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चुनावी बाँड राजनीति भ्रष्टाचार की बड़ी उस्तादी योजना !
चुनावी बाँड : बेलगाम भ्रष्टाचार
24 मार्च से Electoral Bond पर Supreme Court में शुरु हो जाएगी बहस
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
It is heartening that the Supreme Court has announced to consider the electoral bond system immediately. Now the debate will start in the court on this issue from March 24, because elections are going to start in five states of the country. The electoral bond was started by the Modi government in 2007. Electoral bond politics is the biggest mastermind of corruption. Whoever gave Modi and Arun Jaitley this plan, his mind must have been sharper than any smuggler or bandit.
यह खुशी की बात है कि Supreme Court ने Electoral Bond की व्यवस्था पर तुरंत विचार करने की घोषणा की है। अब 24 मार्च से ही इस मुद्दे पर अदालत में बहस शुरु हो जाएगी, क्योंकि देश के पांच राज्यों में चुनाव शुरु होनेवाले है। चुनावी बाँड की शुरुआत मोदी सरकार ने 2007 में शुरु की थी। Electoral Bond राजनीति भ्रष्टाचार की बड़ी उस्तादी योजना है। जिसने भी यह योजना बनाकर मोदी और अरुण जेटली को थमाई थी, उसका दिमाग किसी तस्कर या डाकू से भी अधिक तेज रहा होगा।
मोदी सरकार को इस बात के लिए हमेशा याद किया जाएगा कि उसने भ्रष्टाचार के राक्षस के मुंह को कानूनी बुर्के से ढांप दिया है। उसने इंदिरा-काल के भ्रष्टाचार की अराजकता को वैधता प्रदान कर दी और उसे ऐसा रुप दे दिया कि भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार बन गया। इसका नाम है—— (Electoral Bond) चुनावी बाँड ! ये चुनावी बाँड पांच प्रकार के होते हैं। एक हजार, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपए के ! ये बाँड कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी भी राजनीतिक दल को दे सकती है। पहले वह इन्हें खरीदे और फिर जिसे चाहे उसे दे दे। खरीददार का नाम बिल्कुल गोपनीय रखा जाता है। इसीलिए ये बाँड सिर्फ सरकारी बैंक— स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया बेचती है।
किसी राजनीतिक दल को कितने बाँड मिले हैं, उसे यह Election Commission को बताना होगा। इस बाँड-तिकड़म के पहले पार्टियों के लिए चुनाव आयोग को सिर्फ वे ही चंदे बताने होते थे, जो 20 हजार रु. से ज्यादा के हों। सारी पार्टियां धांधली करती थीं और अपने 80-90 प्रतिशत चंदे 20 हजार से कम के ही बताती थीं। राजनीतिक दलों को इस झूठ से बचाने के लिए मोदी सरकार ने एक बड़े झूठ का आविष्कार कर लिया। अब तक बैंक से 6000 करोड़ रु. के बाँड खरीदे गए हैं, जिनमें से ज्यादातर भाजपा को भेंट किए गए, उसके बाद कांग्रेस को और मुट्ठीभर अन्य दलों में बंट गए।
Election Commission and Reserve Bank ने इन बाँडों पर आपत्ति जाहिर की है। उनका कहना है कि कई फर्जी कंपनियां और पैसेवाले अपनी काली कमाई का यहां इस्तेमाल करते हैं और गोपनीयता की आड़ में पार्टियों को रिश्वत खिलाते हैं। नामी-गिरामी कंपनियां भी इन बाँडों पर फिदा हैं, क्योंकि इनके तहत दिया गया पैसा कर-मुक्त होता है। याने सरकार ने भ्रष्टाचार की सड़क को सरपट बना दिया है।
चुनाव के दिनों में इन बाँडों की बिक्री आसमान छूने लगती है, क्योंकि करोड़ों के बाँड खरीदनेवालों के नाम बैंक तो छिपाए रखती हैं लेकिन वे खुद जाकर नेताओं को अपने नाम बता देते हैं। आजकल चुनावी खर्च भी अनाप-शनाप बढ़ गया है। लोकसभा के लिए 70 लाख और विधानसभा के लिए 28 लाख रु. की छूट तो ऊँट के मुँह में जीरा है। यह सीमा उम्मीदवारों के लिए है। पार्टियों की खर्च की कोई सीमा नहीं है। इसीलिए उनके corruption की भी कोई सीमा नहीं है।