चिपको आंदोलन की वर्षगांठ: पर्यावरण रक्षा की अमर गाथा

चिपको आंदोलन की वर्षगांठ: पर्यावरण रक्षा की अमर गाथा
देहरादून।
आज चिपको आंदोलन की वर्षगांठ है—एक ऐसा ऐतिहासिक दिन जिसने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पूरे विश्व को प्रेरित किया। 26 मार्च 1974 को उत्तराखंड के चमोली जिले के रैणी गाँव में महिलाओं ने गौरा देवी के नेतृत्व में पेड़ों की कटाई का विरोध किया और उन्हें बचाने के लिए अपने शरीर को वृक्षों से चिपका लिया। यह साहसिक कदम केवल एक विरोध नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति अटूट प्रेम और जिम्मेदारी का प्रतीक था।
चिपको आंदोलन ने न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में पर्यावरणीय चेतना को नई दिशा दी। इसने सरकारों को वनों की कटाई पर पुनर्विचार करने और टिकाऊ विकास की ओर बढ़ने के लिए मजबूर किया। आज भी यह आंदोलन हमें यह सिखाता है कि प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है और हमें इसे बचाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए।
इस ऐतिहासिक आंदोलन की मातृशक्ति को कोटि-कोटि नमन, जिन्होंने अपने अदम्य साहस से पर्यावरण रक्षा का संदेश दिया। चिपको आंदोलन हमेशा हमें प्रेरित करता रहेगा और आने वाली पीढ़ियों को भी पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाएगा।