हवाई सेवाओं से चौपट हो रहा स्थानीय लोगों का रोजगार
रुद्रप्रयाग। जून 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद जिले में ठप पड़े पर्यटन एवं तीर्थाटन व्यवसाय को लेकर यहां के लोगों को रोजगार की जो उम्मीदें थी, वह हवाई सेवाओं की बढ़ती भरमार से चौपट हो गई हैं। यात्रा आधारित रोजगार का भरोसा पाले स्थानीय जन मायूस हैं । हेली सेवाओं की बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने सारे नियम कानून ताक पर रखे हुये हैं। नतीजन स्थानीय रोजगार तो प्रभावित हो ही रहा है, साथ ही यहां के पर्यावरण पर भी गहरा संकट आने से मना नहीं किया जा सकता है। इस सबके बावजूद भी केन्द्र व प्रदेश का नागरिक उडड्यन विभाग कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं दिखाई दे रहा है।
विगत एक दशक से केदारनाथ यात्रा में हवाई सेवाओं की शुरूआत हुई, लेकिन किसी को मालूम नहीं था कि हवाई सेवा दाता एजेन्सियों की प्रतिस्पर्धा इस कदर बढ़ेगी कि यह हवाई सेवाएं यहां के रोजगार को ही चौपट कर देंगे। बीते साल 13 हवाई सेवाएं केदारनाथ के लिये चलाई गई, जबकि इस वर्ष 11 हेली सेवा उड़ान भर रही हैं और दो हेली सेवाओं को अनुमति का इंतजार है।
जानकार बताते हैं कि हवाई दूरी के हिसाब से हवाई सेवाओं का किराया तय किया जाता है, लेकिन सेवादाता कंपनियों द्वारा अपने मनमाने हिसाब से किराया तय किया गया है। इतना ही नहीं इन कंपनियों द्वारा सहायक पायलटों की व्यवस्था भी नहीं की गई है। ऐसे में कभी भी बड़ी दुर्घटना से मनाही नहीं की जा सकती। यात्रा सीजन के बढ़ते दबाव को देखते हुये देश-विदेश के तीर्थ यात्रियोंं में हेली टिकटों के लिये मारामारी मची रहती है। इसका लाभ हवाई सेवादाता कंपनियां जमकर उठा रही हैं।
हवाई की बढ़ती यहां भरमार सडक़ यात्रियों के लिये खासी मुसीबत इस कारण बनी हुई है कि जहां-जहां पर हेलीपैड बनाये गये हैं वहां पर पार्किंग के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। जहां कहीं भी थोड़ी बहुत जगह मिलती है तो वहां हवाई यात्रियों के निजी वाहन खड़े रहते हैं। ऐसे में सडक़ से आवाजाही कर रहे तीर्थ यात्रियों को खासी मुसीबतें उठानी पड़ रही हैं। नतीजन घंटो जाम यात्रा मार्ग पर लग रहा है।
हेलीपैड के निकट पानी के टैंक नहीं बनाये गये हैं। ऐसे में संभावित दुर्घटनाओं से बचने के उपाय कम ही दिखतें हैं। नियम तो बताते हैं कि आवासीय मकान, गौशालाओं और विद्यालय परिसर से पांच सौ मीटर की दूरी पर ही हेलीपैड बन सकते हैं, मगर यह नियम महज कागजी साबित हो रहे हैं। हवाई सेवाओं की बढ़ती इस प्रतिस्पर्धा ने यहां के स्थानीय लोगों के रोजगार को प्रभावित कर दिया है।
होटल, लॉज, घोड़े-खच्चर, डंडी-कंडी और छोटे बड़े वाहन के साथ-साथ जिला पंचायत की प्रमुख आय यात्रा आधारित पर्यटन एवं तीर्थाटन पर टिकी है, लेकिन जिस तरह से हवाई कंपनियों ने केदारनाथ तीर्थ यात्रा पर पूरी तरह से मानो शिकंजा कस लिया है, उससे रोजगार की उम्मीद पाले स्थानीय लोगों की मुरीद दफन होती जा रही है।
स्थानीय लोग हवाई सेवाओं की भरमार से कतही खुश नहीं हैं, तो दूसरी तरफ सेंचुरी क्षेत्र केदारनाथ में दिनभर हवाई सेवाओं के कोताहल ने वन्य जीवों का अस्तित्व संकट में डाल दिया हैं। पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। ग्लेशियरों के पिघलने का क्रम बढ़ता जा रहा है। स्थानीय लोग रोजगार के लिये भटक रहे हैं और बाहरी धन्ना सेट केदार यात्रा की छत्र छाया में मालोमाल बन रहे हैं। गौरीकुंड-केदारनाथ मोटरमार्ग की मांग वर्षों से की जा रही है, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बहरहाल, जिस केदार यात्रा को यहां के लोग अपनी आजीविका का बड़ा जरिया मानते हैं, हवाई सेवाओं की बढ़ती भरमार ने उनकी रोजगार की उम्मीदों को लील कर दिया है।
केदारघाटी बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष दिवाकर गैरोला एवं पूर्व व्यापार संघ अध्यक्ष गौरीकुंड मायाराम गोस्वामी ने बताया कि हेली सेवाओं की बढ़ती भरमार स्थानीय लोगों को रोजगार से वंचित कर रही है। साथ ही पर्यावरण को भी बड़ा नुकसान पहुंच रहा है। इससे अच्छा होता अगर सरकार की ओर से सेंचुरी एरिया की कार्यप्रणाली को समाप्त कर तीर्थधामों में विकास किया जाता।
उन्होंने कहा कि हेली सेवाएं बंद होनी चाहिए, अन्यथा स्थानीय लोगों को रोजगार से वंचित होना पड़ेगा। हेली सेवाओं में ब्लैक टिकटिंग का खेल जोरों से चल रहा है। जो रेट तय किये गये हैं, उनसे कईं ज्यादा लिये जा रहे हैं। ऐसे में तीर्थयात्री देवभूमि से अच्छा संदेश लेकर नहीं जा रहे हैं। वहीं पर्यावरण विद् जगत सिंह जंगली का कहना है कि हेली सेवाएं केदारघाटी के विकास में अवरोध पैदा कर रही हैं। इन हेली सेवाओं से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है। इनसे मवेशियों और जंंगली जानवरों को खतरा बना है। अगर जल्द ही ये सेवाएं बंद नहीं की गई तो केदारघाटी में फिर से आपदाएं आने से इंकार नहीं किया जा सकता है।