UTTARAKHAND
उत्तराखंड की संघर्षरत महिलाओं का “नई पहल नई सोच”संस्था ने किया सम्मान

पहाड़ की महिलाओं का योगदान देश-समाज को गौरवान्वित करने वाला है : माता मंगला जी



देहरादून : नई पहल नई सोच के मंच पर सम्मानित उत्तराखंड की मातृ शक्ति का अभिवादन करते हुए। समाज सेवी माताश्री मंगला जी ने कहां कि मेरे लिए आज का दिन बहुत ही गर्व का दिन हैं कि आज इस मंच पर हमें पहाड़ की उन महिला शख्सियतों को सम्मानित करने का मौका मिला है। जो सही मायने में पहाड़ की सोच,पहाड़ की विचारधारा और पहाड़ के संघर्षों को खुद में स्थापित करते हुए। कई महिलाओं के लिए प्रेरक बनी है। मैं संजय दरमोड़ा जी को बधाई देना चाहूंगी कि आपने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके ऐसे महिलाओं का सम्मान करने का हमें मौका दिया। जो वाकई में पहाड़ के परिवेश को नये स्वरूप में विश्व पटल पर विस्थापित कर रही है। मैं शैलश्री सम्मान से सम्मानित मधु मैखुरी,कमला देवी,विजयलक्ष्मी जी,देवी श्री सम्मान से सम्मानित सनम देवी नबियाल और प्रतिभा नैथानी जी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देती हूं की आप सभी पहाड़ के पटल पर अपने-अपने क्षेत्रों में नयी भूमिका के साथ आगे बढ़ रही है।
सम्बोधन से पूर्व आई.आर.डी.टी ऑडियोरियम में नई पहल नई सोच संस्था के तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर उत्तराखंड में जमीनी धरातल पर उतरकर संघर्षरत महिलाओं को सम्मानित किया। इस कार्यक्रम का उद्धघाटन समाज सेवी एवं हंस फाउंडेशन के प्रेरणास्रोत माता मंगला जी एवं श्री भोले जी महाराज,चारधाम विकास परिषद् के उपाध्यक्ष और प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य अध्यक्ष शिव प्रसाद ममगाई,गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी एवं नई पहल नई सोच के संस्थापक और अधिवक्ता संजय दरमोड़ा ने दीप प्रज्वलित कर किया।
अपने सम्बोधन में माताश्री मंगला जी ने कहा की हम देश भर में सामाजिक स्तर पर विश्व की उन तमाम महिलाओं को मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं,जो शोषित,तिरस्कृत और समाज में अपने ही लोगों द्वारा ठुकरा दी गई है। हम उन विधवा महिलाओं के लिए एक मजबूत नींव स्थापित कर रहे हैं। जो बहुत कम उम्र में अंधेरे की आगोश में चली गई या उन्हें धकेल दिया गया।
सम्बोधन के दौरान भावुक होते कहा माताश्री मंगला जी अपने कि मैं जब देखती हूँ कि पहाड़ के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में बसे गांव की महिलाएं अपने खेत-खलिहान और पशुओं को खुद की गंभीर से गंभीर बीमारी में भी छोड़कर अपने इलाज के लिए डाक्टर के पास नहीं जाती, क्योंकि इसके लिए उन्हें कई किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। आप उनकी सोच का दायरा देखिए कि वह अपने पशुओं को अकेले छोड़ेंगे तो उन्हें जंगली जानवरों खा जाएंगे, खेतों को जंगली जानवर नुकसान पहुंचा देंगे। इसी सोच के साथ हंस फाउंडेशन हमेशा खड़ा था और खड़ा रहेगा। मैं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दुनिया भर की महिलाओं को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देती हूं।
चारधाम विकास परिषद् के उपाध्यक्ष और प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य शिव प्रसाद ममगाई ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर राज्य की महिलाओं को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि मैं नई पहल नई सोच के संस्थापक संजय दरमोड़ा जी की सोच की सराहना करता हूँ कि वह पहाड़ के अंतिम छोर पर सराहनीय कार्य कर रही उन महिलाओं को इस मंच तक लेकर आए है जो हम सब के लिए प्रेरक है,और यह हम सब के लिए और भी सम्मान की बात है कि विश्व सेवा पटल पर उत्तराखंड का नाम रोशन कर रही पूज्य माताश्री मंगला जी इन महिलाओं को सम्मानित कर रही है। इस बेहतर आयोजन के लिए मैं दरमोड़ा जी बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। साथ ही भगवान बदरी विशाल जी से राज्य की जनता के जीवन में सुख-शांति-संतुष्टि की कामना करते है।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पहुंचे गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी समारोह में उपस्थित महिलाओं को महिला दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहां कि हमारी बेटी- ब्यारियों के लिए आज सम्मान की बात हैं कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर उनका सम्मान हो रहा है। उनके संघर्षों का सम्मान हो रहा,उनकी गाथाओं का सम्मान हो रहा है। इसके लिए नई पहल नई सोच की पूरी टीम और भूला संजय दरमोड़ा बधाई के पात्र है। मैं पहाड़ की नारी और पूरी दुनिया की महिलाओं को इस दिवस पर प्रणाम करता हूं।
इस मौके पर उत्तराखंड की महिला के संघर्ष पर बनी लघु फ़िल्म “ऊँमा बोल दियां” की स्क्रीनिंग से हुई। इस लघु फ़िल्म के निर्देशक कविलाश नेगी ने बताया कि यह फ़िल्म सुप्रसिद्ध साहित्यकार बल्लभ डोभाल की कहानी “कही अनकही” पर आधारित है जिसकी शूटिंग ट्रायबल बॉय फ़िल्म के बैनर तले देहरादून व उसके आस-पास के गांवों में हुई है।
‘नई पहल नई सोच’ वर्ष 2020 का शैलश्री सम्मान श्रीमती कमला देवी ग्राम लखणी, गरुड़ जनपद बागेश्वर को उनके लोकगायक विशेष रूप से ‘राजुला मालूशाही ‘ के जागर गायन के लिए समर्पित किया गया है। लोकगायिका कमलादेवी चांचड़ी, झोड़ा, छपेली, भकनोल और हुड़क्या बौल गाती हैं लेकिन ‘राजुला मालूशाही’ और ‘गंगनाथ’ की जागर में उन्हें महारथ हासिल है। राजुला मालूशाही जागर गायन की उन्हें अकेली गायिका माना जाता है। इस जागर में महिलाएं भाग लगाने ( कोरस गाने ) के लिए भी नहीं मिलती हैं। लेकिन आपने इस जागर को अपने पिता बिरराम जी से सीखकर जीवित रखा है। Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur.