उत्तराखण्ड का बहुमूल्य उत्पाद : थुनेर

उत्तराखण्ड प्रदेश उच्च हिमालयी क्षेत्र में होने के कारण अनेकों विशेषताएं रखता है। उत्तराखण्ड में लगभग 700 से अधिक औषधीय प्रजातियां पायी जाती है तथा हमारे पूर्वज वैदिक काल से ही इन्हें विभिन्न औषधीय रूपों में उपयोग करते आ रहे है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब एंटी बायोटिक के क्षेत्र में एक बहुत बडी खोज के रूप में पेनिसिलीन नामक दवा बनाई गयी जिसने उस समय की सबसे बडी समस्या इन्फेक्ट्स बिमारियों से दुनिया को निजात तो दी मगर उसी के बाद से ही कैंसर जैसी बिमारियां बडी समस्या के रूप में उभर कर आने लगी। कैंसर के इलाज के लिए दुनिया के पास कीमोथेरेपी के अलावा और अन्य कोई विकल्प नहीं था फिर दुनिया के बडे-बडे कैंसर रिसर्च संस्थानों द्वारा शोध कर पहला प्राकृतिक कैंसर प्रभावी वृक्ष थुनेर खोजा गया।
Taxaceae कुल का यह पौधा Taxus जीनस के अन्तर्गत आता है जिसकी विश्वभर में कुछ प्रजातियां Taxus baccata (European yew), Taxus brevifolia (Pacific yew), Taxus cuspidate (Japanese yew) तथा Taxus walllichiani (Himalayan. yew) आदि प्रमुख हैं। उत्तराखण्ड में पायी जाने वाली हिमालयी प्रजाति Taxus walllichiani को ही विभिन्न जगह Taxus baccuta कहा जाता है क्योंकि यह Taxus baccuta की ही उप प्रजाति है। समुद्र तल से 3300 मीटर तक की ऊँचाई पर पायी जाने वाला यह वृक्ष उत्तरी अमेरिका, यूरोप, उत्तरी अफ्रिका तथा एशिया में पाया जाता है। इसके अलावा भारत में यह उत्तराखण्ड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर, अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, मणिपुर तथा तमिलनाडू आदि में पाया जाता है।
थुनेर की लकडी को सामान्यतः हथियार बनाने, विभिन्न उपकरणों के हत्थे बनाने तथा विभिन्न फर्नीचर बनाने में प्रयुक्त किया जाता है। इसके अलावा इसकी पत्तियों को विभिन्न मानसिक रोगों के उपचार हेतु प्रयोग किया जाता है तथा यूनानी पद्धति की दवा “Zarnab” में भी इसका प्रयोग किया जाता है। थुनेर में वोलोटाइल ऑयल, टेनिक एसिड, गेलिक एसिड तथा टेक्सिन पाये जाते है अनेकों एल्केलाइडस का मिश्रण टेक्सिन इसके जहरीला होने की वजह भी है लेकिन हिमालयन प्रजाति से अभी तक कोई भी जहरीले प्रभाव की पुष्टि नहीं है।
थुनेर के एक्सट्रेट का कैंसर में प्रभावी की पुष्टि के बाद इसमें एक नये तरह का एंटी कैंसर रसायन की सम्भावना मिली जिसको बाद में सर्वप्रथम वर्ष 1964 में Taxol (Paclitaxel) के रूप में Pacific yew से निकाला गया और इसे स्तन, वृक्क तथा योनि कैंसर हेतु प्रयोग किया जाने लगा। वर्ष 1992 के अंत में FDA (Food and Drug Administration) द्वारा Taxol को योनि कैंसर के लिए तथा वर्ष 1994 में स्तन कैंसर के लिए भी अनुमोदित किया गया।
राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में कैंसर के लिए Taxol की मांग लगातार बढने लगी। वर्ष 2000 में इस दवा ने 1.6 बिलियन डॉलर का व्यवसाय किया तथा वर्ष 2009 में इसे विकसित कर एक नई कैंसर दवा Abraxanerase (nanoparticle-albumin-found paclitaxel) बनाई गई जिसने उसी वर्ष में 275 मिलियन डॉलर तक का व्यवसाय किया।
थुनेर की विशेषताओं और महत्ता को देखते हुए विभिन्न कम्पनियों द्वारा उत्तराखण्ड राज्य से इसके कच्चे माल की वृहद मांग की गयी तथा कई स्थानों में मल्टीनेशनल उद्योगों द्वारा स्वयं इसका उत्पादन किया गया। उत्तराखण्ड राज्य से इसके कच्चे माल की पूर्ति कराई जाती है जहां इसे रू0 250 से रू0 350 प्रति किलो तक की कीमत पर बेचा जाता है। प्राकृतिक रूप से मिलने वाली इस कैंसर दवा को बनाने में लग रहे थूनेर की खपत को देखते हुए इसके प्राकृतिक दोहन पर अनेकों आवाजें उठने लगी जिसके पश्चात Sanoji-Avertis नाम की दवा कंपनी द्वारा इसे docetaxel (semisynthetic analog of taxol) के रूप में तैयार किया गया जिसें taxotere नाम से बाजार में उपलब्ध कराया गया। वर्तमान समय में भी इसके अन्य कई Derivatives बनाये जाने हेतु शोध कार्य जारी है।
प्रदेश में थुनेर के बहुतायत उत्पादन तथा इसकी विशिष्ट विशेषताओं को देखते हुए इस क्षेत्र में नवीनतम शोध कार्यों की आवश्यकता है।
डॉ. राजेन्द्र डोभाल
महानिदेशक
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद
उत्तराखण्ड।