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उत्तराखंड लोक सेवा आयोग में चल रहा है गड़बड़झाला


देवभूमि मीडिया ब्यूरो
विज्ञप्ति में आयोग की शब्दावली को अच्छाखासा समझदार व्यक्ति नहीं समझ सकता तो ये नए नए प्रतिभागी क्या समझते। खैर, आयोग में बैठें लोगों से, उत्तराखण्ड के राजनेताओं के अनिर्णयता की स्थिति के चलते, युवाओं को ज्यादा सहानुभूति की अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए।इससे पहले आयोग ने इनमें से लगभग 1600 अभ्यर्थियों से कंप्यूटर सर्टिफिकेट के संबंध में प्रत्यावेदन मांगे थे। लेकिन इसमें रोचक तथ्य यह है कि मुख्य परीक्षा के लिए 2000 में से 1600 अभ्यर्थी ही आवेदन कर पाए थे। कुतूहल का विषय है कि 400 अभ्यर्थी जो कि कुल आवेदनों का 20% हैं , ने आवेदन ही नही किया। प्रारंभिक परीक्षा के बाद मुख्य परीक्षा में क्वालीफाई होने के बावजूद इतने अभ्यर्थियों द्वारा APS जैसे 4800 ग्रेड पे वाले, आकर्षक पद के लिए आवेदन न करने का तथ्य भी कम आकर्षक नहीं है। वैसे भी आयोग का आवेदन करने में विलंब होने या अन्य कारणों से दिक्कत झेल रहे अभ्यर्थियों के प्रति आयोग कीअसहयोग की भावना नई नहीं है। 2017 में भी आयोग की मुख्य परीक्षा के लिए क्वालीफाई अभ्यर्थियों में से अनेकों अभ्यर्थियों द्वारा आवेदन भरने के अंतिम दिनों में सर्वर डाउन रहने या आयोग के ही अन्य पदों के आवेदन भरने के कारण नेटवर्क के अत्यधिक व्यस्त रहने के चलते, आवेदन पत्र न भरे जाने के तुरन्त बाद , आयोग से गुहार लगाए जाने के बाद भी, आयोग का प्रतिभाओं के साथ निष्ठुर व्यवहार सामने आया था। उस समय भी लगभग रिकॉर्ड 800 से अधिक अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा में बैठने से वंचित किया गया था। अभ्यर्थी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक गए लेकिन ढंग से पैरवीं होने के चलते न्यायालय ने भी आयोग से मशवरा करके मामला सुलझाने की सलाह देकर वापिस भेज दिया।इसमें ट्वीस्ट यह भी था कि मुख्य परीक्षा के आवेदनों के भरने में हाई कोर्ट के रोक लगाए जाने के कारण आयोग ने कुछ विवादित प्रकरणों के अभ्यर्थियो को लगभग 6-7 महीने बाद पुनः आवेदन भरने का अवसर दिया लेकिन जो अभ्यर्थी, केवल नेटवर्क के अंतिम समय में व्यस्त रहने के कारण छूट गए थे, उन्हें अवसर नहीं दिया गया। जबकि उन्हें आयोग के स्रोतों से आश्वासन दिया जा रहा था कि जब आयोग 6-7 महीने बाद कुछ विवादित प्रकरण के अभ्यर्थियों को अवसर देगा तो नेटवर्क व्यस्त रहने के कारण छूटे हुए अभ्यर्थियों को भी क्यो नहीं देगा? लेकिन जो लोग छूट गए थे जाहिर है वे लोग रिमोट इलाकों में स्वतंत्र रूप से अध्धयन कर रहे थे या तो वे दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले अभ्यर्थी रहे होंगे या कहीं सेवारत रह कर भी आयोग की परीक्षाओं की तैयारी करने वाले कर्मचारी। संभवतः कुछ कोचिंग इंस्टिट्यूटस के तालमेल से कुछ कोचिंग इंस्टिट्यूटस की मुख्यधारा से बाहर के अभ्यर्थी इसी बहाने बाहर कर दिए गये हों। देहरादून में कुछ कोचिंग इंस्टीट्यूट्स का रोल लोग दबी जुबान से स्वीकार करते रहें हैं।Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur.