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महिला स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए ज़रूरी है आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक समानता

अधिकांश महिलाओं के लिए प्रजनन न्याय (रिप्रोडक्टिव जस्टिस) तक पहुँच है एक स्वप्न मात्र 

यह चुनने और तय करने का अधिकार कि महिला को बच्चे चाहिए अथवा नहीं चाहिए

माया जोशी 
भारत समेत एशिया पैसिफिक क्षेत्र के अनेक देशों की अधिकांश महिलाओं के लिए प्रजनन न्याय (रिप्रोडक्टिव जस्टिस) तक पहुँच एक स्वप्न मात्र ही है। प्रजनन न्याय का अर्थ है व्यक्तिगत शारीरिक स्वायत्तता बनाए रखने का मानवीय अधिकार; यह चुनने और तय करने का अधिकार कि महिला को बच्चे चाहिए अथवा नहीं चाहिए; और इस बात का सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक अधिकार कि बच्चों का लालन पालन एक सुरक्षित वातावरण में किया जा सके।
प्रजनन न्याय शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1994 में शिकागो में अश्वेत महिलाओं के एक समूह द्वारा प्रजनन स्वास्थ्य हेतु एक सुव्यवस्थित न्यायिक ढांचे का निर्माण करने के लिए किया गया था | प्रजनन न्याय वह कड़ी है जो प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं (जिनमें गर्भपात और परिवार नियोजन शामिल हैं) तक पहुँच के कानूनी अधिकार को उन सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक असमानताओं के साथ जोड़ती है जो महिलाओं की प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच को बाधित करती हैं। प्रजनन न्याय के मुख्य घटक हैं सुरक्षित गर्भपात, सस्ते गर्भनिरोधक और यौन शिक्षा तक समान पहुँच तथा हर प्रकार की एवं हर स्तर पर यौन हिंसा से मुक्ति। 10 वीं एशिया पैसिफिक कॉन्फ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हैल्थ एंड राइट्स के आठवें वर्चुअल सत्र में इन सभी मुद्दों पर खुल कर चर्चा हुई।
दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया में असुरक्षित गर्भपात के कारण होने वाली मृत्यु दर बहुत अधिक है – मातृ मृत्यु दर का 13% । तीन एशियाई देशों – इराक़, लाओस और फिलीपींस- में गर्भपात कानूनी रूप से अवैध है। 17 देश बिना किसी प्रतिबंध के गर्भपात की अनुमति देते हैं जबकि कुछ अन्य देशों में शर्तो के साथ अनुमति है | लेकिन उन देशों में भी जहाँ तुलनात्मक रूप से उदार गर्भपात कानून हैं (जैसे कंबोडिया, भारत और नेपाल) बहुत सी महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात प्रक्रिया पाने के लिए अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। गर्भपात से जुड़े हुए सामाजिक कलंक और इसके विषय में जानकारी का अभाव इन सेवाओं तक महिलाओं (विशेषकर अविवाहित महिलाओं) की पहुँच को और भी दुर्गम बना देता है। 
एशियन पैसिफिक रिसोर्स एंड रिसर्च सेंटर फॉर वीमेन (ऐरो) की कार्यकारी निदेशक सिवानन्थी थानेनथिरन का मानना है कि इसका मुख्य कारण है दक्षिणपंथी सरकारों के उदय के साथ-साथ धार्मिक कट्टरवाद और उसकी लिंग-विरोधी विचारधारा का बढ़ता हुआ प्रभाव। उनके अनुसार, “अतिवादी विचारधाराएं महिलाओं के शरीर, स्वायत्तता, यौनिकता और उनके दैनिक जीवन पर नियंत्रण रखने का प्रयास करती हैं। गर्भपात का अपराधीकरण पितृसत्तात्मकता का द्योतक है। महिलाओं के लिए सुरक्षित गर्भपात का तात्पर्य केवल एक विकल्प ही नहीं अपितु उस तक उनकी पहुंच के बारे में भी है। सरकारों को उन सभी कानूनी बाधाओं को समाप्त करना चाहिए जो महिलाओं की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच को, जिसमें सुरक्षित गर्भपात भी शामिल है, सीमित करती हैं। नीति आधारित विश्लेषणात्मक ढांचे के माध्यम से गर्भपात और संबंधित मुद्दों पर साक्ष्य आधारित डेटा तैयार करना नीति को प्रभावित करने और जबाबदेही को मजबूत करने के लिए आवश्यक है।”
