‘‘ग्रामोत्सव’’ कार्यक्रमों से होगी पहाड़ों में वीरान पड़े घरों की तरफ वापसी !

प्रेम पंचोली
अपनी माटी की सौंधी को लेकर दूर-देश में रोजगार कमा रहे उत्तराखण्डी अब घर वापसी के लिए ‘‘प्रवासी पंचायत’’ करने लग गये हैं। यही नहीं राज्य में 100 से अधिक गावों में घर छोड़ चुके लोगो ने अपने पुश्तैनी घरों को सरसब्ज कर दिया। यह तब हुआ जब उत्तरांचल उत्थान परिषद ने रमेश सेमवाल के संयोजन में ‘‘प्रवासी पंचायत’’ का गठन किया है। पंचायत का शुद्ध कार्यक्रम है कि दूर-देश में रोजगार के लिए जा चुके लोग कम से वर्ष में एक सप्ताह के लिए अपने घरो की ओर लौटें और अपने-अपने गांव में ‘‘ग्रामोत्सव’’ का आयोजन करें। ऐसा जून माह में पिछले चार वर्षो से देखने को मिल रहा है।
श्री सेमवाल ने प्रवासी पंचायत के संयोजक बनने के बाद पहला काम अपने गांव ऋषिधार को सरसब्ज करने का किया। उन्होने घर छोड़ चुके लोगो से सम्पर्क साधा, हाॅट्सएप ग्रुप बनाया, गांव में ही ग्रामीणो के साथ बैठकर ‘‘जय भवानी जन कल्याण समिति’’ का गठन किया और 2014 में अपने ही गांव में ‘‘ग्रामोत्सव’’ का आयोजन कर डाला। इसके बाद तो ऋषिधार गांव के लोग जो बाहर स्थाई रूप से प्रवास कर रहे थे वे वापसी का मन बनाने लग गये, और गांव की समिति की सदस्यता ग्रहण करने लग गये।
मौजूदा समय में ऋषिधार गांव के सभी प्रवासी परिवार समिति के भी सदस्य है और समय-समय पर समिति के कोष में दान-चन्दा जमा करते हैं। इस तरह से समिति के कोष में हर वक्त पाच से छः लाख रूपय जमा रहते हैं। श्री सेमवाल ने बताया कि जब भी किसी ग्रामीण को धन की आवश्यकता पड़ती है तो वे बेफिक्र समिति से आर्थिक संसाधन उपलब्ध करता है और नियत समय पर बिना ब्याज जमा भी करवा देता है। यही नहीं गांव में मौजूदा समय में ग्राम विकास के लिए स्वीकृत धनराशी का शत्-प्रतिशत् उपयोग हो रहा है। ग्राम विकास में जहां कही भी आर्थिक संसाधनो की समस्या आड़े आती है तो वहां पर समिति मुस्तैद रहती है।
अब तो ऋषिधार गांव की रौनक लौट पड़ी है। गांव में सफाई एवं रास्तों से लेकर पेयजल की जहां अच्छी सुविधा है, वहीं लोग जल, जंगल, जमीन के संरक्षण के लिए संगठनात्मक कार्रवाई करते हैं। गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी गांव के लोग इसलिए उत्सुक हैं, कि जून माह के प्रथम सप्ताह में ‘‘ग्रामोत्सव’’ जो होने जा रहा है।
अब प्रवासी पंचायत से जुड़े 2500 सदस्य अपने-अपने गांवों में हर वर्ष ‘‘ग्रामोत्सव’’ का आयोजन करते हैं। जबकि पंचायत से 5000 लोग सदस्यता ले चुके हैं। बता दें कि भिलंगना ब्लाॅक में ऋषिधार गांव के आस-पास के गांव गंवाणा, महर गांव, छिटग्वाल गांव, कण्डार गांव, बजिंगा, चन्दला इत्यादि 10 गांवों के लोग भी अपने-अपने गांव में प्रवासी और गांववासी मिलकर ‘‘ग्रामोत्सव’’ का आयोजन करते हैं। यही नहीं इन गावों में खण्डहर पड़े घर अब आबाद हो गये हैं। लोग रोजगार की तलाश में कहीं भी प्रवास में रहे, मगर उनकी जड़े अब गांव में ही जम चुकी है।
काबिलेगौर यह है कि ऋषिधार गांव में सालो से बंजर पड़ी 50 एकड़ जमीन को ‘‘जय भवानी जन कल्याण समिति’’ ने सरसब्ज करने का बीड़ा उठाया है। समिति के माध्यम से इस जमीन पर ग्रामीण ‘‘चाय का बाग’’ विकसित करना चाहते हैं। हालांकि समिति ने सरकार को इस 50 एकड़ जमीन पर चाय का बागान विकसित करने का प्रस्ताव भेजा है।
परन्तु प्रवासी पंचायत के संयोजक रमेश सेमवाल का मानना है कि ग्रामीणों के साथ मिलकर ‘‘चाय बागान’’ को विकसित करने का वे हर सम्भव मदद करेंगे। ताकि गांव में ही स्वरोजगार के कुछ संसाधन उपलब्ध हो सके। इसके अलाव वे गांव में हर वर्ष स्कूलों के साथ मिलकर शैक्षणिक प्रतियोगिता करवाते हैं और मेधावी छात्रो को प्रोत्साहन करते है। इस तरह जहां गांव फिर से आबाद हो उठा वहीं गांवों के स्कूलो में छात्र संख्या में भी इजाफा होने लग गया हैं।
इधर पौड़ी जनपद अन्र्तगत बडौल गांव के लोग पलायन कर चुके थे। हाल ही में प्रवासी पंचायत की हरिद्वार, दिल्ली, मुम्बई व चण्डीगढ की बैठको में बडोल गांव के 22 युवाओं ने हिस्सा लिया। वे 22 नौजवान नोयडा स्थित में प्रतिष्ठित मल्टीनेशन कम्पनी की अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर अपने गांव बडौल पंहुच गये। जहां उन्होने डेयरी, गाय पालन, सब्जी उत्पादन, मशरूम जैसे स्वरोजगार के काम आरम्भ कर दिये। इस तरह टिहरी के सेमल्थ गांव, पौड़ी का चाई गांव भी लोगो से खाली हो चुके थे। पर इन गावों की रौनक अब देखते ही बनती है।
राज्य में बने प्रवासी मन्त्रालय प्रवासी पंचायत के संयोजक रमेश सेमवाल ने बताया कि बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री के दर्शन और जागेश्वर धाम, पाताल भुवनेश्वरी, मसूरी, नैनीताल व गोपेश्वर, पंचबदरी, पंचकेदार के दर्शन के लिए आवश्यक सुविधाओं का बुरा हाल है। प्रवासी पंचायत का मानना है कि सरकार को चाहिए कि देशभर में रह रहे लोगो के लिए सरकार ‘‘ग्रामोत्सव’’ का आयोजन करे। इस तरह यदि प्रतिवर्ष 10 लाख लोग अपने मूल गांव में एक सप्ताह के लिए आते हैं तो स्थानीय स्तर पर आर्थिक आमदानी का ग्राफ थोड़ा बढ जायेगा। जबकि प्रवासी पंचायत ऐसे कार्यक्रम बना चुकी है। जिस कारण अब तक 100 गांवो में प्रति वर्ष ग्रामोत्सव का आयोजन होता आ रहा है।
पंचायत की मांग है कि उत्तराखंड की विधानसभा में प्रवासी मंत्रालय का गठन किया जाए। जो देश-विदेशों में बसे प्रवासियों को गांव के विकास से जोडने हेतु विशेष प्रयास करे, और मंत्रालय विदेशों में रह रहे प्रवासियों की सुरक्षा सहित उन्हें यहाँ आर्थिक निवेश हेतु प्रेरित करे। सरकार के नाम प्रवासी पंचायत के सुझाव तीर्थाटन और पर्यटन को आर्थिकी का आधार बनायें। पुराने यात्रा मार्गों को पुनर्जीवित करके सामान्य नागरिक सुविधाएं जुटाई जाये।
उत्तराखंड के धार, बुग्याल, ताल, खाल, प्रयाग, सैण तथा अज्ञात रमणीय पर्यटन स्थलो को विकसित किया जाय। 45 वर्ग किमी तक फैली टिहरी झील को साहसिक पर्यटन के रूप में विकसित किया जाये। पर्यटन मित्र के रूप में स्थानीय युवकों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाये। चकबंदी बावत भमि बन्दोबस्त किया जाये। हिमांचल की तर्ज पर भू-उपयोग कानून बने।
‘‘मेरा गांव मेरा तीर्थ’’ की तर्ज पर राज्य के सभी धार्मिक स्थलो को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित किया जाये। जहां पर Medical tourism, Heritage tourism, Golf tourism, Adventure tourism, Winter game turism, ECo~ tourism, Wild Life tourism के लिए छोटे-छोटे स्पाॅट विकसित करके स्थानीय युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध करवाया जाये। पलायन की एक पीड़ा ऐसी राज्य ने अपने 16 साल के सफर में पलायन को रोकने की कोई कारगर नीति नहीं बना पाई।
हालात इस कदर है कि राज्य से लगभग 17 फिसदी लोग रोजगार की तलाश में हर वर्ष हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल तथा उधमसिंहनगर जैसे जिलों में आकर बस रहे है। जबकि जितनी राज्य की जनसंख्या है उतने ही लोग देशभर में रोजगार के लिए पूर्व से ही पलायन कर चुके हैं। इधर सीमांत गांव खाली होते सुरक्षा की दृष्टी से संवेदनशील बनते जा रहे हैं। यदि कारगिल की घुसपैठ को वहां के चरवाहे पता लगाकर उचित समय पर सेना को अवगत नहीं कराते तो शायद सुरक्षा की जंजीर टूट चुकी होती। मगर उत्तराखण्ड के सीमान्त गांव अब खाली होते जा रहे हैं। वहां पर ना तो कोई चरवाहे हैं और ना ही कोई स्थानीय सूचना के स्रोत हैं।
चाई ग्रामोत्सव की तैयारियां जोरो पर
2जून से शरू होगा त्रिदिवसीय महोत्सव
चाई गांव में गंगा दशहरा के दिन से शुरू होने वाले ग्रामोत्सव की तैयारियां इन दिनों जोरो पर है। यूँ तो मेलो की संस्कृति से भरपूर देवभूमि में साल भर तीज त्यौहार की परम्परा रही है।लेकिन आज सब कुछ बिलुप्त होता जा रहा है।ऐसे समय में ग्रामोत्सव के आयोजन एक बड़ी आशा लिए हुए है। प्रदेश का चाई ग्राम बिगत सात सालो से इस परम्परा को आगे बड़ा रहा है।
पौड़ी गढ़वाल के जयहरीखाल ब्लॉक के चाई ग्राम निवासी गंगा दसहरा के पावन पर्व पर पूर्व की भांति इस वर्ष भी त्रिदिवसीय चाई ग्रामोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।जिसकी तैयारिया इन दिनों जोरो पर है। श्री नवदुर्गा मंदिर ग्रामोत्थान समिति के अध्यक्ष जगमोहन बुडाकोटी ने बताया कि 2 जून को देवी पूजन, कलस यात्रा के साथ शुरुआत होगी
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला पंचायत अध्यक्ष पौड़ी दीप्ती रावत व बिशिष्ठ अतिथि कैंट बोर्ड उपाध्यक्ष डॉ एस पी नैथानी होंगे पहले दिन ग्राम विकास और बढ़ते पलायन पर बिचार गोस्ठी की जायेगी दूसरे दिन 3 मई को मुख्य अतिथि प्रदेश के कैबनेट मंत्री धन सिहं रावत होंगे,इस दिन स्वास्थ्य शिवर एवम सास्कृतिक कार्यकर्मो का आयोजन किया जायेगा।अंतिम दिन हबन पूजन और विशाल भंडारे के साथ समापन किया जायेगा। देश प्रदेश में रह रहे ग्रामीण इस अवसर पर अपने गांव आना नहीं भूलते और ओरो को भी प्रेरित करते है।
देवेन्द्र का कहना है कि ग्रामोत्सवो के ये कार्यक्रम सिर्फ अपनी जन्मभूमि की याद दिला रहे है।बल्कि पलायन कर गई एक पीडी को दूसरी से मिलाने का काम भी कर रही है। चाई ग्रामोत्सव बिगत 2010 से लगातार गंगा दसहरा के दिन से तीन दिनों तक चलता है। जिसमे देश बिदेश में रहने वाला हर ग्रामीण भाग लेता है ग्रामोत्सव के इस आयोजन में देवपूजन के साथ बिभिन सास्कृतिक कार्यकर्म, ग्राम्य बिकास संबंधी बहस, गोष्ठीयां होती है पलायन को रोकने और गांव से जुड़ने का संकल्प होता है।
देवेन्द्र कहते है कि ऐसे ग्रामोत्सव देश के हर गांव में होने चाहिए जिससे यह एक परम्परा बन जाय। इसका बिस्तार हो ताकि गांव गलियारों से एक सम्बन्ध जुड़ सके। पौड़ी निवासी 60 बर्षीय घनश्याम डबराल बताते है कि जो आनंद हर्षोल्लास पुराने समय में घर गावो में था वह आज कम ही देखने को मिल रहा है। इसका एक बहुत बड़ा कारण भी है कि युवा पीडी नोकरी की तलाश में एक बार घर से बाहर क्या निकली सो फिर प्रदेश की ही होकर रह गई।ग्रामोत्सव के यह आयोजन जड़ो से जुड़ाव करवाते ही है साथ ग्राम्य विकास की नई सोच को भी बिकसित करती है।