विवादित भूमि पर मुख्यमंत्री से करवा डाला शिलान्यास

कथित बड़े अखबारों के दबाव में मुख्यमंत्री
देहरादून : सत्ता और मीडिया जब आपस में जुगलबंदी कर लें तो बिना सही गलत की कसौटी पर तौले किसी भी काम को अंजाम दिया जा सकता है। इसका जीता जागता प्रमाण राजधानी देहरादून में देखने को मिला। वह भी हिंदी पत्रकारिता दिवस के एतिहासिक दिन। पहले हिंदी भाषी अखबार के प्रकाशित होने की 188 वीं वर्षगांठ के दिन जब देशभर में हिंदी पत्रकारिता के मौजदा स्वरूप को लेकर तमाम चर्चाएं,विचारगोष्ठियां और सेमिनार आयोजित किए जा रहे थे, जब हिंदी पत्रकारिता में आ रही निरंतर गिरावट और पत्रकारों के ‘‘सत्ता का चारण’’ बन जाने पर तमाम मंचों से चिंता जताई जा रही थी, ठीक इसी वक्त उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून में सत्ता और तथाकथित पत्रकारों का एक गुट, ‘जुगलबंदी’ की नई कहानी लिखने में जुटे थे।
उत्तरांचल प्रेस क्लब जो कि पिछले साल हुए चुनाव को लेकर विवाद में है और इसका मामला अभी भी नैनीताल उच्च न्यायालय में विचाराधीन है और वहीँ एक अन्य मामला मानवाधिकार आयोग में चल रहा है ऐसे में चंद मीडिया कर्मियों की जुगलबंदी पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत चंद मीडिया समूहों के आगे पूरी तरह नतमस्तक नजर आए। इसका प्रमाण यह है कि, जिस देहरादून मे बिना एमडीडीए की अनुमति के किसी भी तरह के निर्माण कार्य की अनुमति नहीं है, उसी देहरादून में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक ऐसी जमीन पर भवन निर्माण का शिलान्यास कर दिया जो लंबे समय से विवादों के घेरे में है।
हैरत की बात है कि मुख्यमंत्री के साथ पूरा प्रशासनिक अमला मौके पर मौजूद था, मगर किसी भी अधिकारी ने उन्हें विवादित जमीन पर शिलान्यास न करने का सुझाव तक नहीं दिया। उत्तरांचल प्रेस क्लब जो कि लंबे समय से विवादों में रहा है, को आवंटित जमीन पर मुख्यमंत्री ने चंद बड़े समाचार पत्रों में काम करने वाले कुछ मुट्ठीभर पत्रकारों के कहने पर भवन निर्माण का शिलान्यास कर दिया।
गौरतलब है कि देहरादून के बीचों बीच बेहद कीमती जमीन पर बना उत्तरांच प्रेस क्लब लंबे समय से विवादों का केंद्र बना हुआ है। विवाद की वजह यह है कि अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा जैसे बड़े अखबारों में कार्यरत कुछ पत्रकार इस प्रेस क्लब को अपनी निजी समझ कर इसे हड़पने की फिराक में हैं। इसका बड़ा प्रमाण यह है कि इन अखबारों में से एक अखबार में काम करने वाले एक मीडियाकर्मी का प्रेस क्लब की कैंटीन पर कई सालों से कब्जा है। इसके साथ ही प्रेस क्लब की कार्यकारिणी में भी इन्हीं बड़े अखबारों के मीडियाकर्मियों का प्रभुत्व है।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल दिसंबर में जब प्रेस क्लब के चुनाव होने थे, तो पत्रकारों के इस गुट ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के संरक्षण में बड़ा खेल रचा और डेढ सौ से ज्यादा पत्रकारों को वोटिंग से वंचित कर दिया। तब चालीस से भी कम पत्रकारों से वोटिंग करवाई गई और अवैध तरीके से चुनाव करवा कर प्रेस क्लब की नई कार्यकारिणी बना दी गई। इसका बाकी पत्रकारों द्वारा विरोध किए जाने पर उन्हें पुलिस के हाथों बुरी तरह पिटवाया गया। लाठीचार्ज की उस घटना में दर्दनभर से ज्यादा पत्रकार घायल हो गए थे। लाठीचार्ज में घायल होने वाले अधिकतर पत्रकार उन छोटे समाचार पत्रों से जुड़े थे, जो बेहद सीमित संसाधनों के साथ जनपक्षधरता की पत्रकारिता कर रहे हैं।
