भागीरथी इको सेंसिटिव जोन के मुद्दे पर राजनीति गहराई
पांच जनवरी को सीएम पार्टी नेताओं के साथ जंतर-मंतर में धरने में होंगे शामिल
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून । सरकारें बदलती गई हैं, लेकिन उत्तराखंड के भागीरथी इको सेंसिटिव जोन की समस्या अब भी लाइलाज है। इस मुद्दे पर लगातार राजनीति के अलावा कुछ नहीं हो रहा है। हालांकि उत्तराखंड के मुखिया हरीश रावत केन्द्र सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं और वह पांच जनवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देने की घोषणा कर चुके हैं। उनका कदम-कदम पर विरोध करने वाले और आइना दिखाने वाले पीसीसी प्रमुख किशोर उपाध्याय आलाकमान की पफटकार के बाद अब उनके समर्थन में दिखाई दे सकते हैं।
इसी संदर्भ में उन्होंने पत्रकार वार्ता कर यह घोषणा की है कि पांच जनवरी को सीएम के साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं समेत उपस्थित रहेंगे। वैसे तो उत्तरकाशी की 48 ग्राम सभाओं ने कांग्रेस के सौतेलेपन के कारण तथा भाजपा से नाराजगी दिखाने के लिए देवता के आदेश पर अपना प्रत्याशी उतारने का निर्णय लिया है। ऐसे में मुख्यमंत्री के लिए भागीरथी ईको सेंसटिव जोन रामबाण के रूप में नजर आ रहा है। जनता में किरकिरी होती देख तथा राजनीतिक कार्यक्रम की चर्चाओं के बीच मुख्यमंत्री ने अपनी ओर से यह स्पष्टीकरण दिया है कि इको सेंसिटिव जोन का विरोध चुनावी कारणों की वजह से नहीं है।
उन्होंने इसे केंद्र की ओर से विकास विरोधी कदम बताते हुए इस पर अपनी आवाज बुलंद करने का निर्णय लिया है तथा कहा है कि इस समय अपनी आवाज नहीं उठाएंगे तो कब उठाएंगे। हरीश रावत इस मामले पर अपने को उत्तराखंड का प्रबल हितैषी साबित करना चाहते हैं। यही कारण है कि उन्होंने बयानों में राज्यहित की इस लड़ाई में विपक्ष को भी साथ जुड़ने का आग्रह किया है। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है विकास और भ्रष्टाचार पर अपनी किरकिरी कराने के बाद पहले संगठन प्रमुख किशोर उपाध्याय ने इको सेंसिटिव जोन का मुद्दा उठाया और अब मुख्यमंत्री इको सेंसिटिव जोन के मामले में केंद्र पर राज्य से सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया है और अब पांच जनवरी को सीएम व पार्टी नेताओं के साथ जंतर-मंतर में धरने में शामिल होंगे।
किशोर उपाध्याय के अनुसार उत्तराखंड 60 करोड़ लोगों को जीवन देने का काम करता है, लेकिन बदले में केंद्र सरकार राज्य की कोई सुनवाई नहीं कर रहा। उन्होंने केंद्र सरकार से राज्य को रसोई गैस में 50 पफीसदी की सब्सिडी देने, ग्रीन बोनस जारी करने, वृक्ष की खेती से जुड़े किसानों को 2000 रुपये सालाना बोनस देने, जलाशयों पर राज्य को अधिकार देने की मांग की। उत्तराखंड की वर्तमान कांग्रेस सरकार ने ही उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के जो 10000 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं को ईको सेंसिटिव जोन के माध्यम से अंधी गली में डाल दिया था, लेकिन अब वही लोग इसकी समीक्षा करने की बात कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 4180 वर्ग किमी क्षेत्र में पफैले और 100 किलोमीटर की लंबाई का विरोध किया है द्य इस संबंध में अंतिम अधिसूचना दिसम्बर 2012 में जारी किया गया था जिसके बाद से भागीरथी घाटी में लगाई गई इस परियोजना का विरोध किया जा रहा है। इसका कारण राज्य में पर्यटन गतिविधियों और पनबिजली परियोजनाओं सहित विकास परियोजनाओं को प्रभावित करना बताया जा रहा है, लेकिन केन्द्र द्वारा जिस समय इसके बारे में प्रस्ताव मांगे गए थे, उस समय सरकार मौन थी।
इस संदर्भ में भाजपा के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रकाश पंत का कहना है कि आज जो लोग धरने पर बैठने की बात कर रहे हैं, वे आज सुझाव मांगे जाते समय कहा थे। यह परियोजना किसके कार्यकाल में बनी और इसकी जिम्मेदारी किसकी है इस पर क्यों चर्चा नहीं करते। उन्होंने कहा कि सीएम और सरकार इस मुद्दे पर मौन थे अब धरने का नाटक क्यों? इसके पीछे सिपर्फ चुनावी राजनीति है। ईको सेंसिटिव जोन की कार्रवाई कब प्रारंभ हुई, प्रदेश सरकार ने उस पर क्या-क्या कार्रवाई की, मुख्यमंत्री हरीश रावत को उसकी भी जानकारी जनता को देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सच है कि ईको सेंसिटिव जोन महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा इस संदर्भ में निर्देश दिए जाने पर इन्होंने अपना मुंह क्यों नहीं खोला।