UTTARAKHAND

डॉ० अंकित जोशी और मुख्य शिक्षा अधिकारी प्रदीप रावत फिर आमने-सामने

उत्तराखंड : राजकीय इंटर कॉलेज बुरांसखंडा देहरादून में कार्यरत राजनीति विज्ञान के प्रवक्ता डॉ० अंकित जोशी का आज मुख्य शिक्षा अधिकारी देहरादून के आदेश पर प्रधानाचार्य द्वारा उनके द्वारा लगभग दो माह पूर्व दिये गये वक्तव्यों पर स्पष्टीकरण मांगा गया है , इससे पहले भी मुख्य शिक्षा अधिकारी दो माह पूर्व उनका स्पष्टीकरण ले चुके हैं । इसमें कहा गया है कि आपने मुख्य शिक्षा अधिकारी के रूप में प्रदीप कुमार की नियुक्ति और संयुक्त निदेशक एससीईआरटी, कंचन देवराड़ी की पदस्थापना पर प्रश्न चिह्न कैसे लगाया । यहां मुख्य बात यह है कि प्रदीप कुमार इससे पहले खंड शिक्षा अधिकारी के पद पर रहते हुए एससीईआरटी में पहले संयुक्त निदेशक के पद पर नियुक्त हुए उसके बाद जब एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा आपत्ति दर्ज करते हुए प्रत्यावेदन दिया तब उन्हें खंड शिक्षा अधिकारी रहते हुए ही एससीईआरटी में रिवर्ट कर उप निदेशक बनाया गया हालांकि वर्तमान में उनकी पदोन्नति उप निदेशक पद पर हो चुकी है तथा उन्हें जनपद देहरादून में जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक शिक्षा के पद पर पदस्थापित किया गया है साथ ही एक पद ऊपर मुख्य शिक्षा अधिकारी जनपद देहरादून का प्रभार भी सौंपा गया है । मुख्य शिक्षा अधिकारी का पद संयुक्त निदेशक का पद है, विभाग में कई संयुक्त निदेशकों को एससीईआरटी और डायटों में पदस्थापित किया गया है जहां उनके पद ही नहीं हैं जिससे जनपदों में मुख्य शिक्षा अधिकारी के पद रिक्त हैं और विभाग इन पदों पर अपने हिसाब से प्रभारी अधिकारियों की पदस्थापना करता है । ऐसे में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार जैसी कुरीतियों के पनपने की आशंका उत्पन्न होती है । प्रदीप रावत अपने रसूख के चलते जबसे विभाग में प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारी बने तब से हमेशा ही सुगम स्थलों में बने रहे उन्होंने एक दिन भी प्रशासनिक अधिकारी के रूप में दुर्गम में सेवा नहीं दी। वर्तमान में मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय में उनके द्वारा कई कार्मिकों को संबद्ध किया गया है जबकि नियमानुसार शिक्षा विभाग में कार्मिकों को संबद्ध किया ही नहीं जा सकता है । वहीं दूसरी ओर कंचन देवराड़ी वर्तमान में एससीईआरटी में संयुक्त निदेशक के पद पर कार्यरत हैं जबकि एससीईआरटी में संयुक्त निदेशक का पद ही नहीं है ।

एससीईआरटी और डायट अकादमिक संस्थान हैं और इन संस्थानों में प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारियों की नियुक्ति नियमानुसार हो ही नहीं सकती है, ऐसा करने से प्रदेश में शिक्षा विभाग का प्रशासनिक ढांचा अव्यवस्थित हो जाता है और प्रभारी बनाने के अवसर उत्पन्न होते हैं जिससे अधिकारियों के मध्य वरिष्ठ कनिष्ठ के नियम का भी अनुपालन नहीं हो पाता है । डॉ० अंकित जोशी से संपर्क करने पर उनके द्वारा बताया गया है कि वे कानूनी सलाह लेने के उपरांत ही इस पर कोई टिप्पणी कर पाएंगे और यदि आवश्यकता पड़ती है तो प्रभारी अधिकारी बनाने की इस व्यवस्था को कानूनन चुनौती भी दे सकते हैं साथ ही अन्याय के विरुद्ध उचित मंचों से आवाज उठाते रहेंगे ।

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