UTTARAKHAND

सबसे बड़ा सवाल : देश की कुछ मस्जिदों में कोरोना पॉजिटिवों की नर्सरी तो तैयार नहीं की जा रही है ?

कोरोना और डिवाइन एकॉउंटेंटेबिलिटी” का मिथ

कोरोना संकट के साथ देश की आंतरिक सुरक्षा से भी जुड़ रहा है यह प्रकरण 

हरीश सती 

विश्व मानवता जिस संकट के दौर से गुजर रही है उस कोरोना संकट के चलते सारे विश्व के लोगों ने बहुत सारे अभूतपूर्व दृश्य देखे होंगे। लेकिन भारत ने तो अकल्पनीय दृश्य ही देख लिए। कोरोना जैसे संकट में, जिसके सामने विश्व के शक्तिशाली देशों को उबरने के लिए कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है।जिसके कारण सारी दुनिया में  सामूहिक आर्थिक,सामाजिक और मज़हबी गतिविधियां बन्द कर दी गयीं हैं । क्या उसी कोरोना को फैलाने के लिए हमारे देश की कुछ मस्जिदों में कोरोना पोजिटीवों की नर्सरी तैयार की जा रही है? जहाँ सारी दुनिया में डॉक्टरों के साहस,संकल्प और समर्पण के लिए जनता कृतज्ञ होकर उनका अभिवादन कर रही है,वहीं सारे विश्व में सिर्फ और सिर्फ भारत में डॉक्टरों के साथ न केवल अभद्रतापूर्ण व्यवहार हो रहा है बल्कि उन पर जानलेवा हमले हो रहे हैं।

इंदौर, रामपुर,मुजफ्फरनगर, मुंगेर, सहारनपुर, धारावी(मुम्बई), बेंगलुरु, हैदराबाद, अलीगढ़,जयपुर जैसे कई शहरों में पुलिस बल पर भी जमकर पथराव हुआ। चिकित्सा कर्मियों व पुलिसकर्मियों पर थूका जा रहा है। जो लोग देश के अस्पतालों में आये दिन अपनी बीमारियों  के इलाज के लिए लम्बी लम्बी-लाइनें लगाकर खड़े रहते हैं उन्हें कोरोना की बीमारी से मोहब्बत सी हो गयी है। उन्ही के मरकज़ के मौलाना साद मस्जिद में आकर मरने की सलाह बांटते रहे। जो डॉक्टर अपने उत्तरदायित्वों को समझते हुए रात और दिन अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जांच कर रहे हैं उन्हें ही इंदौर में दौड़ा दौड़ा कर उनपर जानलेवा पथराव किया गया। आश्चर्य है कि मारने वालों की भीड़ में महिलाएं भी थी।जिन्होंने यह भी नहीं सोचा कि ये डॉक्टर भी महिला डॉक्टर हैं, जिन्होंने सर से पांव तक ऐसी ड्रेस पहनी है कि जिसमें वो ठीक से अपना बचाव भी नहीं कर सकते। न डॉक्टरों का लिहाज, न महिलाओं का लिहाज ।

आखिर ऐसा क्या हो गया था कि सारी मानवीयता को ताक पर रख दिया गया था? और यह घटना केवल इंदौर की ही नहीं है।ऐसा ही मिलता जुलता हाल देश के कई राज्यों के शहरों का है। गाज़ियाबाद के जिला अस्पताल में ऐसे ही 6 कोरोना संदिग्ध, जिनमें एक कोरोना पॉजिटिव आया है और अन्य की दूसरी जांच जारी है, ने भी अश्लीलता के सारी सीमाएं तोड़ दी। महिला स्टाफ के सामने मोबाइल पर भद्दे कंटेंट प्रयोग करते रहे और अश्लील और बेहूदा हरकते करते रहे ।जब उनके परिवारों को भी सामने लाकर शिकायत की गई तो वे कहने लगे कि वे तो और भी ज्यादा अश्लीलता कर सकते हैं। अपनी अभद्रता पर उन्हें ज़रा भी मलाल नहीं है। जिस पर स्थानीय पुलिस ने एक्शन ले लिया है। जहां सारा विश्व कोरोना से मुक्ति के लिए छटपटा रहा है और ये लोग कोरोना के विरुद्ध चल रहे अभियान को निष्फल करने तुले हैं।

सारे विश्व में यह अकल्पनीय दृश्य सिर्फ भारत का है। जो लोग न अपनी सही जानकारी दे रहे है। जो न इस गम्भीर संकट में पुलिस को सहयोग कर रहे हैं। जो लोग अपने जीवनरक्षक डॉक्टरों से अभद्रता और उनपर आक्रमण तक कर रहे हैं। जिन्हें न देश की आर्थिक,सामाजिक और सामरिक हितों की चिंता है न अपनी और अपने परिवार की। तो ऐसे लोग इन तब्लीगों में जाकर करते क्या है? क्या सीखतें हैं और क्या लोगों को सिखाते हैं? *इन तब्लीगी जमातों ने अपनी शिक्षाओं से अपने मज़हबी एजेंडे और राष्ट्रीय हितों को क्यों और कैसे परस्पर विरोधी बना दिया?*

