पूर्व वन संरक्षक द्वारा किए गए ट्रांसफर आदेश पर वन मंत्री का ”वीटो”
पूर्व प्रमुख वन संरक्षक को जाते -जाते वन मंत्री ने बताया और जताया कि वे ही हैं पावरफुल
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून। सूबे के वन मंत्री और पूर्व प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) जयराज के बीच शीतयुद्ध की जगजाहिर थी, जयराज ने सेवानिवृत होने से ठीक पहले वन विभाग में थोक के भाव ट्रांसफर करते हुए एक बार फिर वन मंत्री को अंगूठा दिखा दिया कि वह उनसे ज्यादा पावरफुल है, लेकिन राजनीती के माहिर वन मंत्री डॉ.हरक सिंह ने भी आखिरकार उनके द्वारा वन क्षेत्राधिकारियों के किए गए स्थानांतरणों पर “वीटो” लगाते हुए इन्हे अवैध ही घोषित नहीं किया बल्कि पूर्व प्रमुख वन संरक्षक को यह भी जता दिया है कि वे ही पावरफुल हैं।
उन्होंने कहा कि प्रमुख वन संरक्षक द्वारा उनके विभाग में किये गए वन क्षेत्राधिकारियों ट्रांसफर जहां बिना विभागीय मंत्री की मंजूरी के किए गए हैं वहीं कार्मिक और सतर्कता विभाग की अनुमति के बगैर किये गए हैं, उन्होंने ट्रांसफर के मामले में प्रमुख सचिव वन आनद वर्धन को पत्र लिखकर इस स्थानांतरणों को निरस्त करने के निर्देश दिए थे। जैस पर मंगलवार को प्रमुख सचिव ने सभी स्थांनान्रतरणों को रद्द कर दिया है।
प्रमुख सचिव आनंद वर्धन द्वारा मंगलवार को जारी आदेश में कहा गया है कि बिना कार्मिक व सतर्कता विभाग की अनुमति के प्रमुख वन संरक्षक (hoff) द्वारा वन क्षेत्राधिकारियों तबादले किये गए हैं। जबकि कोरोना के चलते तबादला सत्र शून्य घोषित है। शासन के आदेश में कहा गया है कि बहुत जरूरी होने पर स्थानांतरण अधिनियम की धारा 27 के तहत ट्रांसफर प्रस्ताव समिति के समक्ष पेश किये जाने चाहिए थे।
गौरतलब हो कि प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने पद पर रहते हुए जिस तरह से विभागीय मंत्री यानि वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत को कई मामलों में जज़र अंदाज़ ही नहीं किया बल्कि कई बार तो ऐसा लगा जैसे HoFF वन मंत्री से भी ऊपर हों। उन्होने पद पर रहते हुए कई बार विभागीय मंत्री को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री को तो कार्यक्रम में बुलाया लेकिन विभागीय मंत्री को कार्यक्रम की हवा तक नहीं लगने दी इससे सूबे के राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं आए रही कि जयराज मंत्री की जान बूझकर फजीहत करवा रहे हैं, हालाँकि बाद में मंत्री ने खुद ही जयराज के कार्यक्रमों में जाने से इंकार कर दिया या उन्होंने खुद ही ऐसे कार्यक्रमों में जाने से कन्नी काटनी शुरू कर दी। राजनीती के गलियारों में चर्चाओं के अनुसार इसे पूर्व वन संरक्षक द्वारा वन मंत्री और मुख्यमंत्री के बीच विभागीय अधिकारी द्वारा दूरी बढ़ाए जाने के रूप में भी देखा जाने लगा था।