पेयजल निगम में न सरकार की चलती है और शासनादेशों की !
- निगम में चल रहे प्रशासनिक कदाचार पर कर्मचरियों में मुख्यमंत्री को भेजा पत्र!
- शासनादेशों की धज्जियां उड़ाने पर आमादा निगम का आला अधिकारी !
- प्रतिबन्ध के बावजूद कुछ लोगों की संविदा पर नियुक्ति की फाइल चेयरमैन व सचिव को भेजी!
देहरादून : उत्तराखंड में एक विभाग ऐसा है जहाँ न प्रदेश सरकार के शासनादेश लागू होते हैं और न राज्य सरकार का कोई कायदा कानून। ये न मुख्यमंत्री को अपने से ऊपर मानते हैं न अपने विभाग के ही मंत्री को। विभाग के चेयरमैन से लेकर सचिव तक इनकी मुट्ठी में बताये जाते हैं जो चाहते हैं कर डालते हैं हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड पेयजल निगम की।
कहने को तो समूचे उत्तराखंड में प्रदेश सरकार ने संविदा और पुनर्नियुक्ति पर रोक लगायी हुई है लेकिन राज्य सरकार का यह महकमा न सरकार के आदेशों को तवज्जो देता है और न अपने मंत्री व मुख्यमंत्री के आदेशों को। घाटे में चल रहे उत्तराखंड पेयजल निगम की पोल खुद वहां के कर्मचारी खोल रहे हैं बीती 12 अक्टूबर को कर्मचारियों ने सूबे के मुख्यमंत्रो से लेकर सूबे के विभागीय मंत्री और मुख्य सचिव व सचिव पेयजल को एक पत्र भेजकर विभाग के आला अधिकारियों की कार्य प्रणाली को ही सन्देश के घेरे में लाते हुए संस्थान को क्षति पहुंचाने का आरोप लगाया है।
मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में कहा गया है कि घाटे में चल रहे निगम में तथा प्रधान कार्यालय में अनधिकृत रूप से विभागीय व शासनादेशों का उलंघन कर नियमविरुद्ध सेवा निवृत कर्मियों को संविदा पर रखते हुए निगम और सरकार को चूना लगाया जा रहा है। पत्र में लिखा गया है कि अधिशासी अभियंता मुकुल सिन्हा, मुख्य अभियन्ता सुनील कुमार वैयक्तिक सहायक आनंद जोशी ,चपरासी बेलवाल और शांति प्रसाद को सेवानिवृति होने के बाद भी संविदा पर तैनाती दी गयी है। जबकि विभाग में नियमित फील्ड कर्मचारी जो मिनिस्ट्रियल स्टाफ एवं चतुर्थ श्रेणी स्टाफ की योग्यता रखते हैं को तैनात न करते हुए अनावश्यक रूप से सेवा निवृत कर्मियों को पुनर्नियुक्त कर निगम सहित सरकार पर व्ययभार बढ़ाया जा रहा है।
पत्र में कहा गया है कि शासन द्वारा बीती 12 सितंबर 2017 को प्रमुख सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी द्वारा निर्गत शासनादेश संख्या 41 /XXX II (7 )50 (4) 2017 में साफ़ तौर पर कहा गया है कि समूह ”ग” व ”घ” के पदों पर पुनर्नियुक्ति अथवा पर्न नियोजन नहीं किया जाएगा, लेकिन विभागीय प्रबंध निदेशक द्वारा उक्त शासनादेश का खुला उलंघन करते हुए मनमाने ढंग से अपने चहेतों को संविदा पर रखा जा रहा है इतना ही नहीं इनकी संविदा अवधि बार-बार बढाकर सरकार को व निगम को आर्थिक क्षति पहुंचाई जा रही है।
वहीँ पत्र में लिखा गया है कि प्रबंध निदेशक कैंप में रोहणीवाल वैयक्तिक सहायक की तैनाती की जानी थी लेकिन उनकी तैनाती इसलिए नहीं की गयी कि उन्हें प्रबंध निदेशक का विश्वास पात्र नहीं माना जाता है जबकि उक्त पद पर और उक्त वेतनमान में रोहणीवाल ही अहर्ता रखते हैं। परन्तु उन्हें नज़रअंदाज़ कर और नकारा घोषितकरके नियम विरुद्ध आनंद जोशी को महत्वपूर्ण पद पर कैंप कार्यालय में इसलिए रखा गया है कि वह सेटिंग -गेटिंग कर प्रबंध निदेशक के काले कारनामों में सहयोग दे सकें।
पत्र में कहा गया है कि उन्हें सूत्रों से जानकारी प्राप्त हुई है कि आनंद जोशी को पुनः एक साल के लिए संविदा पर रखने के सम्बन्ध में जो पत्रावली बनायीं गयी है उसमें जोशी को विभिन्न फार्मों के प्रतिनिधियों से संपर्क करने एवं वार्तालाप करने में निपुण होने का उल्लेख है। पत्र में कहा गया है कि यह सत्य है कि आनंद जोशी द्वारा ही फार्मों के मालिकों एवं प्रतिनिधियों से सांठ गांठ क्र प्रबंध निदेशक से मिलाया जाता है इसीलिए आनंद जोशी जो कि वर्तमान में संविदा पर हैं को ऐसे महत्वपूर्ण पद पर रखा गया है एवं उन्हें कैंप कार्यालय के महत्वपूर्ण अभिलेख तक सौंपे गए हैं। जबकि उपरोक्त शासनादेश दिनांक 12 सितम्बर 2017 के अनुसार उन्हें कोई भी अधिकार इस पद के लिए अधिकृत नहीं करते। जबकि कैंप कार्यालय में पूर्ण कालिक रूप में बहुगुणा वैयक्तिक सहायक को नज़रअंदाज़ करके उनसे कोई कार्य नहीं लिया जा रहा है।
मुख्यमंत्री सहित पेयजल मंत्री को भेजे गए इस पत्र में कहा गया है कि शासनादेश के अनुसार समय रहते इन संविदा के पदों पर तुरंत रोक लगाए जाने की जरुरत है।