देश में आखिरकार 34 साल पुरानी शिक्षा नीति की समयावधि हुई समाप्त
लेकिन यह पर ध्यान रखा जाना चाहिए कि उपयुक्त शिक्षकों के बिना शिक्षा में सुधार संभव नहीं
कमल किशोर डुकलान
शिक्षकों के बिना शिक्षा में सुधार संभव नहीं है। प्रशिक्षण के द्वारा योग्य शिक्षक निर्माण करने के साथ विद्यालयी पठन-पाठन के माहौल को बेहतर बनाने के प्रयास होने चाहिए।…..
केन्द्र की मोदी सरकार को नई शिक्षा नीति को अंतिम रूप देने में आवश्यकता से अधिक समय लग गया इसलिए अब केन्द्र सरकार को देश में नई शिक्षा नीति के अमल में लाने के लिए तत्परता दिखानी होगी। यह तत्परता तभी कारगर साबित होगी जब राज्य सरकारें सहयोग का परिचय देंगी और यह समझेंगी कि शिक्षा दलगत राजनीति का विषय नहीं है। यह तो राष्ट्र के निर्माण और उत्थान का सबसे प्रभावी माध्यम है। यह आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य भी है, कि विभिन्न राजनीतिक दल इस नई शिक्षा नीति को संकीर्ण राजनीतिक चश्मे से न देखें और इसके लिए कोशिश करें कि इस नई शिक्षा नीति के प्रांकलन को भारतीय संसद में जल्द से जल्द मंजूरी मिले।
यह भी संभव है कि नई शिक्षा नीति के सभी प्रावधानों से हर कोई सहमत न हो, लेकिन नई शिक्षा नीति के प्रावधानों से असहमत लोग को यह ध्यान रखना होगा कि शिक्षा ही देश के भविष्य का निर्धारण करती है। इसलिए नई शिक्षा नीति में हुए व्यापक बदलाव समय की आवश्यकता है। वर्तमान समय में इसे शुभ संकेत ही माना जायेगा कि 34 साल पुरानी यह मांग पूरी होती दिख रही है,नई शिक्षा नीति के प्रावधानों में एक ओर जहां पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने की व्यवस्था है, वहीं विद्यालयी शिक्षा के ढांचे में व्यापक परिवर्तन किया जाना भी है। महाविद्यालयी शिक्षा के स्तर में भी तमाम तरह के संशोधन अपेक्षित हैं।
उच्च शिक्षण संस्थानों के संचालन के लिए एक ही नियामक बनाने और विश्वविद्यालयों एवं उच्च शिक्षा के अन्य संस्थानों में प्रवेश के लिए एक ही साझा प्रवेश परीक्षा कराने के जो प्रावधान किए गए हैं उनसे बेहतर नतीजे सामने आने की उम्मीद दिखती नजर आ रही है।
नि:संदेह सभी सरकारी और निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में एक तरह 34 साल पुराने मानदंडों में संसोधन कर नये तरीके से लागू करना आवश्यक हो गया था, अमूमन देश में जितने भी कानून बने हैं, सब में ही देश की नौकरशाही ने ही अड़चनें पैदा की है,नई शिक्षा नीति के मसौदे को देश में लागू करते समय यह देखना होगा कि नौकरशाही अड़ंगे लगाने का काम न करने पाए।
नई शिक्षा नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जीडीपी का छह प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को पूरा करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि अभी बुनियादी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक का ढांचा संसाधनों के अभाव का सामना कर रहा है। हमारे नीति-नियंताओं को इससे भी अवगत होना चाहिए कि कोई नीति कैसी भी हो, कितनी भी अच्छी क्यों न हो, परन्तु बात तब बनती है जब उस नीति को लागू करने वाले उसके प्रति पूर्ण भाव से समर्पित दिखाते हो। नये मसौदे को लागू करते समय खास तौर यह पर ध्यान रखा जाना चाहिए कि उपयुक्त शिक्षकों के बिना शिक्षा में सुधार संभव नहीं है। वास्तव में जितना ध्यान योग्य शिक्षक तैयार करने पर दिया जाना चाहिए उतना ही स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पठन-पाठन के माहौल को बेहतर बनाने में होना चाहिए।