- राज्य में निवेश प्रस्तावों के क्रियान्वयन की निगरानी के लिये बने कार्यबल : एसोचैम
- उत्तराखंडः आर्थिक वृद्धि और निवेश निष्पादन विश्लेषण” विषय पर रिपोर्ट जारी …..
- एसोचैम ने उत्तराखंड सरकार से किया आग्रह
- राज्य से पलायन रोकने, निवेश आकर्षित करने के लिये लोगों का कौशल विकास जरूरी
देहरादून : देश के शीर्ष वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम ने उत्तराखंड में जारी निवेश परियोजनाओं के समय पर और प्रभावी क्रियान्वयन के लिये राज्य सरकार से तुरंत एक विशेष निवेश निगरानी कार्यबल गठित करने का आग्रह किया है। वित वर्ष 2016-17 की स्थिति के अनुसार राज्य में दो लाख करोड़ रूपये के निवेश प्रस्ताव आकर्षित किये गये हैं। इनमें करीब 30,000 प्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होने का अनुमान है।
एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने शनिवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मुख्यमंत्री को परियोजनाओं के क्रियान्वयन की देखरेख करने के लिये वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों की तुरंत एक समिति गठित करनी चाहिये। यह समिति परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी करने के साथ ही पर्यावरण, भूमि अधिग्रहण और दूसरे संबंधित मुददों पर भी गौर करेगी ताकि सभी संबद्ध पक्षों के हितों में संतुलन साधा जा सके।
श्री रावत ने इस अवसर पर एसोचैम की हाल में तैयार की गई अध्ययन रिपोर्ट ‘‘उत्तराखंडः आर्थिक वृद्धि और निवेश निष्पादन विश्लेषण‘‘ को जारी करते हुये कहा, ्‘‘राज्य में निवेश इच्छा को अमली जामा पहनाये जाने को ही ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिये चाहे आधे प्रस्तावों को ही क्यों न अमल में लाया जाये। यदि आधे प्रस्ताव भी क्रियान्वित होते हैं तब भी राज्य में अगले पांच साल के दौरान रोजगार के हजारों अवसर पैदा होंगे।‘‘
उन्होंने कहा, उत्तराखंड सरकार को राज्य के लोगों के कौशल विकास पर ज्यादा ध्यान देना चाहिये ताकि उन्हें रोजगार के योग्य बनाया जा सके। इससे राज्य की पलायन जैसी चुनौतियों से निपटने में भी मदद मिलेगी। राज्य के लोग विभिन्न कार्यां में कुशल होंगे तो इससे निवेशक भी ज्यादा आकर्षित होंगे। उन्हें दिखेगा कि राज्य में काफी संख्या में कुशल कार्यबल उपलब्ध है।
श्री रावत ने आगे कहा कि राज्य के भविष्य की सफलता उसके पास उपलब्ध विपुल प्राकृतिक संसाधनों को इस्तेमाल में लाने में निहित है। हालांकि इसके साथ ही उन्होंने सतर्क भी किया कि आने वाले समय में राज्य को भूमि उपलब्धता की कमी, मानव-जानवरों के बीच बढ़ता द्वंद, भौतिक संपर्क तथा अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
एसोचैम आर्थिक शोध ब्यूरो के अनुसार राज्य में वर्ष 2012 से लेकर 2017 तक जो निवेश आकर्षित किया गया उसमें सालाना आधार पर 14.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कि इस दौरान रहे राष्ट्रीय औसत के तीन गुणा के करीब है। इस दौरान राष्ट्रीय वार्षिक व्द्धि औसत 4.8 प्रतिशत रहा।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में 2016-17 तक जो भी निवेश आकर्षित हुआ है उसमें गैर-वित्तीय सेवाओं का हिस्सा आधे से ज्यादा रहा है। अकेले बिजली क्षेत्र का ही इसमें 46 प्रतिशत से अधिक हिस्सा रहा है।
उत्तराखंड में वित वर्ष 2016-17 की स्थिति के अनुसार एक लाख करोड़ रूपये से अधिक की 151 परियोजनायें क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। ‘‘परियोजनाओं के समय पर क्रियान्वयन में कमी की दर वित वर्ष 2013-14 के बाद काफी तेजी से घटी और 2015-16 में यह घटकर 32 प्रतिशत रह गई जो कि सकारात्मक संकेत है लेकिन 2016-17 में इसमें काम में ढीलापन फिर दिखने लगा है और यह समय पर काम नहीं होने की दर बढ़कर 58 प्रतिशत से उपर निकल गई है। संभवतः यह स्थिति चुनावी वर्ष होने की वजह से हुई।‘‘
पूरे देश की स्थिति की यदि बात की जाये तो परियोजनाओं में क्षमता से कम रफ‘तार से काम होने की दर वित वर्ष 2011-12 से ही 54 प्रतिशत पर स्थिर बनी हुई है। यदि क्षेत्रवार की बात की जाये तो गैर-वित्तीय सेवाओं का परियोजनाओं की धीमी स्थिति में योगदान 72 प्रतिशत से अधिक है। इसके बाद बिजली परियोजनाओं का इसमें 26 प्रतिशत हिस्सा रहा है।
