से सिलेबस डिजाइन किया है। इसमें पर्यावरण मित्र और उससे कमाई का रास्ता सिखाया जाता है। स्कूलों में कार्बन आधारित आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। जबकि बारिश का 100 प्रतिशत पानी सभी प्रक्रियाओं में इस्तेमाल किया जाता है। उनके इस पाठ्यक्रम में कूड़े से खाद बनाने और पेपर रिसाइक्लिंग से लेकर प्लास्टिक रिसाइक्लिंग तक का काम पढ़ाई के दौरान सिखाया जाता है। ग्रीन स्कूलों में बच्चे उद्यमिता के साथ पर्यावरण बचना और कमाई का जरिया भी सीखते हैं। 

शुक्रवार को वे हमें मिले दून लिटरेचर फेस्टिवल में जहाँ हमारे सहयोगी और समाज सेवी उदित घिल्डियाल ने उनसे उनके ग्रीन कांसेप्ट विषय पर बात की……..

उदित घिल्डियाल : आपके ग्रीन कांसेप्ट की मूल अवधारणा क्या है यानि आखिर ये हैं क्या ग्रीन कांसेप्ट ?

वीरेन्द्र रावत : आपको अपना जीवन प्रकृति के नियम से चलाना है,और जो भी प्रकृति ने हमको दिया है उसका न्यायपूर्ण तरीके से उपयोग करना है।प्रकृति की जो भी देन है जैसे पानी हवा का इस्तेमाल वेजा नहीं कर सकते। 

उदित घिल्डियाल : आप जो भी ग्रीन चीजें इस्तेमाल कर रहे हैं  यानि इको फ्रेंडली इसमें क्या है ? जीरो कार्बन क्या है ? जो टोपी आपने दी वह कैसे जीरो कार्बन है ?

वीरेन्द्र रावत : ये ऐसे कॉटन से बना हुआ है जिसमें पेस्टीसाइड का इस्तेमाल नहीं किया गया हैइको फ्रेंडली गाड़ियों से ट्रांसपोर्ट होता है ,जिसमें कोई कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है,जहाँ जिस फैक्ट्री में बनता है वहां भी वह सोलर एनर्जी से चलित उपकरणों से बनता है इसी तरह इको फ्रेंडली वाहनों से प्राप्तकर्ता तक जाता है वहां भी कार्बन का उत्सर्जन नहीं होता है , रि -साइकिल के बाद भी हम 10 फीसदी पैसा उनको वापस देते हैं यानि हम लोग कार्बन के पर्यावरण में उत्सर्जन को रोकने पर काम करते हैं।

उदित घिल्डियाल : ग्रीन कांसेप्ट स्कूल के कांसेप्ट जिसमे आपको ख्याति मिली है वह कैसे लाये ?

वीरेन्द्र रावत : हम के से देशों में पढ़ा रहे हैं हर देश का अपना पाठ्यक्रम है शिक्षा की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती ,लेकिन हम हर देश को ग्रीन कांसेप्ट का पाठ पढ़ा रहे हैं । पाठ्यक्रम का जो राष्ट्रीय या क्षेत्रीय बैरियर है वह शिक्षा के पाठ्यक्रम  से समाप्त हो जाता है । इस तरह से यह वैश्विक पाठ्यक्रम बन जाता है ।  जब आपके पास वैश्विक ज्ञान होता है तो आप वैश्विक व्यक्ति तो स्वतः ही हो गये । 

उदित घिल्डियाल : स्कूल का जो ग्रीन कांसेप्ट आप ला रहे हैं भवनों में वह क्या है ?

वीरेन्द्र रावत : हमारी जो क्लास है वह थर्मल कम्फर्ट , साउंड कांफेर्ट और लाइटिंग कांफेर्ट है।  इसके अनुसार स्कूल के क्लास रूम का तापमान बाहर के तापमान से तीन डिग्री कम होना चाहिए । वेंटिलेशन अच्छा होना चाहिए । अधिकतम दिन के उजाले में पढाई होनी चाहिए । और अन्य प्रकाश व्यवस्थाओं से नहीं होनी चाहिए पढाई । तो इससेआउट कम ज्यादा अच्छा होता है और साउंड कम्फर्ट का मतलब बाहर की ध्वनि भीतर न आये और क्लास रूम को पढ़ने वाले की आवाज़ साफ़ सुनाई दे यही मुख्य बात है । 

उदित घिल्डियाल : पहाड़ों के लिए ग्रीन कांसेप्ट क्या है ?

वीरेन्द्र रावत :पहाड़ से अच्छा ग्रीन तो होता ही कहाँ है यह तो प्राकृतिक ग्रीन है जो हम करते हैं वह आर्टिफीसियल ग्रीन है यानि बनाया गया ग्रीन। हमने पूरी यूनिफार्म ही ग्रीन कांसेप्ट पर बनायीं हुई है जूट और कॉटन से बनाया हुआ है सॉक्स भी काटन से बनाया हुआ है जो बायोडी ग्रेबल रबर से बनाया हुआ है .

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