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CBI जांच को लेकर भाजपा और गैर भाजपा शासित राज्यों में टकराव !

CBI अब आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के बाद महाराष्ट्र में भी बिना राज्य सरकार की मंजूरी के नहीं कर पाएगी कोई जांच

उद्धव सरकार ने केंद्र सरकार की जांच एजेंसी को दिखाया ठेंगा

केंद्र और राज्यों के बीच हुई सामान्य सहमति ली वापस

जानिए इसे वापस लेने का क्या पड़ेगा असर ?

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

दो तरह की होती हैं राज्यों और केंद्र के बीच सहमति

ऐसे में इन राज्यों में सीबीआई अफसर के पुलिस अधिकारी के रूप में मिले सभी होंगे अधिकार खत्म
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि राज्यों और केंद्र के बीच कुल दो प्रकार की सहमति होती हैं। पहली केस स्पेसिफिक और दूसरी जनरल (सामान्य)। यूं तो सीबीआई का अधिकार क्षेत्र केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों पर है, लेकिन राज्य सरकार से जुड़े किसी मामले की जांच करने के लिए उसे राज्य सरकार की सहमति की जरूरत होती है। इसके बाद ही, वह राज्य में मामले की जांच कर सकती हे।
महाराष्ट्र में अब कोई जांच नहीं कर पाएगी CBI ?
सीबीआई ने जनरल कन्सेन्ट वापसी से पहले तक महाराष्ट्र में जो भी केस दर्ज किए हैं, उनकी जांच वह कर सकेगी। छापेमारी को लेकर स्थिति बहुत साफ नहीं है, लेकिन पुराने मामलों में रेड मारने के लिए कोर्ट से वॉरंट लिया जा सकता है। वैसे, सीबीआई दूसरे राज्यों में दर्ज केस के तार महाराष्ट्र से जुड़े हों तो उस सिलसिले में महाराष्ट्र में जांच कर सकती है। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2018 में छत्तीसगढ़ के एक मामले में आदेश दिया था, जिसके मुताबिक केस का तार दिल्ली से जुड़ा हो तो सीबीआई दिल्ली में केस दर्ज कर सकती है और फिर उस केस की जांच कहीं भी कर सकती है।
सामान्य सहमति के वापस लेने का क्या मतलब ?
इसका सीधा मतलब है कि सीबीआई बिना केस स्पेसिफिक सहमति मिले इन राज्यों में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई नया मामला नहीं दर्ज कर पाएगी। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सीबीआई अधिकारी ने बताया कि सामान्य सहमति को वापस लेने का मतलब है कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना इन राज्यों में प्रवेश करते ही किसी भी सीबीआई अफसर के पुलिस अधिकारी के रूप में मिले सभी अधिकार खत्म हो जाते हैं।
देहरादून : राज्य में गंभीर प्रकृति के मामलों की जांच के लिए केन्द्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को महाराष्ट्र सरकार की तरफ से दी गई आम सहमति को उद्धव ठाकरे सरकार ने बुधवार को वापस ले ली। इसके बाद अब महाराष्ट्र में हर केस की जांच सीबीआई को करने से पहले उसे राज्य सरकार से इजाजत लेनी होगी। महाराष्ट्र से पहले आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल इस तरह की आपसी सहमति को वापस ले चुके हैं। इसे केंद्र सरकार के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार का राजनीतिक षड्यंत्र बताया जा रहा है। 
गौरतलब हो कि इससे पहले, आंध्र प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने राज्य में छापे मारने और जांच के लिए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति को वापस ले लिया था। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र की बीजेपी नीत एनडीए सरकार की आलोचना करते हुए आरोप लगाया था कि वह सीबीआई और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) जैसे महत्वपूर्ण भारतीय संस्थानों को बर्बाद कर रही है।
इसके बाद आंध प्रदेश सरकार की तत्कालीन चंद्रबाबू नायडू सरकार ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को राज्य में कानून के तहत शक्तियों के इस्तेमाल के लिए दी गई ‘सामान्य रजामंदी वापस ले ली थी। ऐसे में अब सीबीआई आंध्र प्रदेश सहित महाराष्ट्र राज्य की सीमाओं के भीतर किसी मामले में सीधे दखल नहीं दे सकती है।
उल्लेखनीय है कि सीबीआई ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा मामला दर्ज किए जाने के आधार पर मंगलवार को एफआईआर दर्ज की थी। यह मामला एक विज्ञापन कंपनी के प्रमोटर की शिकायत पर लखनऊ के हजरतगंज पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज करवाया गया था, जिसे बाद में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सीबीआई को सौंप दिया गया था। यह मामला टीआरपी में हेरफेर से संबंधित है।
ज्ञांत हो कि टीआरपी का यह कथित घोटाला तब सामने आया था जब रेटिंग एजेंसी ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि कुछ चैनल विज्ञापनदाताओं को लुभाने के लिए टीआरपी नंबरों में धांधली कर रहे हैं।
यह आरोप लगाया गया था कि कुछ परिवार जिनके घरों में दर्शकों के डेटा एकत्र करने के लिए मीटर लगाए गए थे, उन्हें तीन चैनलों द्वारा रिश्चत दी जा रही थी। मुंबई के पुलिस कमिशनर परमबीर सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके रिपब्लिक टीवी और दो अन्य पर टीआरपी में हेरफेर करने का आरोप लगाया था। मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच ने मंगलवार को दो और लोगों को टीआरपी मामले में गिरफ्तार किया था, जिसको मिलाकर पूरे मामले में अब तक आठ लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

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