वित्तीय प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान में ही वित्तीय अनियमितताएं !

- चिराग तले अँधेरा………….
- दूसरों के लिए तो कड़क तो अपने लिए गैरकानूनी रास्ता !
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : एक कहावत है चिराग तले अँधेरा वह भी सूबे के एक ऐसे विभाग की कारस्तानी है जो दूसरों के लिए तो कड़क नियम अपनाता है लेकिन अपने लिए वह कोई भी रास्ता अपनाये वह उसे गैरकानूनी नज़र नहीं आता। यहाँ बात कर रहे हैं उत्तराखंड सेंटर फॉर ट्रेनिंग एंड रिसर्च इन फाइनेंसियल एडमिनिस्ट्रेशन सुद्धोवाला की। विभाग के नाम से ही साफ़ पता चलता है कि यह विभाग वित्तीय प्रशासन का प्रशिक्षण देता है लेकिन यह कितना वित्तीय प्रशिक्षण दे रहा है यह तो भगवान ही जाने लेकिन यहाँ के मातहत अधिकारियों की मिली भगत से बीते कई सालों से जो घपला घोटाला चल रहा है उससे अधिकारियों की जेबें तो जरूर भरी जा रही होंगी लेकिन यहाँ काम करने वाले कामगारों के जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस संस्थान की सुरक्षा, रखरखाव और खान-पान की व्यवस्था का कार्य पडोसी राज्य हिमाचल प्रदेश की एक संस्था द्वारा किया जा रहा है, जिसके पास न तो उत्तराखंड राज्य में प्राइवेट सेक्युरिटी एजेंसी रेगुलेशन एक्ट (फसाटा) का ही पंजीकरण है और न ही राज्य के श्रम विभाग का ही पंजीकरण। इतना ही नहीं इस संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों का कर्मचारी बीमा निगम (ईएसआई ) में ही पंजीकरण है। यही कारण है कि यहाँ सेवा दे रहे कर्मचारियों के पास ईएसआई का कार्ड भी नहीं जिससे इनको केंद्र सरकार के ईएसआई अस्पतालों में स्वास्थ्य व चिकित्सा सेवाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है।
विभागीय अधिकारी बीते कई सालों से इस संस्थान को सेवा देने वाली संस्था से मिली भगत कर संस्था को तो लाखों रुपये प्रतिमाह का भुगतान कर अपनी और सेवा प्रदाता संस्था की जेबें तो भर रहे हैं लेकिन यहाँ काम करने वाले कामगारों के भविष्य के प्रति उदासीन बने बैठे हैं , जबकि निविदा शर्तों में यह साफ़ निर्देशित था कि सेवा प्रदाता संस्था का उत्तराखंड के श्रम विभाग से लेकर तमाम अन्य विभागों का पंजीकरण आवश्यक होना नितांत जरूरी होगा जो संस्था को कार्य प्रारम्भ करने से पहले संस्थान में जमा करवाना अनिवार्य होगा , लेकिन यहाँ तो दीपक तले अँधेरा है जिसने जांच करनी थी, जिसने दस्तावेजों को देखना था वह संस्थान ही आँख बंदकर हिमाचल की संस्था से मिलीभगत कर अपनी और हिमाचल की संस्था की जेबें भरने में मशगूल है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है जो संस्थान खुद ही वित्तीय प्रबंधन का ठीक से खुद अपने ही संस्थान में पालन नहीं करवा पा रहा है वह उत्तराखंड जैसे पर्वतीय प्रदेश के विभागों में कैसे वित्तीय प्रबंधन पर अपनी टिप्पणी देगा।