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भाजपा को भी लगता है लोकायुक्त से डर !

योगेश भट्ट 
लोकायुक्त से हर सरकार को डर लगता है, चाहे वो किसी भी दल की हो l उत्तराखण्ड में भाजपा भी इस मुद्दे पर कांग्रेस के पदचिन्हों पर है l सरकार में आते ही जो भाजपा भ्रष्टाचार मुक्त पारदर्शी प्रशासन को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बताती है ,भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस का दावा करती है । वही भाजपा अब बैकफुट पर आने लगी है । 

शुरू में तो सरकार ने लोकायुक्त पर तेजी दिखाते हुए पहले ही सत्र में लोकायुक्त एक्ट को सदन में पेश कर, यह दिखाने की कोशिश भी की कि वह सुशासन की पैरोकार है। लेकिन मुख्यमंत्री के एक हालिया बयान से तो यह लग रहा है कि सरकार लोकायुक्त के मसले को लटकाए रखने के मूड में है। दरअसल दो दिन पहले भाजपा के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, वे ऐसी सरकार चलाएंगे कि लोकायुक्त की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। हालांकि उन्होंने यह बात भ्रष्टाचारमुक्त सरकार चलाने के परिपेक्ष्य में कही, लोकिन तब भी उनके इस बयान के कई मायने नजर आते हैं।

सवाल यह है कि भाजपा प्रदेश में कोई पहली बार तो सरकार नहीं चला रही? इससे पहले भी भाजपा को राज्य गठन के बाद अंतरिम सरकार तथा उसके बाद साल 2007 से 2012 तक पूर्णकालिक सरकार चलाने का मौका मिल चुका है। तब भाजपा शासन काल में तमाम घपले घोटाले सामने आए, जिनमें से कुछ की जांच अभी तक लंबित है, जबकि कुछ की तो जांच ही नहीं हो सकी। इसी तरह कांग्रेस के शासन काल में भी प्रदेश में खूब घोटाले हुए। इन घोटालों की जांच लोकायुक्त से कराए जाने की मांग लगातार उठती रही है।

लोकायुक्त के प्रभाव को देखते हुए भाजपा ने इस बार इसे चुनावी वादा भी बनाया था। लेकिन अब मुख्यमंत्री का यह कहना कि लोकायुक्त की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है। दरअसल लोकायुक्त को लेकर भाजपा के विचार भी कांग्रेस की ही तरह हैं। कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार लोकायुक्त के गठन की प्रक्रिया को आखिर तक इसी लिए लटकाती रही क्योंकि उसे खुद के ‘कारनामों’ के उजागर होने का डर था। अब भाजपा की सरकार भी लगता है इसी लिए लोकायुक्त से बचना चाहती है।

सरकार जानती है कि एक बार यदि लोकायुक्त संस्था का गठन हो गया तो, फिर इसे भंग कर पाना उसके लिए आसान नहीं होगा। शपथ ग्रहण के बाद से वर्तमान तक त्रिवेंद्र सरकार की जो भी गतिविधियां रही हैं, उनको लेकर भी अब खुसर-फुसर शुरू होने लगी है। सरकार के कुछ फैसलों पर दबी जुबान उंगलियां भी उठने लगी हैं। चूंकि अभी सरकार का कार्यकाल शुरू हुआ ही है लिहाजा उसके खिलाफ कोई भी अभी खुल कर नहीं आ रहा, लेकिन जैसे-जैसे कार्यकाल आगे बढेगा, उसके द्वारा लिए गए फैसलों पर तमाम सवाल उठने लगेंगे, यह जाहिर सी बात है। तब बहुत संभव है कि कुछ मामलों की जांच लोकायुक्त से कराए जाने की मांग जोर पकड़ेगी।

लगता है मुख्यमंत्री इस बात को अच्छी तरह जानते समझते हैं। वरना, यदि सरकार लोकायुक्त पर वाकई में गंभीर होती, तो एक्ट को सदन में पेश किए जाने के बाद उसे प्रवर समिति को हवाले नहीं करती, वह भी तब जबकि विपक्ष भी इसका समर्थन कर चुका था। जहां तक प्रवर समिति की बात है तो प्रदेश में अब तक की सभी सरकारों के कार्यकाल में तैयार किए गए कई महत्वपूर्ण विधेयक ऐसे हैं, जो एक बार प्रवर समिति के हवाले हुए तो फिर उसी के होकर रह गए।

इस बार भी सरकार ने लोकायुक्त एक्ट के प्रावधानों में संशोधन करने के लिए भले ही प्रवर समिति को एक माह का समय दिया है, लेकिन लगता नहीं है कि इस समयावधि में लोकायुक्त अधिनियम धरातल पर उतर जाएगा। और अब तो मुख्यमंत्री ने खुद ऐसा बयान देकर इस आशंका को और भी बल दे दिया है।

devbhoomimedia

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