अपर मुख्य सचिव के पत्र पर सख्त कदम उठाने से कतरा रही सरकार
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून । लॉकडाउन के नियमों को धता बता उत्तराखंड के भीतर तक चमोली जिले के प्रवेश द्वार तक पहुंच दबंगई दिखाने वाले उत्तर प्रदेश के विधायक अमनमणि त्रिपाठी के प्रति दरियादिली दिखाने वाली उत्तराखंड सरकार को उत्तर प्रदेश ने अपने ही विधायक पर कठोर एक्शन लेकर उत्तराखंड को आइना दिखाया है। हालांकि उत्तराखंड में दो-दो स्थानों पर विधायक के खिलाफ मुकदमा तो दर्ज किया गया लेकिन उसे यहाँ से उत्तर प्रदेश कैसे जाने दिया गया, क्यों नहीं यहाँ के अधिकारी विधायक और उसके साथियों को क्वारेंटाइन करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये ? इस अपर भी अभी जांच होनी बाकी है कि आखिर किस अधिकारी के दबाव में कानून का उलंघन कर रहे लगभग एक दर्जन लोगों को छोड़ा गया और उधर उत्तर प्रदेश की सीमा में पहुंचते ही विधायक को उप्र सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि जब उत्तर प्रदेश यह कर सकता है तो उत्तराखंड सरकार सख्त कदम उठाने से क्यों कतराती रही।
हालांकि,अब इधर शासकीय प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने विधायक को अनुमति देने के मामले में अफसरों की चूक मानते हुए जांच कराने की बात तो कह रहे हैं , मगर तीन दिन बीत जाने के बाद अभी तक जांच अधिकारी नियुक्त नहीं किया गया है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या अपर मुख्य सचिव कानून से ऊपर है ? वहीं मामले में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह का कहना है कि पुलिस ने जो एफआइआर दर्ज की है, अब उसी के आधार पर विवेचना होगी। ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि सरकार और शासन की अलग -अलग बात क्यों बोल रहे हैं और दोनों में सच कौन बोल रहा है। चर्चा तो यहाँ तक है कि सरकार और शासन दोनों को पता है कि मामले में अपर मुख्यसचिव की भूमिका संदेहास्पद है इसलिए दोनों ही इस हाइप्रोफाइल मामले को पूरी तरह रफा-दफा करने की तैयारी में हैं।
गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश के विधायक अमनमणि त्रिपाठी मामला पिछले तीन दिनों से सुर्खियों में है। वह बेधड़क अपने 11 साथियों के साथ उत्तराखंड आते हैं। वे बदरीनाथ और केदारनाथ जाने की अनुमति भी लेते हैं, जबकि वहां जाने की किसी को इजाजत नहीं है। फिर हरिद्वार, देहरादून, टिहरी, चमोली और पौड़ी जिलों की सीमा से होते हुए कर्णप्रयाग तक पहुंचते हैं। इस दौरान पांच स्थानों पर विधायक ने नियम कायदों का उल्लंघन किया, मगर अफसर उन्हें सैल्यूट करते रहे। यही नहीं, अफसरों से बदसलूकी के बावजूद उन्हें जाने कैसे दिया गया, इस सवाल का जवाब आना बाकी है।
सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि विधायक को अनुमति ही क्यों दी गई, क्यों उनके लिए रेड कार्पेट बिछाया गया, क्यों सरकारी काम में बाधा व बदसलूकी के मामले दर्ज नहीं किए गए। ऐसे एक नहीं कई सवाल मुहंबाए खड़े हैं। यही विधायक जब उत्तराखंड से अपने राज्य उत्तर प्रदेश पहुंचते हैं तो कानून के उल्लंघन के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर क्वारंटाइन में भेज दिया जाता है। प्रश्न उठ रहा कि ऐसा साहस उत्तराखंड क्यों नहीं दिखा पाया।
छीछालेदर के बाद सोमवार को शासकीय प्रवक्ता एवं कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने विधायक को अनुमति दिए जाने को अफसरों की चूक माना था। साथ ही मामले की जांच की बात कही थी। इसके बावजूद जिम्मेदारों के खिलाफ एक्शन तो दूर अभी तक कोई जांच अधिकारी नियुक्त न होना, सरकारी रवायत पर सवाल खड़े करता है। मंगलवार को मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने जांच कमेटी के सवाल को टाल दिया। अलबत्ता, कहा कि कानून सबके लिए बराबर है। जो एफआइआर दर्ज हुई है, उसी के आधार पर विवेचना होगी और जो निकलकर आएगा, उसी के अनुरूप कार्रवाई होगी।