हज़ारों श्रद्धालुओं के दर्शनों के साथ कपाट खुले बदरीनाथ के कपाट

- चारों पवित्र धामों के कपाटों के खुलने की प्रक्रिया हुई समाप्त
- बदरीनाथ धाम को पृथ्वी पर भू-बैकुंठ भी कहा जाता है
श्री बद्रीनाथ धाम : विश्व प्रसिद्ध बदरीनाथ धाम के कपाट सोमवार प्रातः साढ़े चार बजे श्रद्धालुओं के लिए खुल गए हैं। इसके बाद अब उत्तराखंड के चारों पवित्र धामों के कपाटों के खुलने की प्रक्रिया समाप्त हो गयी है। उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम को पृथ्वी पर भू-बैकुंठ भी कहा जाता है। आज तड़के सवा तीन बजे से मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना के साथ कपाट खोलने की प्रक्रिया शुरू हुई। ठीक साढ़े चार बजे ब्रह्म मुहुर्त में भगवान बदरीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए ।
उल्लेखनीय है कि बीते दिन रविवार को ही भगवान बदरीनाथ विशाल की डोली बाल सखा उद्धव जी और खजांची कुबेर जी की डोलियों के साथ बदरीनाथ धाम पहुंच गई थी। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भगवान की डोलियों के दर्शन किए। डोली यात्रा बामणी गांव में लीला ढुङ्ग से होते हुए बदरीनाथ मंदिर पहुंची। भगवान कुबेर ने रविवार को बामणी गांव में नंदा देवी मंदिर में विश्राम किया था। जबकि उद्धवजी की डोली ने रावल के निवास में विश्राम किया था।
आज तड़के भगवान कुबेर और उद्धव जी मंदिर में प्रवेश किया । बदरीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी भुवन चंद उनियाल ने बताया कि सोमवार को ब्रह्म मुहुर्त में कपाट खुलने के साथ ही अगले छह माह तक भगवान की पूजा का अधिकार मनुष्यों को प्राप्त हो जाएगा। उन्होंने बताया कि रावल ईश्वर प्रसाद नम्बूरी की उपस्थिति में टिहरी नरेश के राजपुरोहित और बामणी गांव के प्रतिनिधि मंदिर का ताला खोला। जिसके बाद रावल और धर्माधिकारी ने मंदिर में प्रवेश कर भगवान बदरीविशाल के घृत कंबल का अनावरण किया। इसके बाद बद्रीश पंचायत की विशेष पूजा-अर्चना की गयी।
- कपाट खुलते ही लौट रही माणा गांव की रौनक
वहीँ बीते दो दिनों से बदरीनाथ धाम में कपाट खुलने की तैयारियां लगभग पूरी हो गयी हैं। बदरीनाथ के मंदिर को 15 कुंतल गेंदे और अन्य फूलों से मंदिर सजाया गया है । वहीँ मंदिर के आसपास का इलाका भी भव्य तरीके से सजाया संवारा गया है।
वहीँ बदरीनाथ धाम से चार किलोमीटर बसुधारा और भीमपुल के नजदीक बसे पौराणिक और सीमांत गांव माणा में भी रौनक लौट रही है । कपाट बंद होने के दौरान यहाँ के निवासी अपने शीत कालीन प्रवास स्थलों को तरफ लौट जाते हैं जो मंदिर के कपाट खुलते ही ग्रीष्मकाल के लिए एक बार फिर अपने गांव माणा आ जाते हैं। मान्यता है कि यहां वेदों और पुराणों की रचना हुई थी।
पुराणों के अनुसार माणा का शास्त्रीय नाम मणिभद्रपुर है। माणा गांव में भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं। बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलने के समय ये अपने पुश्तैनी गांव माणा आ जाते हैं। अब छह माह तक इस गांव में खासी चहल-पहल रहेगी। गांव में कुछ यहां एक-दो हफ्ते पहले भी पहुंच गए थे। घरों को सजाया संवारा गया है। ग्रामीण अपने चौके चूल्हे से लेकर घर की छतों को ठीक कर रहे हैं। माणा के निवासी बेहद मेहनती हैं।
नई पीढ़ी में अधिकतर लोग सरकारी सेवाओं पर हैं। परिवार के बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे अपने गांव से आज भी रिश्ता बनाए हुए हैं। अब छह माह बाद अपने गांव लौटे लोग ऊनी वस्त्र बनाएंगे। यहां लकड़ी की रांच पर कालीन, दन, शॉल, पंखी, हाथ से स्वेटर, टोपी आदि तैयार किए जाते हैं। बदरीनाथ आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक यहां पहुंचकर ये ऊनी वस्त्र खरीदते हैं।