इस मामलें में राज्य मानवाधिकार आयोग तत्कालीन प्रदेश सरकार तथा पुलिस के रवैये पर सवाल उठा चुका है, तथा पूरा विवाद नैनीताल हाईकोर्ट में लंबित है। इस सबके बावजूद नई सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस विवादित स्थल पर चंद पत्रकारों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में न केवल मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की बल्कि भवन का शिलान्यास भी कर दिया। इस मामले में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि प्रेस क्लब में इस कार्यक्रम के आयोजित होने की सूचना मिलने के बाद राजधानी के पत्रकारों ने मुख्यमंत्री को पूरी कहानी से अवगत करा दिया था।
पत्रकारों ने एक चिट्ठी के जरिए प्रेसक्लब में चल रहे विवाद, बड़े मीडिया समूहों की मनमानी और सरकारी संपत्ति हड़पने के उनके मंसूबों को भी मुख्यमंत्री के संज्ञान में डाल दिया गया था। उम्मीद की जा रही थी कि इतना सब कुछ जानने-समझने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस विवादित कार्यक्रम में जाने से बचेंगे। मुख्यमंत्री से ऐसी उम्मीद इसलिए भी थी क्योंकि वे राजनीति में आने से पहले पत्रकारिता के पेशे से जुड़े थे। मगर इसके बावजूद उनका कार्यक्रम मे शिरकत करना और भवन निर्माण का शिलान्यास करना यही साबित करता है कि बड़े अखबारों की प्रेशर पालिटिक्स के आगे उन्होंने समर्पण कर दिया है।
मुट्ठीभर पत्रकारों की उपस्थिति में हुआ कार्यक्रम का आयोजन
उत्तरांचल प्रेस क्लब में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री का शिरकत करना यही दिखाता है कि वे अभी से बड़े अखबारों के दबाव में आ गए हैं। जिन मुट्ठीभर पत्रकारों ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया उनमें से अधिकतर बड़े अखबारों में या तो कार्यरत है या कभी काम कर चुके हैं।
पत्रकारों की इस मंडली ने मुख्यमंत्री को ‘इंप्रेस’ करने और ‘प्रेशर’ में रखने के लिए हर तिकड़म को अंजाम दिया। प्रदेश के चार बड़े अखबारों के स्थानीय संपादकों को विशिष्ठ अतिथि के तौर पर कार्यक्रम में बुलाया गया। यह हाल तब है जब इन चार अखबारों के बीच आपस में गलाकाट प्रतिस्पर्धा जगजाहिर है।
बहरहाल सबसे बड़ा सवाल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के इस कार्यक्रम में शिरकत करने को लेकर है। सवाल यह है कि अभी उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे 100 दिन भी पूरे नहीं हुए हैं और वे इन बड़े अखबारों के दबाव में आने लगे हैं। यह दबाव नहीं तो और क्या है कि उन्होंने पत्रकारों के कहने पर भवन निर्माण का शिलान्यास तक कर दिया। ऐसे में समझा जा सकता है कि जब 100 दिन के भीतर चंद पत्रकार मुख्यमंत्री से इतना सब कुछ करवा सकते हैं तो आने वाले दिनों में क्या-क्या करवाया जा सकता है। प्रदेश की जनता की गाढी कमाई को चंद पत्रकारों के एशो-आरोम पर खर्च करना कितना सही है और कितना गलत, उम्मीद है मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इतना तो जानते-समझते होंगे।