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”जायका” का जायका लेती सूबे की अफसरशाही

  • जापान का सॉफ्ट लोन लगा दिया ठिकाने!
  • सरकार की खामोशी अपने आप में खड़े कर रही कई सवाल 
  • बीस करोड़ की इमारत वह भी लीज की जमीन पर आखिर किसके लिए 

देहरादून : ”यावद जीवेत सुखं जीवेत  ऋणम कृत्वा घृतं  पिबेत भस्मिभूतस्य देहस्य पुनराग़मनम कुत:” यानि जब तक जीवो सुख से जीवो, उधार लो और घी पीयो। उत्तराखंड को जापान से मिला एक हज़ार करोड़ का सॉफ्ट लोन भी सूबे के अधिकारी इसी फॉमूले पर ठिकाने लगा रहे हैँ।  राज्य के वन विभाग के आईएफएस अधिकारों ने जापान सी  मिले उधार की रकम को ठिकाने लगाने के काम को अंजाम देना शुरू कर दिया है, कर्ज में डूबे उत्तराखंड जिसे इन आईएफएस की तनख्वाह के लिये भी लोन लेना पड़ता है इस मामले में सरकार क्यों खामोश है यह अपने आप में एक बड़ा सवाल बना हुआ है ?

जापान इंडिया कॉर्पोरेशन एजेंसी (JICA)यानी जायका ने उत्तराखंड को तीन साल पहले एक हज़ार रुपये का सॉफ्ट लोन इस लिए दिया कि वो पहाड़ों में जड़ी बूटी,वानिकी के लिए काम करे,उत्तराखंड की बारह हजार वन पंचायतों में से पांच सौ पंचायतों के लिए ये प्रोजेक्ट बनाया गया,कुछ नर्सरियां भी बनाई गई। यहां तक तो ठीक है पर जो खेल इसमें खेला गया वो सुन कर आश्चर्य होता है कि आईएफएस और आईएएस अधिकारियों ने मिलकर कैसे इस सॉफ्ट लोन की रकम को ठिकाने लगा दिया, जो अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।

आठ सालों की परियोजना का JICA का प्रोजेक्ट ऑफिस आईटी पार्क सहस्त्रधारा रोड में करीब चालीस करोड़ में बना दिया और यहाँ पर्वतीय इलाकों में नर्सरियों और पौधा रोपण के कार्य के लिए दी गयी एक मोटी रकम को ठिकाने लगा दिया गया।

अब सवाल यह उठता है कि वन विभाग से जुड़ा और वानिकी के काम का यह प्रोजेक्ट ऑफिस आईटी पार्क में लीज की ज़मीन के शुल्क का भुगतान करके किसके लिए बना दिया? जबकि ये कार्यालय देहरादून के वन विभाग की बनी नई आलीशान इमारत में भी बनाया जा सकता था,जिसके दर्जनों कमरे अभी भी खाली पड़े हैं । सात साल के इस प्रोजेक्ट के बाद इस करोड़ो की बिल्डिंग को किस काम में लायी जाएगी।इस सवालका जवाब भी वन विभाग के अधिकारियों के पास नहीं है।

भीतर की खबर तो यह है कि पूर्व में चर्चित ‘’राका’’ और प्रोजेक्ट निदेशक ए. मालिक ने मिलकर ये खेल रचा,चालीस करोड़ की इमारत में कुल पंद्रह लोगों का स्टाफ,अभी ये खेल यहीं नहीं थमा, जायका प्रोजेक्ट के तहत ही यहां पास में गैर प्रकाष्ठ वन उत्पाद ऑफ एक्सलेंस की बीस करोड़ की इमारत और बना दी गयी,ये किस लिए बना दी गयी इसका किसको फायदा हुआ? यदि कोई इमारत बनानी ही थी तो आई टी पार्क की लीज भूमि के बजाय वन विभाग की अपनी  भूमि पर क्यों नहीं बनाई गई ताकि उसका लीज शुल्क भी नहीं देना पड़ता,सॉफ्ट लोन की ये इमारतें कार्यालय यदि पहाड़ में बनाई जाती तो इसका फायदा वन पंचायतों या ग्रामीणों को होता।

