Uttarakhand

सेना ने बाड़ाहोती में चीनी घुसपैठ के बाद शुरू किया बंकरों का निर्माण

एक सप्ताह  बाद भी बाडाहोती प्रकरण की राज्यसरकार को नहीं हवा

देहरादून : बाड़ाहोती में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद भारतीय सेना ने बंकरों का निर्माण शुरू कर दिया है। सीमा पर हाई अलर्ट है और सुरक्षा के लिए सभी इंतजाम भी किए जा रहे हैं। सेना के बंगाल इंजीनियरिंग ग्रुप (बीईजी)  पुराने बंकरों की मरम्मत करने के साथ ही नए बंकरों का निर्माण कर रहा है। आइटीबीपी के कमांडेंट केदार सिंह रावत ने बताया कि सीमा पर हाई अलर्ट है और सुरक्षा के लिए सभी इंतजाम किए जा रहे हैं। सीमा पर किसी भी स्थिति से निपटने के लिए सीमाओं पर तैयारी की जा रही है।

उत्तराखंड में 345 किलामीटर लंबी सीमा चीन से लगती है। समुद्रतल से 3800 से लेकर 4600 मीटर की ऊंचाई पर पडऩे वाले इस क्षेत्र में जवान चौबीसों घंटे निगहबानी कर रहे हैं। 1962 से पहले इस इलाके में दो गांव जादूंग व नेलांग थे। युद्ध के बाद इन गांवों को विस्थापित कर दिया गया। उस समय सेना ने हर्षिल कारछा, नेलांग के साथ ही कुछ अन्य स्थानों पर बंकर बनाए थे। अब एक बार फिर परिस्थितियां बदली हुई लग रही हैं। सूत्रों के अनुसार पुराने बंकरों की मरम्मत के साथ ही नेलांग घाटी में नए बंकर बनाए जा रहे हैं। गौरतलब है कि चमोली के बाड़ाहोती क्षेत्र में जुलाई में ही चीनी सैनिकों के दो बार घुसपैठ की सूचनाएं हैं।

गौरतलब हो कि सीमांत और सुरक्षा की रणनीति की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील तथा महत्वपूर्ण चमोली जनपद के बाडाहोती में पिछले महीने चीनी सैनिकों के आ धमकने और भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के प्रतिरोध पर वापस चले जाने की खबर दिल्ली से सबको लगी जबकि राज्य सरकार को आज भी एक सप्ताह बाद इस बारे में कोई ठोस सूचना नही है।

हाल यह है कि चमोली जनपद के जोशीमठ विकासखंड के परगनाधिकारी योगेंद्र सिंह के अनुसार सीमा पर तैनात एजेंसियां अभी भी उन्हे कुछ बताने को तैयार नही है।जबकि बाडाहोती उन्ही के क्षेत्राधिकार में है । उन्हे भी हैरानी है कि भातिसीपु  से लगातार संपर्क में रहने पर भी उन्हे इस बारे में सूचना कैसे नही मिल पाई जबकि कि जानबूझ कर उन्हे अंधेरे में रखा गया है । परगनाधिकारी ने जिलाधिकारी के निर्देश पर भातिसीपु अफसरों से इस बारे में वस्तुस्थिति जानने का लगातार प्रयास किया लेकिन भातिसीपु अफसर इस बारे में मौन साधे हुए हैं ।

इसलिये मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक का कहना अपनी जगह ठीक ही माना जाना चाहिये कि लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल (अंतर्राष्ट्रीय सीमा) सुरक्षा बलों की देखरेख में है और राज्य सरकार को चीनी सेनिकों के अतिक्रमण के बारे में कोई सूचना नही है। अब जब विवाद बढ रहा है तो राज्य सरकार ने गंभीरता से दिल्ली से जारी सूचना के स्रोत के बारे में खोजबीन शुरू की है। याद करें, इस प्रकरण के कुछ ही दिन पहले एक प्रशासनिक दल बाराहोती जाते-जाते रास्ता खराब होने के कारण रूक गया था। प्रशासन चीन के इस क्षेत्र पर विवाद करने के करने के कारण अब साल में कम से कम दो बार वहां जाता है।
भातिसीपु भी वहां बिना अस्त्र और वर्दी ही गश्त करती है।

जानने योग्य है कि देहरादून से लगभग 140 किलोमीटर दूर 80 किलोमीटर लंबा यह क्षेत्र स्थानीय चरवाहों का पशुओं को चराने का परंपरागत क्षेत्र रहा है जहां पहले कभी कभार तिब्बत के याक भी चराने आ जाया करते थे । 1962 के बाद से चीनी सैनिक यदाकदा भारतीय नियंत्रण के इस क्षेत्र पर अपना दावा जताने को कभी भी धमक कर यहां इस नीयत से कूडा फेंक कर जाने लगे ताकि लगे कि यह क्षेत्र उनके नियंत्रण व गतिविधि का ही है। कभी-कभी वे अपने पोस्टर और चट्टानों पर नारे भी लिखकर जाने लगे हैं जिन्हे भातिसीपु हटा दिया करता है। इसके जवाब में भारतीय पक्ष उस कूडे को एकत्र कर नष्ट करता है और अपने निशान छोड कर आता है। असल में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, जो केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं, ने कल बाकायदा पत्रकार वार्ता में इस संवेदनशील विषय पर केंद्र व राज्य सरकारों की सूचनाओं में अंतर्विरोध पर अंगुली उठाई थी।

devbhoomimedia

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