Uttarakhand

!!विजयदशमी का पर्व, शक्तिशाली बनने का संकल्प!! (कमल किशोर डुकलान ‘सरल’)

भारतीय हिन्दू समाज तेत्रा युग से आजतक लगातार बुराई के प्रतीक रावण,कुम्भकरण,मेघनाद के पुतलों का दहन कर बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक विजयदशमी पर्व मनाता आ रहा है।…..

विजय दशमी का पावन पर्व चिर पुरातन भारतीय संस्कृति में वीरता का पूजक और शौर्य का उपासक रहा है। शक्ति स्वरूपा मां जगद् जननी मां दुर्गा शिव संकल्पों के सफल होने का आधार है। सर्वत्र पवित्रता व शान्ति स्थापन करने के लिए भी शक्ति का आधार अनिवार्य है। मां दुर्गा शक्ति व चैतन्यता का प्रतिनिधित्व करती हैं, इसलिए हम विजय दशमी से पहले शक्ति प्राप्त करने के लिए मां दुर्गा की आराधना करते हैं। विजय दशमी का पर्व मां दुर्गा द्वारा महिषासुर बध एवं भगवान श्री राम द्वारा रावण बध के साथ असत्य पर सत्य की विजय से जुड़ा पर्व है।
विजय दशमी का पर्व वर्षा ऋतु से शरद ऋतु परिवर्तन का सूचक भी है। दशहरे पर्व का सांस्कृतिक पहलू देखा जाए तो यह पर्व भारत की कृषि प्रधानता से जुड़ा पर्व है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति को घर लाता है तो किसान के उल्लास और उमंग का ठिकाना नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर किसान भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। दशहरे पर्व के दूसरे पहलू को देखें तो यह पर्व वर्षा ऋतु से जुड़ा पर्व भी है। वर्ष ऋतु के बाद जब नदियों की बाढ़ थम जाती है, किसान द्वारा धान की फसल आदि सहेज कर रखे जाती है। प्राचीन काल में राजा महाराजा रथ यात्रा के द्वारा विजय दशमी पर्व पर प्रत्येक मानव को अपने अन्दर के क्रोध,विवश,लोभ,अत्यारुढी,ईर्ष्या,द्वेष,निराशा,संशय,मोह,आलस रावण रूपी दस बुराइयों को त्यागकर बिनिर्धन,क्षमाशील,नम्रता,दयालुता,प्रेम,आशा,धैर्य,विवेक,निग्रह जैसी दस अच्छाइयों को अपने अन्दर समाहित करने की प्रेरणा देते थे।

भगवान श्री राम दुर्गा मां के भक्त अनन्य भक्त थे,भगवान श्री राम द्वारा लंका पर चढाई करते समय वानर सेना द्वारा रामसेतु के निर्माण के बाद लंका पहुंचने के बाद युद्ध से पूर्व नौ दिनों तक मां दुर्गा की कठिन आराधना,उपासना की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध कर असत्य पर सत्य की विजय प्राप्त की। विजयदशमी का यह पर्व भगवान श्री राम की विजय व दुर्गा उपासना दोनों ही रूपों में यह पर्व शक्ति-पूजा,शस्त्र पूजन के लिए महत्वपूर्ण है। भारतीय सनातन हिन्दू समाज तेत्रा युग से लगातार आज तक बुराई के प्रतीक रावण,कुम्भकरण,मेघनाद के पुतलों का दहन कर बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक विजयदशमी का पर्व मनाता आ रहा है।

सनातन काल से भारतीय हिन्दू समाज शक्ति की उपासना का प्रतीक नौ तिथि,नौ नक्षत्र,नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ अनवरत मनाता आ रहा है। भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की समर्थक रही है। भारत वर्ष में दशहरे का उत्सव भी शक्ति की उपासना के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला पर्व है। मां जगदम्बा के अलग-अलग रूपों की उपासना करके शक्तिशाली बनने का संकल्प अंतरिक्ष में हमारे भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा चंद्रमा-3 का सफल स्थापन एवं आदित्य एफ एल-1 का प्रक्षेपण संकल्प मां दुर्गा के नवें रुप सिद्धिदात्री के सुफल होने का ही परिणाम है।
-रुड़की,हरिद्वार (उत्तराखंड)

Related Articles

Back to top button
Translate »