इतना ही नहीं JICA प्रोजेक्ट के लिए दस करोड़ रुपये कंसलटेंट एजेंसियों को जारी कर दिये गए, यह सुन कर तब हैरानी होती है जिस उत्तराखंड वन विभाग के पास दुनिया के सबसे योग्य आईएफएस हैं और हज़ारों वन कर्मियों की टीम है तो उसे भी क्या कंसल्टेंट्स की जरूरत है? बरहाल जब नियत ही करोड़ों की रकम ठिकाने लगाने की हो तो पैसा लुटाने में अपना क्या जाता है परियोजना का परिणाम क्या हो फायदा या नुकसान ये नहीं सोचना,अधिकारी जी का तबादला हो जाना, मंत्री जी और उनके साथ एक दर्जन से ज्यादा लोग जापान घूम आएंगे और आंकड़ो की बाज़ीगीरी भी हो जाएगी।
बात अभी यहां नही खत्म होती JICA प्रोजेक्ट में रिटायर ऑफिसर्स की फौज को खपाने का खेल भी सामने आ रहा है,एस.के. सिंह,पी. सिंह,एस.एन.जोशी जैसे कई रिटायर अधिकारी मोटी तनख्वाह पर यहां कितना और क्या काम कर रहे हैं ? इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है।

JICA के चीफ प्रोजेक्ट डायरेक्टर अनूप मलिक से कोई जवाब तलब करने वाला नहीं कि सॉफ्ट लोन का पैसा कहां लगा दिया और क्यों लगा दिया ? ये पैसा कैसे और कौन चुकाएगा?इसका अभी तक क्या फायदा हुआ?,योजना की समीक्षा,ग्राउंड जीरो पर क्या हालात है? इस पर कोई चर्चा नहीं?

वन विभाग से जुड़े आईएफएस अधिकारियों ने जायका (JICA) की सॉफ्ट लोन धनराशि को खुर्द बुर्द किया उसका जिक्र हम कर चुके हैं .
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि जापान इंडिया कॉरपोरेशन एजेंसी का ये पैसा क्या चुकाया नहीं जाएगा? इसी तरह का लोन गुजरात की बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए दिया गया,अब सोचिये सरकार वहां बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय वो पैसा रेलवे स्टेशन की कैंटीन बनाने में लगादे तो भारत की साख पर कितना धब्बा लगेगा,आंकड़ो की बाज़ीगरी करके उत्तराखंड JICA का पोल यदि जापान में जाकर कोई खोल दे तो क्या छवि बनेगी?

आपको जानकारी देना चाहूंगा कि जापान के तमाम विश्व विद्यालयो के छात्र उत्तराखंड में जलवायु और पर्यावरण में शोध कर रहे है ।यदि उनके जरिये ये फ़र्ज़ी वाड़े जापान को पता चल गए तो क्या होगा,अधिकारी ट्रांसफर हो जायेगे,,मंत्री जी के विभाग बदल दिये जायेंगे घोटाले पर कम्बल डाल दिया जाएगा।

उत्तर प्रदेश राज्य निर्माण निगम को कई साल पहले उत्तराखंड सरकार ने ब्लैक लिस्ट में डाल दिया उसी निगम को जायका के काम दे दिए,है न कमाल की बात ऐसी क्या वजह थी कि कांग्रेस सरकार के दौरान प्रमुख सचिव राकेश शर्मा इसी निगम को ठेके देने की सिफारिश करते रहे।

ये सारे आपकी सरकार के अधिकारियों के संज्ञान में भी है,लेखा परीक्षा दल की रिपोर्ट में भी सामने आ चुके हैं,जायका का पैसा ,हर्बल और अन्य जरूरी वानिकी के लिए पांच सौ वन पंचायतों के लिए आया था,तो फिर ये पैसा आलीशान इमारतों में क्यों लगा दिया गया?,