एशिया सेफ़ एबॉर्शन पार्टनरशिप की सह-संस्थापक डॉ सुचित्रा दलवी सुरक्षित व स्व-प्रबंधित गर्भपात के राजनीतिक महत्व को समझने के लिए कहती हैं। उनका कहना है कि सरकारों को गर्भवती महिलाओं के लिए इसे उपलब्ध कराना चाहिए। एक गर्भवती महिला के पास अपनी गर्भावस्था का सही आंकलन करने के लिए पर्याप्त जानकारी होने के साथ-साथ यह सुविधा भी उपलब्ध होनी चाहिए कि वह स्व-प्रबंधित गर्भपात के लिए आवश्यक दवाएं स्वयं खरीद सके और बिना अस्पताल जाए अपनी पसंद के सुरक्षित स्थान पर गर्भपात की प्रक्रिया का संचालन स्वयं कर सके। साथ ही, यदि प्रक्रिया के किसी भी चरण में आवश्यकता हो तो, उसे स्वास्थ्य सेवा प्रदाता तक पहुंचने में भी सक्षम होना चाहिए।
स्वास्थ्य व्यवस्था के बोझ को कम करने के लिए और महिलाओं को सुविधा प्रदान करने हेतु स्व-प्रशासित चिकित्सीय गर्भपात एक अच्छा उपाय है और इस प्रकार के स्व-प्रबंधित गर्भपात की सुरक्षा के समर्थन में आँकड़े उपलब्ध हैं।
भारत, नेपाल, बांग्लादेश, वियतनाम और चीन सहित 10 देशों में किये गए 18 अध्ययनों की एक व्यवस्थित समीक्षा से यह पता चलता है कि स्व- प्रशासित चिकित्सीय गर्भपात, किसी भी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता द्वारा प्रशासित किये गए गर्भपात जितना ही सुरक्षित और प्रभावी है। इसलिए महिलाएं बगैर किसी सेवा प्रदाता के इसे प्रभावी रूप से स्वयं कार्यान्वित कर सकती हैं।
इन निष्कर्षों को प्रस्तुत करते हुए विमेंस रिफ्यूजी कमीशन की अनुसंधान सलाहकार कैथरीन गम्बीर ने कहा कि,”नीति निर्माताओं को वैश्विक व राष्ट्रीय स्तर पर चिकित्सीय गर्भपात दिशा निर्देशों में आवश्यक संशोधन करने चाहिए ताकि महिलाओं को नैदानिक मार्गदर्शन के साथ, अथवा उसके बिना भी, प्रारम्भिक गर्भपात प्रक्रियाओं का स्व संचालन करने का विकल्प मिल सके। इससे स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ में भी कमी आएगी। वर्तमान समय में कोविड-19 की वजह से अस्पताल तक पहुँच बाधित होने के कारण यह और भी अधिक महत्वपूर्ण है। इसके अलावा लिंग-आधारित हिंसा (जिसमें अंतरंग साथी-हिंसा भी शामिल है) की बढ़ती हुई घटनाओं को देखते हुए यह और अधिक आवश्यक हो जाता है कि महिलाओं की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की देखभाल और गर्भनिरोधकों (जिसमें आपातकालीन गर्भनिरोधक व चिकित्सा गर्भपात भी शामिल हैं), तक पहुँच को यथाशीघ्र सुनिश्चित किया जाए”।
मानवीय आपदा में भी अनुकूल क़ानूनी वातावरण का होना सेवा प्रदाताओं द्वारा व्यापक गर्भपात देखभाल प्रदान कराने के लिए ज़रूरी है। ऐसे समय में महिलाओं और लड़कियों के लिए असुरक्षित गर्भपात का ख़तरा बढ़ जाता है जिसके परिणामस्वरूप मातृ मृत्यु दर बढ़ती है।व्यापक गर्भपात देखभाल में शामिल हैं मासिक धर्म नियमन (एक प्रक्रिया जो गर्भधारण को रोकने के लिए मासिक धर्म को नियमित करती है); गर्भपात के बाद की देखभाल; और गर्भनिरोधक प्रावधान और परामर्श।
