UTTARAKHAND

उत्तराखंड आंदोलन के एक महत्वपूर्ण सारथी रणजीत सिंह वर्मा का अवसान

उत्तराखंड राज्य आंदोलन के नायक रणजीत सिंह वर्मा जी को अंतिम नमन….

जितेंद्र अंथवाल

उत्तराखंड आंदोलन में स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी के बाद दूसरा बड़ा व सर्वमान्य चेहरा रहे श्री रणजीत सिंह वर्मा का सोमवार सुबह जौलीग्रांट अस्पताल में निधन हो गया । उनकी पार्थिव देह को उनके निवास स्थान पर पहुंचा दिया गया है। मंगलवार सुबह 10:00 बजे लक्खीबाग श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार होगा। उससे पहले संभवत: अंतिम दर्शन के लिए उन्हें कुछ देर के लिए कचहरी स्थित शहीद स्थल पर रखा जाएगा।

उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन में प्रमुख नेतृत्वकारी बुमिक निभाने वाले उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति (देहरादून) के अध्यक्ष, केंद्रीय संघर्ष समिति के संयोजक मंडल के सदस्य और अविभाजित उत्तर प्रदेश में मसूरी विधानसभा क्षेत्र से 2 बार के विधायक रणजीत सिंह वर्मा जी के निधन की दुखद सूचना अभी मिली, तो मन व्यथित हो उठा है।

व्यथित इसलिए, क्योंकि उत्तराखंड ने आज मसूरी गोलीकांड के 25वी बरसी पर न केवल आन्दोलन का समर्पित और ईमानदार नेतृत्वकारी खो दिया है, बल्कि स्वच्छ छवि का राजनीतिज्ञ भी खोया है। राज्य बनने के बाद वर्ष-2002 में पहले विधानसभा चुनाव हो रहे थे। हर छोटा-बड़ा नेता और आंदोलनकारी चुनाव में कूद रहे थे। वर्मा जी, उस दोर में देहरादून में आदोंलन के सर्वमान्य नेता थे। छवि भी स्वअच्छ थी। लिहाजा, आंदोलनकारियों के साथ ही हम जैसे तमाम पत्रकारों ने भी उन से आग्रह किया कि आप भी चुनाव लड़िये, क्योंकि आप जैसे लोग अब इस राज्य को दिशा देने के लिए विधानसभा के अंदर चाहिये। मगर, दृढ़ निश्चयी वर्मा जी ने तैयार नहीं हुए।

उनका स्पष्ट कहना था कि “मेरा संकल्प राज्य निर्माण आंदोलन को उसकी मंजिल तक पहुँचाना था, चुनाव लड़ना नहीं। राज्य बन गया, मेरा संकल्प पूरा हो गया। अब मेरा संकल्प कोई विधानसभा या लोकसभा चुनाव न लड़ने का है। दो बार विधायक रह चुका हूँ, तब राजनीति में कुछ सिद्धान्त होते थे। अब हमारे मिज़ाज की राजनीति रह भी नहीं गई।” यही नहीं, वे इतने दूरदर्शी थे कि चुनावी राजनीति में कूदने वाले आंदोलनकारियों का हश्र चुनाव से पहले हई देख चुके है।

वे कहते थे, आंदोलनकारियों को अपनाई मुट्ठी बन्द रखनी चाहिए थी, जो उन्होंने चुना लड़ कर खोल दी। चुनाव लड़ने दो, एक भी आंदोलनकारी नहीं जीतने वाला। क्योंकि, आंदोलन अलग बात है, चुनाव जीतना अलग। वही हुआ भी। सभी आंदोलनकारी नेताओं की जमानत जब्त हो गयी। बाद दौर में भी उनसे कई बार आग्रह किया गया कि अपनी जिद छोड़िए और आगे आकर राज्य की राजनीति में अहम भूमिका निभाईये, मगर वे हर बार अपने संकल्प को दोहराते। राज्य के हालात से वे लगातार दुखी थे और अक्सर कहते थे, शहीदों के सपने और मां-बहनों का त्याग वाला राज्य नहीं बन पाया उत्तराखंड।

1995-96 और उस के बाद जब प्रदेश भर में आंदोलन बेहद शिथिल पड़ चुका था, वर्मा जी ने तब ही उसे दून में गतिमान रखा। असंख्य बन्द, चक्का जाम, बहिष्कार, जेल भरो, रेल रोको, तालाबंदी, जुलूस-प्रदर्शन, ब्लैक आउट जैसे आह्वान उनके नेतृव में देहरादून से हुए और शत-प्रतिशत सफल रहे। उनका विनम्र व्यवहार ही था कि तनाव के पलों में अधिकारी शांतिपूर्ण समाधान के लिए उनकी मदद लेते थे।

आंदोलनकारियों साथ ही उस दौर के पुलिस और प्रशासन में भी उनका बेहद सम्मान था। मूल रूप के आर्यसमाजी रणजीत सिंह वर्मा जी 1977 में जनता पार्टी और 1989 में जनता दल से मसूरी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। उस वक्त मसूरी विधानसभा क्षेत्र का विस्तार आज के कौलागढ़, डोईवाला, रायपुर, थानों से लेकर ऋषिकेश तक था। हेमवती नंदन बहुगुणा के अनुयायी वर्मा जी के नाम 1977 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश में सबसे कम अंतर से जीत का रिकार्ड दर्ज हुआ। राज्य आंदोलन के इस नायक को विनम्र नमन….

(श्री जितेंद्र अंथवाल उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और राज्यआन्दोलनकारी है यह आलेख उनकी फेसबुक वाल से साभार लिया गया है)

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