देहरादून । उत्तराखण्ड सूबे में जहां सरकारी विद्यालयों के अंदर पठन-पाठन के दौरान बेहद सुस्तपन रहता आया है तो वहीं पब्लिक स्कूलों की मनमानी भी सातवें आसमान पर ही रही है। इन पब्लिक स्कूलों की मनमानी पर शिकंजा कसने के लिए पूर्व की सरकारों के पास भी ढेरों शिकायते पहुंचती रही हैं लेकिन सभी शिकायतें या तो दबकर रह गयी हैं या फिर उन पर दिये गये आदेशों को विभागीय अफसरों द्वारा धुएं में उड़ा दिया गया। इन स्कूलों पर शिकंजा कसने के लिए एक बार फिर से मौजूदा भाजपा की सरकार ने प्रयास किया हैं। विद्यालयी शिक्षा मंत्री अरविन्द पांडे ने कई पीड़ित अभिभावकों की समस्या रूपी दर्द को सुनते हुए पब्लिक स्कूलों की ओर अपनी आंखें तिरछी करते हुए आदेश तो दे दिये हैं लेकिन मुख्य बात यह है कि क्या मंत्री के फरमानों पर बेलगाम पब्लिक स्कूल अमल करेंगे? या फिर पहले की तरह आदेशों की धज्जियां उड़कर रह जाएंगी।
राज्य में पब्लिक स्कूलों द्वारा रि-एडमीशन के लिए भी फीस लिये जाने की शिकायतों पर मंत्री अरविन्द पांडे ने गंभीर होकर बेलगाम स्कूलों को यह ली गयी फीस वापस किये जाने के फरमान जारी किये है। अक्सर यह बात सामने आती रही है कि ये पब्लिक स्कूल अपने स्कूल के नियमों के आगे किसी का भी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करते है। ये वह पब्लिक स्कूल हैं जिनमें से कई स्कूलों में छोटे अफसरों से लेकर बड़े अफसरों के बच्चे शिक्षा गृहण करते हैं। यही नहीं, मंत्रियों, कई विधायकों एवं अन्य जनप्रतिनिधियों के बच्चे भी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। ऐसे में जो भी शिकायतें पूर्व में भी सामने आती रही हैं वे संभवतः निष्प्रभावी ही रही है। राजधानी दून में कई पब्लिक स्कूल ऐसे हैं जहां पर एडमीशन के लिए प्रवेश भी बड़ी-बड़ी सिफारिशें लगती हुई सामने आयी हैं। इसके अलावा डोनेशन फीस का प्रचलन भी कम नहीं है। कई-कई शुल्क इन पब्लिक स्कूलों द्वारा बच्चों के अभिभावकों से वसूले जाते हैं, जो कि आम शुल्कों में शुमार है। ऐसे में विभागीय मंत्री के आदेश चल भी पाएंगे या नहीं, यह बडा सवाल है।
गौरतलब है कि पब्लिक स्कूलों की मनमानी के खिलाफ बार-बार आवाजें बुलंद होती रही हैं। विभिन्न संगठनों तथा राजनैतिक दलों द्वारा पब्लिक स्कूलों के विरूद्ध मोर्चा खोला जाता रहा है। लेकिन मामला सिर्फ धरना-प्रदर्शन एवं ज्ञापनों को देने तथा कोरा आश्वासन मिलने तक ही सिमटा हुआ दिखाई दिया है। दरअसल, इन दिनों पब्लिक स्कूलों में नये प्रवेशों की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे समय में इन स्कूलों पर दबाव की राजनीति भी संचालित हो रही है। लेकिन जहां तक रि-एडमीशन के नाम पर शुल्क अथवा फीस ली जा रही है तो वह उचित नहीं है। अनेक स्कूलों में डोनेशन के नाम पर लाखों रूपये वसूल किये जाते है। ऐसा होने से सामान्य वर्ग के लोगों अथवा अभिभावकों की आर्थिक स्थिति पर उलटा प्रभाव पड़ रहा है।