श्री रावत के मुताबिक ‘‘परियोजनाओं के क्रियान्वयन की धीमी दर से तात्पर्य यह है कि ज्यादातर परियोजनायें यानी निवेश अभी प्रक्रिया के तहत है और उसका पूरा होना बाकी है। इस प्रकार परियोजनाओं के क्रियान्वयन की धीमी रफ‘तार से निवेश का वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता है। क्योंकि परियोजनाओं का फायदा उनके पूरा होने पर ही मिल पाता है।‘‘
उन्होंने कहा, ‘‘देशभर में ऐसी परियोजनायें जो कि क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं, नीतिनिर्माताओं के लिये बड़ी चिंता बने हुये हैं। केन्द्र और राज्यों के स्तर पर सरकारें इस तरह की परियोजनाओं में कमी लाने के लिये कई तरह की पहलें कर रहीं हैं। केन्द्र और राज्यों की सरकारें मूल्य और संख्या के हिसाब में ऐसी अधूरी परियोजनाओं में कमी लाना चाहतीं हैं।
उत्तराखंड का आर्थिक परिदृश्यः उत्तराखंड के अब तक के आर्थिक प्रदर्शन की यदि बात की जाये तो इसकी अर्थव्यवस्था ने वित वर्ष 2012 से लेकर वित वर्ष 2017 की अवधि में हर साल 7.1 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि हासिल की है। इस प्रकार इस दौरान यह राष्ट्रीय आर्थिक वृद्धि 6.9 प्रतिशत से आगे रहा है।
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य के 51 प्रतिशत से अधिक कार्यबल की जीविका का आधार हालाकि कृषि और इससे संबंध क्षेत्र ही रहा है लकिन वर्ष 2011-12 से लेकर 2016-17 की अवधि में इस क्षेत्र का राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान 12.3 प्रतिशत से घटकर 8.9 प्रतिशत पर आ गया। राज्य में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर में पिछले पांच साल के दौरान बहुत ज्यादा फर्क नहीं आया और यह करीब दो प्रतिशत के आसपास बनी रही।
इस स्थिति को देखते हुये एसोचैम समय समय पर राज्य सरकार को यह सुझाव देता रहा है कि उसे राज्य के लिये विशिष्ट पहाड़ी कृषि नीति तैयार करनी चाहिये। उत्तराखंड में भूमि धारिता का स्तर कम है इसके साथ ही यहां उत्पादकता भी कम है। राज्य का कृषि क्षेत्र इन दो चुनौतियों से जूझ रहा है। इसलिये राज्य में सिंचाई सुविधाओं का विकास होना चाहिये। इसके साथ ही राज्य में परंपरागत और स्थानीय पहाड़ी फसलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। किसानों को ऐसी खेती के दौरान कल्याण योजनाओं के तौर पर उचित सुरक्षा कवच भी उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
इन सब बातों के अलावा राज्य में किसानों को जल संरक्षण के लिये पर्याप्त तकनीकी और वित्तीय समर्थन दिया जाना चाहिये। उच्च कृषि उत्पादकता, भूमि में अच्छी उत्पादकता के लिये पोषक तत्व तथा जल संरक्षण क्षमता बढ़ाने पर गौर किया जाना चाहिये। यहां रसायन का न्यायोचित इस्तेमाल ही होना चाहिये। मृदा कार्बन स्टोरेज को भी बढ़ाया जाना चाहिये।
उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में हालांकि औद्योगिक क्षेत्र के योगदान में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया और यह वित वर्ष 2011-12 से लेकर 2016-17 की अवधि में 52 प्रतिशत पर ही बना रहा फिर भी औद्योगिक वृद्धि के मामले में राज्य ने सालाना 7.3 प्रतिशत की व्द्धि हासिल की है जो कि अखिल भारतीय औद्योगिक वृद्धि दर 5.9 प्रतिशत से अधिक रही है।
एसोचैम दस्तावेज में कहा गया है कि राज्य में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को मजबूत बनाने, क्षेत्र विशेष से जुड़ी सुविधाओं जैसे कि भंडारगृहों, कोल्ड स्टारेज और अन्य सुविधाओं का विकास करने से जल्दी खराब होने वाली कृषि उपज को बचाया जा सकेगा और इससे उत्तराखंड का औद्योगिक परिवेश और मजबूत होगा।
उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का योग्रदान इन पांच सालों में उल्लेखनीय रूप से सुधरा है। वर्ष 2011-12 में यह 33.9 प्रतिशत से बढ़कर 2016-17 में 36.5 प्रतिशत पर पहुंच गया। इसमें साल-दर-साल 8.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कि राष्ट्रीय औसत के ही बराबर रहा।
उत्तराखंड के अध्ययन दस्तावेज में राज्य में सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन को उत्साहजनक बताते हुये नीति निर्माताओं को सुझाव दिया गया है कि उन्हें इस क्षेत्र के विस्तार पर ध्यान देना चाहिये। चाहे वह पर्यटन का क्षेत्र हो या फिर सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र दोनों ही क्षेत्रों में राज्य में अतिरिक्त आर्थिक गतिविधियों पैदा करने की काफी क्षमता है। इसके साथ ही रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।