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उत्तराखण्ड के लिए पैदा होता बोली-भाषा का भ्रम !

भाषा मानकीकरण के नाम पर NGO का तीन दिन का ड्रामा!
निश्चित है कि भाषा के नाम पर खिचड़ी पहले से पक रही थी!
श्री नेगी को ढाल बनाकर एक जिले तक ही क्यों सिमटा दिया ?
डाॅ. बिहारीलाल जलन्धरी
यदि हम समग्र उत्तराखण्ड और उत्तराखण्ड की समग्र व सर्वमान्य भाषा की बात करें तो हमें दक्षिण भारत में मलयलम के उदाहरण से प्रेरणा लेकर गढ़वाली-कुमांउनी का अस्तित्व यथावत रखकर दोनों का समाकलन कर एकीकरण की बात को महत्व देना चाहिए, यही उत्तराखण्ड और उत्तराखण्ड की भाषा के लिए श्रेयकर होगा।