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एडजस्ट और डाइजेस्ट की गणित में फेल हुए बहु-गुणा

कांग्रेस से बगावत के सूत्रधार रहे बहु-गुणा का फेल हुआ गुणा – भाग

राजेन्द्र जोशी 
देहरादून : सोशल मीडिया में बीते दो दिन से एक जुमला चल रहा है वह यही है एडजस्ट और डाइजेस्ट का। कहा जा रहा है कि भाजपा में अन्य दलों से विद्रोह कर पहुंचे नेताओं को भारतीय जनता पार्टी एडजस्ट तो कर सकती है लेकिन डाइजेस्ट नहीं कर पाती। जहाँ तक बहु -गुणा की बात है वे न तो भाजपा में एडजस्ट ही हो पाए और न भाजपा उनको डाइजेस्ट ही कर पायी। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि भाजपा की रीति -नीति समझने में बाहरी दलों से आए नेताओं को समय लगता है क्योंकि वे उतने मंझे हुए नहीं होते हैं या उन्हें आरएसएस की वो शिक्षा -दीक्षा नहीं मिली होती है जितनी कि भाजपा के एक बाल स्वयं सेवक से भाजपा कार्यकर्ता बना एक स्वयं सेवक तराशा हुआ होता है।
भाजपा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता का कहना है भाजपा का मातृ संगठन आरएसएस कार्यकर्ता के भीतर वह संस्कार तमाम प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दौरान भरता है जिससे वह केवल राष्ट्र के बारे में ही सोचता है न कि तिकड़म बाजी से कैसे सत्ता को हथियाया जाए उस शिक्षा के। यही कारण है कि भाजपा कार्यकर्ता के मन और मस्तिष्क में केवल राष्ट्रभावना और सेवा करने का जूनून होता है। 
अब राजनीती की बात करें तो बहु-गुणा जिस तरह से कांग्रेस को छोड़ एक कुनबे के साथ भाजपा में आए थे वह दृश्य सभी ने देखा था। सत्ता और कुर्सी के संघर्ष के चलते बहु-गुणा ने हरीश रावत को धोखा दिया और सत्ता पाने के चक्कर में भाजपा की सदस्यता तक ग्रहण की , हालाँकि राजनीतिक दांव- पेंच की मजबूरी के चलते भाजपा ने भी कांग्रेस से निकले इन लोगों को पार्टी में शरण दी लेकिन आज भी चार साल बाद ये भाजपा को ठीक से अंगीकार नहीं कर पाए हैं। क्योंकि इनके संस्कारों में आज भी कांग्रेस कहीं न कहीं विद्यमान है। यही कारण है कि बहु-गुणा का गणित भाजपा में आकर गड़बड़ा गया और उन्हें मनचाहा वो सब कुछ यहाँ नहीं मिल पाया जिसकी तलाश में वे भाजपा में आए थे। 
कमोवेश यही हाल भाजपा में उस दौरान के आये नेताओं का भी है जो गाहे बगाहे अपनी ही सरकार के सामने परेशानी खड़ा करते रहे हैं।  बात चाहे डॉ. हरक सिंह रावत की हो या सतपाल महाराज की हो या रेखा आर्य सहित यशपाल आर्य या सुबोध उनियाल की और विधायक उमेश शर्मा काऊ या चैम्पियन की ये लोग कहीं न कहीं कई बार अपनी ही सरकार की फजीहत अपने बयानों और कृत्यों से करवाते रहे हैं। ऐसे में कई बार सरकार को असहज तक होना पड़ा है। 

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