डॉ. राजेन्द्र डोभाल
आज उत्तराखण्ड के बहुमूल्य उत्पादों की श्रृखंला में एक ऐसे वृक्ष का परिचय कराया जा रहा है जिसमें आमतौर पर हमारे पर्वतीय क्षेत्रों में सिर्फ सब्जी या अचार हेतु प्रयोग किया जाता है या फिर इसे चारे के रूप में खूब प्रयोग किया जाता है।
जंगलों में वृक्षों का राजा कहे जाने वाले उस वृक्ष को “Silent Doctor” भी कहा जाता है। भारतीय मूल का यह वृक्ष भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, जावा, सुमात्रा तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Bombax ceiba जो कि Bombacaceae कुल का वृक्ष है। समुद्र तल से 1500 मी0 ऊॅचाई तक पाये जाने वाले इस वृक्ष को सामान्यतः सेमल तथा इसके अलावा सिल्क कॉटन ट्री, रेड सिल्क कॉटन ट्री, इण्डियन कपोक ट्री, शाल्माली (संस्कृत), शीमुल (बंगाली), मुलिलाबु (मल्यालम) आदि नामों से भी जाना जाता है।
सेमल का वर्णन हिन्दु धर्म ग्रन्थों में भी देखा गया है। आयुर्वेद में सेमल को स्टिमुलेंट, एस्ट्रिजेंट, हिमोस्टेटिक, एफोडीयासिक, डाययूरेटिक, एंटीडायारियल तथा एंटीपायरेटिक बताया गया है। सेमल वृक्ष के फल, फूल, पत्तियॉ, जड़ तथा तना सभी को प्रयोग में लाया जाता है तथा अलग-अलग भाग विभिन्न औषधीयों हेतु प्रयोग में लाये जाते है। आयुर्वेद औषधीय क्षेत्र में प्रतिष्ठित ’हिमालया’ कम्पनी द्वारा इसको अपने विभिन्न औषधीय उत्पादों में प्रयुक्त किया जाता है जैसे कि Evecare, Tentex forte, Acne-n-Pimple Cream, Diarex.vet तथा Bleminor आदि।
इससे निकलने वाली रूई भी कपास का एक अच्छा विकल्प है जिस वजह से इसे ’कॉटन ट्री’ भी कहा जाता है। इसके फेब्रिक पर यू0एस0 पेटेंट भी किये गये है। यह कपास का एक अच्छा विकल्प होने के कारण वर्तमान में अमेरिकी देशों में इसका उत्पाद भी किया जाने लगा है। इसके एक टन रूई की कीमत 750 से 950 यू0एस0 डालर है जबकि कपास की कीमत लगभग 1,600 से 1,850 यू0एस0 डालर प्रति टन तक है।
वर्ष 2014 में नेचुरल प्रोडक्ट्स कम्युनिकेशनस जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार सेमल फूल के पेट्रोलियम तथा डाईइथाइल ईथर एक्सट्रेक्ट में अच्छी एंटी-प्रोलिफेरेटिव एक्टिविटी पायी गयी तथा साथ ही दोनों एक्सट्रेक्ट अच्छे एंटीऑक्सीडेंट पाये गये। विभिन्न प्रकाशित शोधपत्रों के अनुसार इसमें अनेकों एल्केलोइड्स, टेनिक्स, सेपोनिन्स, ग्लाइकोसाइड्स, स्टेरोइड्स, फ्लेवोनोइड्स तथा फीनॉल्स पाये जाते है। विभिन्न परम्परागत औषधीय गुणों के अलावा इसमें ब्लड प्यूरिफिकेशन, ल्यूकोरिहया उपचार तथा विभिन्न स्त्री रोगों को ठीक करने की भी क्षमता पायी गयी है।
सामान्यतः इसको सब्जी तथा अचार के रूप में प्रयोग किया जाता है लेकिन इसकी पोष्टिकता को देखते हुए इसे पशुचारे के रूप में भी अच्छा उपयोग में लाया जाता है। इसमें प्रोटीन-1.56 प्रतिशत, फाइबर-15.95 प्रतिशत, वसा-1.30 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट-6.80 प्रतिशत, कैल्शियम-2.85 प्रतिशत, मैग्नीशियम-3.65 प्रतिशत, पोटेशियम-1.05 प्रतिशत तथा फास्फोरस-0.8. प्रतिशत तक पाया जाता है।
सेमल के पोषक तथा औषधीय होने के साथ-साथ पर्यावरण की दृष्टि से काभी महत्वपूर्ण है, इसमें सल्फर डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की प्रबल क्षमता होती है जिस वजह से इसे रोड के किनारे तथा औद्योगिक क्षेत्रों में लगाया जाता है।
उत्तराखण्ड में स्वतः उगने वाले सेमल वृक्ष की उपयोगिताओं को देखते हुए इसके अधिक से अधिक रोपण की आवश्यकता है जिससे इसके फार्मा तथा फेब्रिक उद्योगों में कच्चे माल के रूप में होने वाली आवश्यकता को प्रदेश से पूरा किया जा सके तथा दुनिया पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने में प्रदेश का अहम योगदान दिया जा सके।
डॉ. राजेन्द्र डोभाल
महानिदेशक
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद
यूकॉस्ट।