देश में 30 जनवरी से 23 मार्च तक केवल 339 कोरोना पॉजिटिव केस थे और 7 डेथ हुई थी।लेकिन मरकज़ कनेक्शन के बाद 2 अप्रैल तक मात्र 8 दिनों में 1550 नए कोरोना पॉजिटिव और 43 मृत्यु हुईं हैं। जो अब बढ़ती हीं जा रहीं हैं। मरकज़ के इसी मंसूबे को भांपने के बाद NSA  डोभाल को कमान अपने हाथ में लेनी पड़ी। जिसका साफ संकेत था कि यह प्रकरण अब कोरोना संकट के साथ देश की आंतरिक सुरक्षा से भी जुड़ गया है जिसे रणनीतिक तरीके से भी नियंत्रण में करने की आवश्यकता हो गयी है। जिसकी पुष्टि अगले दिनों में, सारे देश में मरकज़ से संबंधित, टूरिस्ट वीज़ा का प्रयोग कर मज़हबी कार्यों में लगे, विदेशी नागरिकों की धरपकड़ से होती गयी।

भारत की भाषाओं से अनभिज्ञ इन विदेशी नागरिकों को मस्जिदों में छुपाकर अपने लिए कोरोना का  संकट मोल लेने का औचित्य देश के लोगों की समझ से बाहर है। देश की राजधानी दिल्ली पहले शाहीन बाग, दिल्ली दंगे, आनन्द विहार जमघट के बाद अब मरकज़ से अभिशप्त होती जा रही है। 3अप्रैल को ही सूचनाएं हैं कि दिल्ली के जामियांनगर, ज़ाकिरनगर और  बटाला हाउस के पास अबू बकर मस्जिद, नूंह मस्जिद, जामा मस्जिद(जामियांनगर), इलाही मस्जिद,बिस्मिल्लाह मस्जिद और मोहम्मदी मस्जिद में लगभग डेढ़ सौ विदेशी नागरिक है। जो मरकज़ से  आये  हैं। इस तरह कि जामियांनगर में ही 41 मस्जिदें है। इनकी सूचना शासन को आज कुछ टीवी चैनलों द्वारा स्टिंग ऑपरेशन के बाद हुई।

ये हाल तो जामियांनगर का है बाकी दिल्ली का पता नही क्या हाल है? ये विदेशी जो हवाई जहाज का खर्च उठाकर भारत में आ रहे हैं क्या उन्हें उनके खुद के देशों में कोरोना संकट की और क्वारेन्टीन और आइसोलेशन की भी जानकारी नहीं हैं? उनके खुद के देशों में जब सारी सामूहिक मज़हबी गतिविधियां बन्द है तो भारत के लोगों की जान से खिलवाड़ क्यों कर रहे है ? और ये विदेशी नागरिक भी ऐसे देशों से आये है जो देश बुरी तरह कोरोनाग्रस्त हैं।

क्या मुख्तार अब्बास नकवी जी के शब्दों में  वाक़ई इनके मष्तिष्कों में कुछ अलग तरह की तालिबानी सोच है? क्या यह सोच काम कर रही है कि भारत एक दारुल -ए -हरब देश है यानि बिना मुस्लिम प्रभुत्व वाला देश? जिसे ये कोरोना के बहाने कमजोर करना चाहते हैं। ये लोग आखिर चाहते क्या है?एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के पूर्व महानिदेश विक्रम सिंह ने कहा इसके पीछे साज़िश लगती है और सख्तायी बरतने पर इनके सरपरस्त भी बेनकाब हो जाएंगे।अब लगातार टीवी चैनल्स पर तब्लीगों को बदनाम करने की साज़िश का दावा करने वाले पेनलिस्टों कि टीम खड़ी है।मोहम्मद साद को भी वकील मिल चुका है।

कहीं बुरी तरह से एक्सपोज़ होने के और साज़िश के उल्टे पड़ने के बाद रणनीति तो नही बदली जा रही? या NSA अजित डोभाल के एक्शन में आने के बाद,और टाइट किये जाने बाद भिन्न -भिन्न समाजों में प्रभाव रखने वाले लोगों के लॉकडाउन को सफल बनाने वाले बयान भी आने शुरू हो गए हैं? यद्यपि भारत सरकार द्वारा वीज़ा नियमों के उल्लंघन में दोषी पाए गए कुछ विदेशी जमातों को सदैव के लिए प्रतिबंधित कर दिया है ।लेकिन क्या ये जमातें नाम बदलकर फिर से ऐसी हरकतें नहीं कर सकती? 

भारत के  लोगों को आशंका हो सकती है कि वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ISIS की उपस्थिति और हमारे पड़ोस में मज़हबी कट्टरता और आंतकवाद के होलसेल सप्लायर की उपस्थिति और अन्य देशों के रूट से भारत में मज़हबी कट्टरता की खेप, क्या साज़िश की आशंकाएं मजबूत नहीं करती? सभी को ध्यान होगा कि कोरोना के फैलने के शुरुआती समय में ही चौंकाने वाले बयान में कुख्यात ISIS ने अपने लड़ाकों को सख्त हिदायत दी थी कि कोरोना के चलते कोई भी आंतकी मध्य पूर्व में बाहर न निकले।विश्व के सभी कोरोना पीड़ित मुस्लिम देशों में सारी मस्जिदें बन्द हैं। और हमारे देश में मोहम्मद साद , मरकज़ और उनकी जमाते लॉकडाउन को असफल बनाने में आमादा है। इस विरोधाभास को किस तरह देंखें?

आज तो सारे विश्व के देश कोरोना से कराह रहें हैं और प्रत्येक सम्प्रदाय को मानने वाले।लेकिन सिर्फ कल्पना ही कि जा सकती है कि यदि यह कोरोना संकट मात्र भारत में ही होता या शुरुआती चरण में भारत से प्रारंभ होता तो इन तब्लीगियों और इनके सरपरस्तों को समझाना और  विश्व समुदाय का समर्थन लेना कितना दुष्कर होता? या भारत किसी अन्य तरह के निर्णायक और अस्तित्व के संकट में  होता तो ये लोग उस संकट को गहरा कर देश के लिए अत्यधिक गम्भीर समस्या  खड़ी नहीं कर देते?क्योंकि ऐसा लगता है कि ये भारत राज्य के विरुद्ध एक अभियान छेड़े हैं।  कोरोना तो विश्वव्यापी है और इससे ये लोग स्वयं भी सुरक्षित नहीं हैं। फिर भी विरोध का ये हाल हैं। 

एक राजनैतिक विश्लेषक अब्दुल रज़्ज़ाक ने एक टीवी चैनल पर इंदौर की घटना के बचाव में  यहां तक कह दिया कि इंदौर की घटना NRC की गलतफहमी में हुई। तो यह भी बता देते कि यह गलतफहमी  किसने फैलायी ? और ऐसी गलतफहमी से क्या डॉक्टरों पर हमला उचित ठहराया जा सकता है? अब लगता है ऐसे ही कुतर्कों की बाढ़ आनी शेष रह गयी है। इतना कुछ करने के बाद ये लोग चाहते हैं कि इन्हें सही समझा जाय।जैसे कुछ भी अपराध करने के बाद इन्हें सही माना जाना इनका संविधान में प्रदत्त विशेष अधिकार हो। 

वास्तव में जिस तरह बातें लगातार जमातों की तकरीरों में कोरोना के संदर्भ में आ रही थी उससे क्या यह नहीं लगता कि तब्लीगों को, अपने अनुयायियों में अपने कट्टरपंथी प्रचार की, प्रासंगिकता को बनाये रखने के लिए, चीन और सारे पाश्चात्य जगत पर आये कोरोना संकट को काफिर मुल्कों पर आए संकट की तरह दिखाया गया। इस संदर्भ में  “डिवाइन एकॉउंटेंटेबिलिटी* का मिथ कुछ मौलानाओं द्वारा मुस्लिम समाज में प्रचारित किया गया है।जिसे कुछ पाकिस्तानी तथाकथित स्कॉलर पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर  दोहरा रहे हैं।वो अलग बात है कि वहाँ भी इमरान के लाडले, एक जमाती,तारीख जमील ने,लाहौर से 35 km दूर रायपिंडी के जलसे से कोरोना गिफ्ट सारे पाकिस्तान में फैला दिया है।लेकिन इस तरह कोरोना पर नियंत्रण करने के प्रयासों का, भारत में जगह जगह पर तब्लीगियों द्वारा विरोध अक्षम्य है। ये मर्यादाविहीन, हिंसक विरोध भारत में कोरोना न फैल पाने की कुंठा और  इनकी अमानवीय और संकीर्ण सोच को असली जामा पहनाने की विफलता की हताशा तो नहीं?

जो भी हो, यदि सरकार ऐसे राष्ट्रविरोधी कृत्यों को करने वालों पर, जो किसी तर्क के आधार पर किये जायें, सख्तायी से,रासुका लगाने पर विचार पर रही है तो यह स्वागत योग्य कदम है। यही समय है बताने का कि देश से बढ़कर कुछ नहीं और देश के हितों से खिलवाड़ करने वालों के साथ देश क्या करता है।

कृपया इस आलेख पर आपने विचार जरूर व्यक्त करें …..

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