विशेषज्ञों ने प्रदेश सरकार के दावों को दी चुनौती
न्यूज़ डेस्क
देहरादून । बदरीनाथ धाम में पिछले 100 सालों से गायी जा रही आरती पर फिर एक बार से विवाद शुरू हो गया है। इस विवाद की वजह है बदरीनाथ धाम में गायी जाने वाली आरती पवन मंद सुगंध शीतल आखिर लिखी किसने है। पुराने समय से यही कहा जाता रहा है कि बदरीनाथ में गायी जाने वाली आरती चमोली जनपद के ही नंदप्रयाग नगर निवासी किसी मुस्लिम व्यक्ति द्वारा लिखी गई है, लेकिन सरकार ने आरती को लेकर नये रचियता के नाम की घोषणा कर गहमागहमी की स्थिति पैदा कर दी है। सालों से यह मान्यता चली आ रही है कि चमोली में स्थित नंदप्रयाग के एक पोस्टमास्टर फकरुद्दीन सिद्दिकी उर्फ बदरुदीन ने भगवान बदरीविशाल की आरती लिखी थी।
बदरुदीन भगवान बदरीविशाल के भक्त थे। उन्हें हारमोनियम वादन का भी उनको अच्छा अनुभव था। कहा जाता है कि 1860 के दशक में भगवान बदरीनाथ की आरती की रचना बदरुदीन ने बद्रीनाथ धाम में ही की थी।
वहीं, राज्य सरकार का कहना है कि भगवान बदरीविशाल की आरती रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित स्योसी निवासी धन सिंह बर्त्वाल ने लिखी है। साथ ही आरती से सम्बंधित प्रमाण के रूप में पांडुलिपियां भी प्राप्त हुई हैं। बदरीनाथ आरती को लेकर धन सिंह बर्तवाल के पर पोते महेंद्र सिंह बर्तवाल आरती से जुड़ी हुई पांडुलिपियां लेकर प्रशासन के पास लेकर गए थे।
उनका दावा था कि उनके पूर्वजों के द्वारा बदरीनाथ में गायी जाने वाली आरती लिखी है। जिसके परिमाणस्वरूप उनके पास पुरानी पांडुलिपि मौजूद है, जिसके बाद प्रशासन के द्वारा पांडुलिपियों की कार्बन डेटिंग भी की गई। जिसमें कि पांडुलिपियां को लिखने का समय वर्ष 1881 ही निकला।
हालांकि बदरुदीन के वंशज आरती को लेकर कोई भी सटीक प्रमाण नहीं दे पाये। जिसके बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के द्वारा धन सिंह बर्तवाल के परिजनों के दावों को सच मानते हुए बदरीनाथ की आरती का धन सिंह बर्तवाल को रचयिता घोषित कर दिया। वहीं, विशेषज्ञों ने कार्बन रेटिंग को ही प्रमाण मानने पर सवाल उठाया है।
आईआईटी रुड़की के एसोसिएट प्रोफेसर एएस मौर्या का कहना है कि कार्बन डेटिंग से सटीक वर्ष का पता नहीं लगाया जा सकता। उनका कहना है कि टेस्ट के नतीजे सटीक साल से आगे पीछे भी हो सकते हैं।
जबकि, कार्बन डेटिंग करने वाले उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के निदेशक एमपीएस बिष्ट का कहना है कि पांडुलिपियों के टेस्ट के नतीजे बिल्कुल सही हैं। उधर, साल 1889 में छपी एक किताब में भी यह आरती लिखी गई है। जिसमें बदरीनाथ आरती का संरक्षक बदरुदीन के रिश्तेदारों को बताया गया है। यह किताब अल्मोड़ा के एक संग्रहालय में आज भी मौजूद है।
इस पूरे मामले पर बदरीकेदार मंदिर समिति के अध्यक्ष मोहन प्रसाद थपलियाल का कहना है कि बदरीविशाल की आरती धन सिंह बर्तवाल ने ही लिखी है, जोकि कार्बन डेटिंग से स्पष्ट हो चुका है।
बहरहाल, बदरीनाथ की आरती के रचयिता को लेकर अभी स्थित स्पष्ट न हो पाई हो। लेकिन नंदप्रयाग नगर पुराने समय से ही हिन्दू मुस्लिम भाईचारे और एकता की मिशाल कायम करता रहा है। अभी भी नंदप्रयाग में आयोजित होने वाली रामलीला में हिन्दू-मुस्लिम मिलकर अभिनय करते हैं, जो अपने आप में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है।
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