गोल्डन कार्ड धारकों को मना करने वालो का स्थायी लोक अदालत में होगा समाधान
देवभूमि मीडिया ब्यूरो। कोरोनाकाल में सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य सुविधा की सामने आ रही है। सरकार की ओर से पांच लाख रुपये तक के इलाज के लिए गोल्डन कार्ड की सुविधा दी हुई है, लेकिन कई विसंगतियों के कारण कार्डधारक इस योजना का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। दरअसल, कई अस्पताल इस योजना के तहत इलाज करने से मना कर रहे हैं तो कई गोल्डन कार्ड होने के बाद भी मरीजों से पैसे मांग रहे हैं। ऐसी स्थिति में स्थायी लोक अदालत एक ऐसा माध्यम है जहां पर एक साधारण शिकायती पत्र देकर ही आपकी समस्या का समाधान हो सकता है।
स्थायी लोक अदालत के चेयरमैन व अतिरिक्त जिला जज राजीव कुमार के अनुसार देखने में आ रहा है कि सूचीबद्ध होने के बावजूद अस्पताल गोल्डन कार्ड धारकों का इलाज करने से मना कर रहे हैं। यदि किसी भी व्यक्ति को क्लेम से संबंधित कोई समस्या है तो वह कोर्ट के माध्यम से निशुल्क अपना केस लड़ सकता है।
दोनों पार्टियों को बुलाकर कोशिश की जाती है कि आपसी सुलह समझौते से केस का निपटारा किया जाए। एक पक्ष सुलह समझौते के लिए तैयार नहीं होता तो ऐसी स्थिति में अदालत के पास निर्णय लेने का अधिकार है। स्थायी लोक अदालत में दो से तीन महीने में ही निर्णय हो जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि अदालत के निर्णय पर कहीं अपील भी नहीं की जा सकती है। एडीजे ने बताया कि जन उपयोगी सुविधाओं के लिए स्थायी लोक अदालत एक बहुत अच्छा माध्यम है, लेकिन जनता को अदालत की जानकारी न होने के कारण परेशान होना पड़ता है। एकमात्र स्थायी लोक अदालत ही है, जहां पर एक सादे कागज पर कोई भी अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है। कोर्ट में केस पूरी तरह से निशुल्क चलता है। एडीजे ने बताया कि कोरोना कर्फ्यू के कारण स्कूल बंद हैं। सरकार की ओर से आदेश जारी किया गया है कि स्कूल केवल ट्यूशन फीस ही लेंगे, इसके बावजूद स्कूल प्रबंधन कई तरह की फीस वसूलकर अभिभावकों को प्रताड़ित कर रहे हैं। यदि किसी भी अभिभावक से स्कूल प्रबंधन ट्यूशन फीस के अलावा अन्य फीस वसूलता है तो इसकी शिकायत भी अदालत में की जा सकती है।
उत्तराखंड में स्थाई लोक अदालतें चार जिलों में चल रही हैं, जिनमें देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और यूएसनगर हैं।