बांग्लादेश की आइपास में कार्यरत यौन और प्रजनन स्वास्थ्य विशेषज्ञ, मारिया पर्सन, ने बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में व्यापक गर्भपात देखभाल के प्रावधान का उदाहरण देते हुए बताया कि बांग्लादेश सरकार गैर सरकारी संगठनों की सहायता से मुफ्त में गर्भपात देखभाल सेवाएं प्रदान करके इस मानवीय कार्य का नेतृत्व कर रही है। ज्ञात हो कि कॉक्स बाजार में म्यांमार से विस्थापित 9 लाख  से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं।
बांग्लादेश में गर्भपात की कानूनी अनुमति तभी है जब महिला का जीवन खतरे में हो, अन्यथा गर्भपात अवैध है। लेकिन मासिक धर्म नियमन कानूनी रूप से मान्य है तथा अस्पतालों में व्यापक रूप से प्रचलित भी है।
पर्सन ने कहा कि मासिक धर्म नियमन के कानूनी रूप से मान्य होने के कारण तथा नागरिक समाज संगठनों और सरकार के मिले-जुले सहयोग से कॉक्स बाजार में व्यापक गर्भपात देखभाल का प्रावधान संभव हो सका है।
इंडोनेशिया- जो एक मुस्लिम देश है- में भी गर्भपात केवल चिकित्सीय कारणों, गंभीर जन्मजात दोषों और बलात्कार के मामलों में ही कानूनी रूप से मान्य है। सरकारी परिवार नियोजन कार्यक्रम केवल विवाहितों के लिए है। स्वास्थ्य सेवाओं में भी आमतौर पर गर्भपात एक निंदित विषय है।
यह जानकारी देते हुए संयुक्त राष्ट्र के यूएनएफपीए, इंडोनेशिया में प्रजनन स्वास्थ्य कार्यक्रम विशेषज्ञ, आर्यंती रिजनावती इमा ने कहा कि “गर्भपात एवम् गर्भपात संबंधी जटिलताओं से सम्बंधित आँकड़ों का होना बहुत महत्वपूर्ण है। उदाहरणार्थ- यदि गर्भपात सम्बन्धी बहुत अधिक ज्यादा जटिलताएं समस्यायें हैं तो वे असुरक्षित गर्भपात की ओर इंगित करती हैं, और यह नीति निर्माताओं को इसके बारे में कुछ ठोस कदम उठाने के लिए मजबूर करेगा। अतः हमें चर्चाओं में और अधिक डेटा लाना होगा तथा उसका उचित विश्लेषण भी करना होगा ताकि स्थिति को बेहतर किया जा सके।”
इंडोनेशिया में इस्लाम की व्याख्या काफी उदार होते हुए भी गर्भपात के संदर्भ में इसकी समझ बहुत ही संकीर्ण है। रिजनावती का मानना है कि उदारवादी धर्मगुरुओं का समर्थन ले कर, उनकी सहायता से महिलाओं के लिए यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार के मुद्दे को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
मैरी स्टॉप्स इंटरनेशनल, कंबोडिया की राष्ट्रीय निदेशक ऐमी विलियम्सन मानती हैं कि गर्भपात की प्रतिबंधात्मक पहुंच पुराने कानूनों और नीतियों में बंधी हुई है| कोविड-19  महामारी ने इस बात को और अधिक जरूरी बना दिया है कि अनपेक्षित गर्भधारण और असुरक्षित गर्भपात में वृद्धि को रोकने के लिए इन नीतियों में परिवर्तन लाया जाय| अब यह और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है कि सरकारें गर्भपात को आवश्यक स्वास्थ्य सेवा के रूप में मान्यता दें। हमें गर्भपात से जुड़े हुए कलंक को मिटाना होगा और यह प्रयत्न करना होगा कि सभी लोग, विशेषकर युवा समुदाय, इसके बारे में सहज रूप से बात कर सकें।
सभी महिलाओं के लिए सुरक्षित गर्भपात सेवाओं की आवश्यकता है। लेकिन हमारा दीर्घकालिक लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी गर्भ अनचाहा न हो। यह तभी संभव हो सकता है जब प्रत्येक स्त्री और पुरुष उपलब्ध गर्भनिरोधक विकल्पों का उपयोग करने में सक्षम हो। महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और जीवन पर नियंत्रण करने वाली पितृसत्तात्मकता आधिपत्य की दीवार को ध्वस्त करना ही होगा।

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