देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : उत्तराखण्ड बीजेपी भावी सरकार बनाने के सपने देख रही है, बीते दिन की रैली के बाद उसके पाँव जमीन पर नहीं हैं। एक नेता का पुत्र जो पार्टी में किसी भी पद पर नहीं है उसकी वरिष्ठतम नेताओं के स्थान पर उपस्थिति बताती है कि सर्वश्रेष्ठ संगठन का दावा करने वाली बीजेपी सपा बसपा की तर्ज पर परिवारवाद के सहारे चल रही है। ये नेता पुत्र हर आयोजन में आगवानी करने वाली टीम का लीडर बना दिया जाता है। हर बड़े नेता के होटल गेस्ट हाउस के कमरे के दरवाजे पर तैनात दिख जाता है।
अमित शाह की हरिद्वार रैली में जब ये नेता पुत्र अमित शाह के ठीक पीछे मंच पर खड़ा रहा और मंच पर सक्रिय रहा तो पार्टी के भीतर तीखी प्रतिक्रिया हुयी थी। कुछ लोगों की जेबी संगठन बन चुकी भाजपा बीते कुछ सालों से उत्तराखंड में बहुत से अंतर्विरोधों से जूझ रही है। इस रैली को ही लें जिस तरह से प्रबन्धन किया गया वो कुप्रबन्धन की पराकाष्ठा है। गनीमत है कि रैली मोदी की थी और चुनाव का समय था इसलिए इज्जत बच गयी।
रैली का संयोजक केंद्र के एक नेता की कृपा से पिछले कई वर्षों से संगठन में जमे हुए वह नेता बनाये गए थे जो पिछले कई वर्षों से ”सफारी सूट वाले नेता” के रूप में चर्चित रहे हैं। उन्होंने भी शहर के उन बीजेपी नेताओं के झुण्ड के साथ तैयारियाँ करवाई जो सरकार आने पर सर्वाधिक प्रभावी हो जाते है। परिवर्तन यात्रा की तरह मोदी की रैली भी भगवान भरोसे थी, वह मोदी का ही करिश्मा था जो इतनी भीड़ जुट गयी । इस आयोंजन की एक और ख़ास बात यह रही कि पार्टी के अनुभवी और वरिष्ठ व पुराने नेता एक सिरे से दरकिनार किये गये थे, जिन्होंने अपनी ताकत व खून पसीने से उत्तराखंड में भाजपा की बगिया को सींचा था।
बेशर्मी की हद तो यहाँ तक है कि मोदी की सफल रैली का श्रेय वे लोग लेने को तैयार हैं जो अपने परिवार के अलावा किसी बाहरी व्यक्ति तक पर आज तक कोई प्रभाव नहीं बना पाए हैं और न ही पार्टी से जोड़ पाए हैं वहीँ ऊपर से यह तुर्रा कि अब खुद ही अपने प्रबंधन से इस भीड़ के जुटने का श्रेय तक दे रहे हैं, इतना ही नहीं यहाँ तक जानकारी में आया है कि अब ऐसे लोग अब अपने ही अभिनन्दन समारोह तक कराने की तैयारी में जुट गए हैं जहाँ वे अपने बाद अब अपने कुछ चाटुकारों से अपनी ही पीठ थपथावायेंगे।
कौन जॉलीग्रांट पर पीएम को रिसीव करेगा, कौन जीटीसी पर रिसीव करेगा, कौन मंच के पास खड़ा होगा ये सब पार्टी नेता शिवप्रकाश, संजय कुमार, नरेश बंसल द्वारा तय हुआ। जो चेहरे पसन्द नहीं थे उन्होंने पीएम का भाषण अपने घर बैठकर टीवी पर देखने को मजबूर किया गया। नेताओं के बेटे, साले, कर्मचारी, ड्राइवर भी पानी पिलाने, गुलदस्ता पकड़ने के जुगाड़ के साथ मंच पर जगह पा गये जिसकी पार्टी के भीतर तीखी प्रतिक्रिया है।
”अन्धा बांटे रेवड़ी ‘ की तर्ज पर इस रैली का संचालन कुछ विशेष लोगों के हाथों में ही रहा। नोट बन्दी के कारण राजनैतिक दल भी परेशान हैं, इतनी बड़ी रैली का आयोजन भी चुनौती थी इसलिये हर चुनाव के समय पार्टी के ‘आर्थिक तारणहार’ इस रैली के आयोजन को कब्जा करके बैठ गए। इतना ही नही खुद एक भी व्यक्ति खड़ा न कर पाने वाले ऐसे नेताओं ने पार्टी के जमीनी नेताओं को टिकट का डर दिखाकर भीड़ लाने को बोला गया और उनको भीड़ के बीच में ही बैठने को ही निर्देशित किया गया। जनता बीजेपी के लिये अगर मन भी बना ले तो इस तरह का हल्का, अव्यवस्थित प्रबन्धन पार्टी की हर कोशिश को परवान नहीं चढ़ने नहीं देगा।