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बहुगुणा ने सत्ता तो हासिल की लेकिन नहीं जीत पाए विश्वास

भाजपा का एक अच्छा फैसला : अवसरवादिता और दल बदल को सबक
विजय बहुगुणा को भाजपा का जोर का झटका
फ्रंट फुट पर खेलने लगे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत

गुणानंद जखमोला
भारत की राजनीति में दल-बदल के दलदल में धंसे नेताओं को पूर्व सीएम विजय बहुगुणा की स्थिति से सबक लेना चाहिए। सिंहासन का दुरुपयोग और बदले की आग से दल परिवर्तन से भले ही कोई नेता सत्ता में शामिल हो जाए, लेकिन जरूरी नहीं कि वो सत्ताधारी दल का विश्वास भी जीते। उत्तराखंड भाजपा ने विजय बहुगुणा को राज्यसभा का टिकट न देकर साफ संदेश दे दिया है कि दल-बदल और अवसरवादिता को भाजपा की बड़ी ना है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अब खुलकर खेल खेल रहे हैं। उन्होंने पहले तो कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत को विवादित श्रम कल्याण बोर्ड से हटाकर साहसिक फैसला लिया तो अब विजय बहुगुणा को टिकट न देकर यह संदेश दे दिया है कि दल-बदल वालों को भाजपा में अधिक तवज्जो नहीं दी जाती है। सत्ता के लिए भाजपा ने जुगाड़बाजी कर भले ही इन नेताओं को पार्टी में जगह और टिकट दे दिया लेकिन विश्वास नहीं दिया।
पार्टी सूत्रों के अनुसार सुबोध उनियाल को छोड़कर कोई भी कांग्रेसी रंग से भगवा रंग में रंगे नेताओं को हाईकमान जरा भी तवज्जो नहीं देती है। न ही उन पर विश्वास है। पार्टी को आज भी लगता है कि सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, विजय बहुगुणा समेत कई नेता दल-बदल कर सकते हैं। यही कारण है कि कद्दावर नेता विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज को पार्टी कार्यक्रमों में अधिक महत्व नहीं मिला। इस कारण ये नेता भाजपा में रह-कर घुटन महसूस कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक आरएसएस का एक गुट लगातार इन नेताओं की गतिविधियों पर नजर रख रहा है। पार्टी को आशंका है कि इनमें से अधिकांश नेता दल-बदल कर सकते हैं, लेकिन मोदी भय के कारण चुप्पी साधे हुए हैं।
सूत्रों के मुताबिक विजय बहुगुणा राज्यसभा के लिए सीरियस कंडीकेट थे ही नहीं, उनका नाम औपचारिकतावश भेजा गया था। नरेश बंसल पार्टी की पहली पसंद थे और उनका नाम पहले ही तय था। मीडिया में पहले से ही बसंल के नाम पर ठप्पा लग गया था, इसलिए किसी को भी बहुगुणा को टिकट न मिलने पर आश्चर्य नहंी हुआ। त्रिवेंद्र रावत के इस फैसले की सराहना होनी चाहिए।

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