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रूपा देवी: हिमालयी बुग्यालो की ‘मदर टेरेसा’!

- बुग्यालों को लेकर चिंतित
- 15 सालों से बुग्याल बचाओ मुहिम में शिद्दत से है जुटी
(हिमालय की आवाज- किस्त -1)
संजय चौहान की ख़ास रिपोर्ट

इस जात्रा में वेदनी बुग्याल मे एक शख्सियत से साक्षात्कार हुआ। ठेठ पहाड़ी लोकसंस्कृति को चरितार्थ करती हुई वेशभूषा, पहाड़ जैसा बुलंद हौंसला, चेहरे पर चमक और बुग्यालो को बचाने की जिद लिए कुलिंग गांव, देवाल ब्लाक की 65 वर्षीय रूपा देवी से मिलना हुआ। वैसे तो मैं उनके बारे में विगत कई बरसों से सुनता आ रहा था लेकिन मुलाकात उसी हिमालय के बुग्यालो में हुई जिसको बचाने की मुहिम वो विगत 15 बरसों से चला रही है। रूपा देवी न तो कोई पर्यावरणविद्ध है ना ही कोई वैज्ञानिक, ना कोई अफसर और ना ही कोई राजनेता। दुनिया की चमकधमक से कोसों दूर बस बुग्यालो को लेकर चिंतित। बुग्यालो को बचाने की उनकी अपनी परिभाषा है जो उन्होंने पहाड और अपने जीवन संघर्षों से सीखा। लोग उन्हें बुग्यालो की मदर टेरेसा कहकर बुलाते हैं क्योंकि जिस तरह मदर टेरेसा दीन दुखियों, मरीजों की निःस्वार्थ सेवा करती थी ठीक उसी तरह रूपा देवी भी बुग्यालो की निःस्वार्थ सेवा करती आ रही है। रूपा देवी हर साल नंदा देवी लोकजात यात्रा मे वेदनी बुग्याल में आयोजित रूपकुंड महोत्सव में लोगों को बुग्यालो और हिमालय को बचाने का संदेश देती है। यही नहीं वो इस दौरान वे अन्य महिलाओं के संग बुग्यालो में सैलानियों और घोड़े खच्चरो की आवाजाही से जो गड्डे हो जाते हैं उन्हें मिट्टी से भरती हैं और वेदनी बुग्याल की सुंदरता को संवारती है।
ये मेरे लिए एक सुखद संयोग ही था कि वेदनी में रूपा देवी से मुलाकात हुई। उनसे बुग्यालो को लेकर लंबी गुफ्तगु हुई तो उन्होंने बताया कि बुग्यालो में जगह जगह भू:क्षरण होने से हमारे बुग्याल धीरे धीरे सिकुडते जा रहे है। बुग्यालो का अत्यधिक दोहन हो रहा है। जिसकी वजह से बुग्यालो में मौजूद झील, कुंड, ताल सूखते जा रहें हैं। अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप और आवाजाही से बुग्यालो में पर्यावरण असंतुलन पैदा हो गया है। फलस्वरूप हर साल हिमालयी परिक्षेत्र में बर्फवारी कम होती जा रही है। बुग्यालो मे जगह जगह बेतरतीब कूडा कचरा फैलाया जा रहा है। बुग्यालों को शहर बनाया जा रहा है। यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले 10 सालों में ही हम वेदनी बुग्याल और आली बुग्याल सहित अन्य हिमालयी बुग्यालो को सदा के लिए खो देंगे। हमें बुग्यालो के संरक्षण की दिशा में ठोस पहल करनी होगी। इसके लिए सभी लोगों को आगे आना होगा।
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कहती हैं कि बेटा अब तुम ही बताओ जब ये बुग्याल ही नहीं रहेंगे तो हमें शुद्ध हवा कहां से मिलेगी और पानी कहां से पियेंगे। हरियाली नहीं होगी तो जीवन का अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा। सरकारों से लेकर आमजन को बुग्यालो के संरक्षण और संवर्धन की दिशा मे ठोस प्रयास करने होंगे। मेरा गाँव कुलिंग आज भूस्खलन के कारण नेस्तानाबूत हो गया है। ये सबकुछ हिमालय के साथ छेडखानी का नतीजा और प्रतिफल है।
वास्तव मे देखा जाय तो रूपा देवी का बुग्यालो के प्रति असीम प्यार व बदरंग होते बुग्यालो की पीडा महसूस करना उन्हें अन्य लोगों से दूसरी कतार में खड़ा करता है। मैंने 15 सालों की पत्रकारिता में हिमालय और बुग्यालो के लिए चिंतित रूपा देवी के अलावा कोई महिला आज तक नहीं देखी। उम्र के इस पड़ाव पर 3,354 मीटर की ऊचांई पर नंदा की वार्षिक लोकजात मे रूपा देवी का बुग्याल बचाओ मुहिम को करीब से देखना बेहद सुखद लगा। आवश्यकता है तो हमें रूपा देवी के व्यक्तित्व से सीख लेनी की। इस लेख के जरिए बुग्यालो की मदर टेरेसा रूपा देवी को उनके बुग्याल बचाओ मुहिम को एक छोटी सी भेंट ….यह लेख आपको कैसा लगा नीचे कमेंट बॉक्स में जाकर अवश्य टिप्पणी करें।