वहीँ सूबे के वन मंत्री हरक सिंह रावत ने जायका टीम ने हाल ही में जापान का दौरा तो कर लिया,पर वन मंत्री ने अभी तक वन पंचायतों की ज़मीनी हकीकत को एक बार भी जानने की जहमत क्यों नहीं उठायी यह सवाल भी सत्ता के गलियारों में तैर रहा है।

वहीँ यह भी सवाल उठ रहे हैं कि सरकार या वन विभाग यह तो बताये कि तितलिखेत,टेहरी में दो स्थानों पर,इको टूरिज़म सेंटर क्यों और किसके लिए बनाए जा रहे हैं,जबकि वन विभाग दूसरी तरफ यह खुद कहता है कि उसकी इको टूरिज्म    की अभी तक नियमावली तक ही नहीं बनी और वन विभाग कोई व्यापार नहीं  करता तो फिर ये इमारते क्यों बन रही है?
वहीँ यह भी बताते चलें कि नॉन टिम्बर प्रोडक्ट्स म्यूजियम और ट्रेनिंग सेंटर जायका के पैसों से बनाये जा रहे हैं और बना कौन रहा है उत्तर प्रदेश राज्य निर्माण निगम, सूत्र बताते हैं कि निगम ने वक्त रहते ये प्रोजेक्ट भी पूरे नहीं  किये और सितंबर महीने में सरकार ने दो बड़े जिम्मेदार अधिकारियों को पत्र लिख कर निगम पर अर्थ दंड लगा कर वसूली करने को कहा है ये वसूली की रकम ही पचास करोड़ से ज्यादा है।

यहाँ यह बात भी अपने आप में अजीब सी सामने आई है कि जायका के प्रोजेक्ट डायरेक्टर सीधे शासन को रिपोर्ट करते हैं,जबकि वन विभाग के पीसीसीएफ राजेन्द्र महाजन जायका के भी पीसीसीएफ हैं ,उनको प्रोजेक्ट डायरेक्टर किसी तरह से रिपोर्ट नहीं करते जबकि गलतियों और गड़बड़ियों को लेकर जवाब तलब उनका होता है और किया जा रहा है। जबकि इस मामले में प्रोजेक्ट डायरेक्टर का जवाब तलब होना चाहिए क्योंकि जायका की सारी जिम्मेदारी चीफ प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर की है न कि पीसीसीएफ चीफ की।

वहीँ अब वन विभाग को अब राज्यनिर्माण निगम से तमाम मदों में वसूली के लिए कहा जारहा है किसलिए?यानी कोई बड़ा घप्पला सामने आ गया है.सूबे के बुद्धिजीवियों का कहना है कि राज्य सरकार जायका के कार्यों की जांच के लिए  एसआईटी बनाये जो सच होगा वह सामने आ जायेगा,क्योंकि ये विषय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश और प्रदेश की साख बचाने का है।

 एक और मज़ेदार जानकारी सामने आयी है कि जायका प्रोजेक्ट में हर्बल पौधों और वानिकी के लिए जिन पांच सौ वन पंचायतों को चुना गया था वहां अभी नर्सरियां भी पूरी तरह से तैयार नहीं हुई उनकी मार्केटिंग के लिए पहले दिन से 48 हज़ार रु प्रतिमाह पर सभी फारेस्ट डिवीजनों में मार्केटिंग अधिकारी रख दिये गए जिसमें हर साल लगभग 70 लाख 20 हज़ार का खर्चा आ रहा है और अभी तक दो करोड़ से ज्यादा की रकम इनके वेतन और अन्य मदों पर पानी की तरह बहा दी गयी है।

इतना ही नहीं हर फॉरेस्ट डिवीजन में एक फील्ड एफएनजीओ 18 हज़ार रुपये महीने में रखा हुआ है इस बन्दे का क्या काम है?क्यों तनख्वाह दी जा रही है ? इसका भी कोई जवाब इन अधिकारियों के पास नहीं है।

 

devbhoomimedia

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