सुप्रीम कोर्ट से सरकार को अतिक्रमणअभियान रोकने पर नहीं मिली राहत

- अतिक्रमण हटाने के आदेश नैनीताल हाईकोर्ट ने दिए हैं तो वहीं करें अपील : सुप्रीम कोर्ट
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
DEHRADUN : प्रदेश की चर्चित ब्यूरोक्रेसी ने एक बार फिर राज्य सरकार की फजीहत करवा दी है। पहले तो अतिक्रमण हटाने के अभियान पर अपने ही उच्च न्यायालय में ठीक से पक्ष नहीं रख पाए उसके बाद जब न्यायालय ने एक माह के भीतर अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए तो उसमें भी सरकार की फजीहत करते हुए अपनों के अतिक्रमण पर नरम तो परायों के अतिक्रमण पर जेसीबी चलवाकर सरकार की बुरी तरह किरकिरी कर डाली।
अब जब सरकार को महसूस हुआ कि ब्यूरोक्रेसी तो सरकार की छवि पर बट्टा लगाने पर तुली है तो मुख्यमंत्री को अँधेरे में रखते हुए उन्ही से बयान दिलवा डाला कि सरकार अब इस अतिक्रमण विरोधी अभियान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी और अब वहां दो दिन डेरा डालकर लौटे अपर मुख्या सचिव ओम प्रकाश एक बार फिर खाली हाथ देहरादून लौट आये हैं क्योंकि अतिक्रमण पर उत्तराखंड सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली और सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की अतिक्रमण हटाने की समयसीमा बढ़वाने वाली याचिका खारिज करकरते हुए दो टूक कह दिया कि अतिक्रमण के आदेश नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा दिए गए हैं, तो वहीं अपील करें। हालाँकि कंपाउंडिंग की व्यवस्था समाप्त करने व भवनों के नक्शे पास करते समय स्ट्रक्चरल इंजीनियर के प्रमाण पत्र को अनिवार्य किए जाने के हाईकोर्ट के आदेश को जरूर स्टे कर दिया गया।
अब सूबे की ब्यूरोक्रेसी को कौन समझाए जब नैनीताल उच्च न्यायलय में ठीक से पैरवी की होती तो न तो सरकार को यह दिन देखना पड़ता और न ब्यूरोक्रेसी की छिछालेदारी होती गौरतलब हो कि अतिक्रमण के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश की समयसीमा बढ़वाने के लिए मुख्यमंत्री के निर्देशों पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसमें प्रदेश में भारी बारिश के चलते हो रही समस्याओं से अवगत कराया गया था।
याचिका में कहा गया था कि इन दिनों अधिकारी और कर्मचारी आपदा प्रभावित कार्यों में व्यस्त हैं। वहीं, बारिश के चलते अतिक्रमण हटाओ अभियान में आम जनता को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में हाईकोर्ट द्वारा अतिक्रमण हटाने के लिए दी गई चार सप्ताह की समयसीमा बढ़ाई जानी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने दून निवासी मनमोहन लखेड़ा के वर्ष 2013 में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजा था। जिसे जनहित याचिका के रूप में लेते हुए हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश राजीव शर्मा व न्यायाधीश लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की।
खंडपीठ ने मुख्य सचिव को चार सप्ताह में देहरादून की सड़कों से अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए थे। साथ ही उन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा, जिनके कार्यकाल के दौरान अतिक्रमण हुआ है। कोर्ट ने आदेश में कहा था कि यदि तय समय में अतिक्रमण नहीं हटता है तो इसके लिए मुख्य सचिव व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे। साथ ही तीन महीने में रिस्पना नदी के किनारे से अतिक्रमण हटाकर नदी को पुनर्जीवित करने को कहा था।
इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के लिए पूरी ताकत झोंकने और जरूरत पड़ने पर धारा 144 लगाने को कहा। इसके अलावा सरकार, एमडीडीए और नगर निगम को निर्देश दिए कि वो तीन सप्ताह के भीतर ऐसे मॉल, शोरूमों को सील करें, जिनके बेसमेंट पार्किंग के स्वीकृत हैं, लेकिन जगह का व्यावसायिक उपयोग हो रहा है। वहीं, आवासीय भवनों में व्यावसायिक प्रतिष्ठान मिलने पर उन्हें भी सील करने के आदेश दिए थे।
वहीँ इस मामले पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि सरकार अतिक्रमण को लेकर गंभीर नहीं है। उनका कहना है कि सरकार में बैठे लोगों को यह जानकारी होने चाहिए थी कि उन्हें इस मुद्दे पर कौन सी कोर्ट में जाना चाहिए। प्रीतम सिंह ने सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि सरकार में एक भी अधिवक्ता ऐसा नहीं है जो इस मामले की पैरवी कर सके। उनका कहना है कि सरकार के विधायक ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए हैं। लगता है कोई भी अतिक्रमण को लेकर गंभीर नहीं है। जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है।