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वन विभाग के अफ़सरों को अब जंगल में बिताना ही होगा अपना समय

  • जयराज ने पद संभालने के बाद जारी किये दो बड़े आदेश 
  • प्राइवेट वाहनों के उपयोग पर जहाँ रोक, वन अधिकारियों का जंगल में जाना अनिवार्य

देहरादून : वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक पद पर जयराज की ताजपोशी क्या हुई कि वन विभाग पर पिछले  17 सालों से सो रहा वन विभाग जाग उठा है।  प्रमुख वन संरक्षक जैसे खुद टिप-टॉप रहते हैं वे चाहते है उनका महकमा भी वैसा ही चुस्त-दुरुस्त रहे। यही कारण है कि उन्होंने अपनी ताजपोशी के बाद विभाग के अधिकारियों के लिए दिशा निर्देश जारी करते हुए उन्हें जंगल में समय बिताने का फरमान जारी कर  दिया। उसके बाद से ही विभाग में हलचल शुरू हो गयी है।  उनके द्वारा जारी निर्देशों के मुताबिक अब महीने में डीएफओ (प्रभागीय वनाधिकारियों ) को जंगल में 15 रात, वन संरक्षक को 13 रात, अपर प्रमुख वन संरक्षक व मुख्य वन संरक्षक 12 रात, प्रमुख वन संरक्षक- वर्किंग प्लान 8 रात और खुद प्रमुख वन संरक्षक 6 रात जंगलों में बितानी होगी।

गौरतलब हो कि जनवरी के आखिरी सप्ताह में राजेन्द्र कुमार महाजन के सेवा निवृत होने के बाद प्रमुख वन संरक्षक का पद संभालने जयराज ने दो बड़े आदेश जारी किए जिससे बाद से सोये हुए वन अधिकारियों की नींद उड़ गई है। उन्होंने अपने पहले आदेश में  वन विभाग में पिछले काफी समय से प्राइवेट वाहनों के उपयोग पर जहाँ रोक लगा दी है तो वहीँ  दूसरे आदेश के तहत सभी वन अधिकारियों का जंगल में जाना अनिवार्य कर दिया है।

प्रदेश  के प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने पद संभालने के दस दिन बाद ही प्रमुख वन संरक्षक ने वन अधिकारियों को कसना शुरू कर दिया है।  शुक्रवार को जारी आदेश में उन्होंने फ़िज़ूलखर्ची पर अंकुश लगाने के लिए अधिकारियों के किराए पर लिए गए लग्ज़री वाहन लेने पर रोक लगाने के आदेश जारी कर दिए हैं । इस आदेश के बाद अब फ़रवरी के बाद कोई भी अधिकारी बिना किसी ठोस कारण के लग्जरी वाहन किराए पर नहीं ले पाएगा। इससे विभाग को सालाना करीब 84 लाख रुपये की बचत होने की उम्मीद जताई गयी है।

वहीँ प्रमुख वन संरक्षक ने एक और बड़ा आदेश जारी किया है जिसके के तहत राज्य और ज़िला मुख्यालय में समय गुज़ारने वाले वन अधिकारियों के लिए जंगल में जाना अनिवार्य कर दिया गया है आदेश की ख़ास बात यह भी है कि वे खुद भी जंगल में समय बिताएंगे। उनके द्वारा जारी आदेश के अनुसार डीएफओ को जंगल में 15 रात, वन संरक्षक को 13 रात, अपर प्रमुख वन संरक्षक व मुख्य वन संरक्षक 12 रात, प्रमुख वन संरक्षक- वर्किंग प्लान 8 रात और खुद प्रमुख वन संरक्षक 6 रात बितानी होगी ।

उनके इस आदेश के अनुसार अब सभी वन अधिकारी जंगल में जाकर ज़मीनी स्थितियों की पड़ताल करेंगे और हर हफ़्ते इसकी रिपोर्ट वन मुख्यालय को भेजेंगे। वहीँ जंगलों के दौरे के सबूत के तौर पर अधिकारियों को मौके से फ़ोटोग्राफ़्स भी लेनी होंगी  जो उन्हें वन मुख्यालय भेजनी होगी।  अब यह तो समय ही बताएगा कि वन अधिकारी कितने समय तक अपने आका के इस आदेश का पालन करते हैं या यह आदेश बाद में मात्र औपचारिक आदेश ही बनकर रह जायेगा यह तो आने वाला वक़्त बताएगा लेकिन प्रमुख वन संरक्षक के आदेश के बाद वन विभाग के सोये हुए अधिकारियों की नींद जरूर टूटी है और उन्हें अपने कर्तव्यों का अहसास भी हो रहा है। 

वहीँ यदि क्षेत्रफल की दृष्टि से देखें तो  उत्तराखंड का सबसे बड़ा इलाका लगभग 73  फ़ीसदी भूभाग पर वन क्षेत्र है और इस वन संपदा की देखरेख में विभागीय लापरवाही राज्य का बड़ा नुक़्सान पहुंचाती रही है। माना जा रहा है कि अब यह चलन रुकेगा, और विभागीय सम्पदा का संरक्षण हो पायेगा। 

devbhoomimedia

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