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बिपिन रावत को यूँ नहीं बनाया गया आर्मी चीफ

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

दिल्ली। लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत को काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन का मास्टर माना जाता है और ऊंची चोटी की लड़ाइयों के भी वे विशेषज्ञ हैं। लेकिन फिर भी नए आर्मी चीफ बिपिन रावत की नियुक्ति के लेकर विवाद खड़ा किया जा रहा है। इसके पीछे की वजह यह भी बताई जा रही है कि सरकार ने उनको वरिष्ठता के आधार पर नहीं चुना है जैसा कि  परंपरा रही है।सेना प्रमुख के पद पर सबसे वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति की परंपरा रही है लेकिन वरिष्ठता के क्रम में तीसरे नंबर के सेनाधिकारी बिपिन रावत को ही सरकार ने आर्मी चीफ क्यों चुना इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण भी सामने आये हैं।

उलेखनीय है कि आर्मी में दलबीर सिंह सुहाग के बाद सबसे वरिष्ठ अधिकारी ईस्टर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी हैं, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उनकी कभी खतरनाक जगहों पर पोस्टिंग नहीं हुई। वहीं, प्रवीण बख्शी के बाद के सीनियर सेनाधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल पीएम हारिज के बारे में कहा जा रहा है कि उनको एलओसी जैसी जगहों पर ऑपरेशन चलाने का कोई अनुभव नहीं है। गोरखा रेजीमेंट के बिपिन रावत को देश की सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त अधिकारी माना जा रहा है। इस बारे में आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि बिपिन रावत को सेना के संगठन और कई ऑपरेशन चलाने के अनुभव हैं।वहीँ उनको काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन का मास्टर माना जाता है.

बिपिन रावत जैसे सैन्य अधिकारी ने कश्मीर में एलओसी सहित  नॉर्थ ईस्ट में चीन से सटी सीमा पर भी लंबे समय तक काम कर चुके हैं और उनको काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन विशेषज्ञ माना जाता है। वह ऊंची चोटियों की लड़ाई में भी सिद्धहस्त माने जाते हैं। कहा जा रहा है कि आतंकवाद और सीमा की चुनौतियों को देखते हुए उनको आर्मी चीफ पद के पद पर नियुक्त किया गया है।

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