UTTARAKHAND

भाजपा का दृष्टिहीन दृष्टि पत्र !

तो भाजपा ऐसे बदलेगी उत्तराखण्ड….?

योगेश भट्ट 
देहरादूना  :  कई महज जुमलों और नारों से ‘तस्वीर’ नहीं बदला करती। तस्वीर बदलती है कमिटमेंट से, सोच से और प्लानिंग से । उत्तराखण्ड को लेकर भाजपा के विजन डाक्यूमेंट की बात करें तो इसमें ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता।
आज भाजपा मतदाताओं से अपील कर रही है कि, ‘भाजपा के संग आओ बदले उत्तराखण्ड’ , इसमें कोई दो राय नहीं कि देवभूमि का जनमानस बदलाव चाहता है। लेकिन दुविधा यह है कि भाजपा के संग कैसे बदले उत्तराखण्ड, यह उसके लिए यक्ष प्रश्न बना हुआ है । उत्तराखण्ड की आज सबसे बड़ी जरुरत है, सुशासन,पारदर्शी व्यवस्था और एक जवाबदेह प्रशासन । इसके सबसे जरुरी है राजनीतिक स्थिरता । अभी तक का प्रदेश में शासन का जो रिकार्ड है, साफ है कि सबसे ज्यादा राजनीतिक अस्थिरता का शिकार भाजपा शासन रहा है। पांच साल में सर्वाधिक मुख्यमंत्री देने का रिकार्ड भी भाजपा के ही नाम है। इस राजनीतिक अस्थिरता की उत्तराखण्ड ने बड़ी कीमत चुकाई, जिसके चलते तमाम मुद्दे हाशिए पर चले गए। आज भाजपा उत्तराखण्ड के बदहाल और खस्ताहाल होने को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है और कह रही है कि इस बदहाली, खस्ताहाली को बदलने के लिए भाजपा के साथ आएं ।

लेकिन यह क्या? भाजपा के दृष्टि पत्र में ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिससे यह यकीन किया जाए कि वो प्रदेश की तस्वीर बदलना चाहती है। जहां तक सवाल प्रदेश में घोटालों और बदहाली का है, तो दामन भाजपा का भी पाक-साफ नहीं । कांग्रेस के कारनामों पर अगर भाजपा पर्दा डालती रही है, तो उसकी कीमत यही है कि भाजपा काल के कारनामों को कांग्रेस ने भी उतने ही ‘सम्मान’ के साथ दबाए रखा है। भाजपा के दृष्टि पत्र में यह गारंटी कहीं नहीं है कि, न कोई घोटाला होगा और ना ही कोई भ्रष्टाचारी बख्शा जाएगा। योजना किसी व्यक्ति विशेष या कारपोरेट विशेष को ध्यान में रखने के बजाय जनहित को केन्द्र में रख कर तैयार होंगी, इसका भी भरोसा इस दृष्टि पत्र में नहीं है। राज्य के संसाधनों की लूट पर नियंत्रण होगा और उन पर पहला हक प्रदेश का होगा, यह भी सुनिश्चित नहीं है।

पुराने ढर्रे पर युवाओं और महिलाओं को दिए गए चंद प्रलोभनों को छोड़ दिया जाए तो भाजपा तमाम गंभीर मसलों पर रुख स्पष्ट करने से भी बची है। इन मसलों को उसने मुद्दे के तौर पर शामिल तो किया है, लेकिन अपना स्टैंड नहीं साफ किया है। और तो और स्थाई राजधानी के मुद्दे पर तक दृष्टि साफ नहीं है। तो सवाल उठना लाजमी है कि कैसे बदलेगा उत्तराखण्ड? तो क्या ये माना जाए कि जैसे आज भाजपा बदल गई, उत्तराखण्ड भी वैसे ही बदलेगा? तमाम दागी बागी और अवसरवादी जिस तरह शीर्ष पर हैं, पार्टी राजनीति में अपने विचार से इतर सिर्फ महज परसेप्शन की राजनीति कर रही है, कर्मठ, ईमानदार और निष्ठावान नेता-कार्यकर्ता हाशिए पर हैं और सत्ता का केन्द्र दिल्ली दरबार है। तो क्या इस तरीके से उत्तराखण्ड बदलने की तैयारी है? वापस एक बार फिर दृष्टि पत्र का सवाल, तो यह ऐसा दृष्टि पत्र है जिसकी कोई दिशा ही नहीं। जिस दृष्टि पत्र की कोई दिशा न हो, कल्पना की जा सकती है कि उससे उत्तराखण्ड क्या खाक बदलेगा ?

devbhoomimedia

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