अहमद पटेल की जीत कांग्रेस के लिए ‘संजीवनी बूटी’

आधे वोट से 10 घंटे का हाई-वोल्टेज ड्रामे के बाद जीते अहमद पटेल
नयी दिल्ली : गुजरात की तीन राज्यसभा सीटों के लिए मंगलवार को हुए मतदान के बाद साढ़े नौ घंटे चला हाई वोल्टेज ड्रामा कांग्रेस नेता अहमद पटेल की जीत पर खत्म हुआ। कांग्रेस के दो बागियों द्वारा भाजपा नेताओं को मतपत्र दिखाने के बाद जमकर बवाल मचा। मामला चुनाव आयोग तक पहुंचा। आयोग ने दोनों के वोट रद कर दिए। इसके साथ ही पटेल की जीत का रास्ता साफ हो गया। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी जीत गए हैं। शाह पहली बार संसद में पहुंचेंगे, जबकि पटेल 5वीं बार।
गुजरात में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए हुए चुनाव में बीजेपी ने दो सीटों पर कब्जा कर लिया। हालांकि यहां सबसे ज्यादा चर्चा तीसरी सीट पर कांग्रेस के ‘चाणक्य’ अहमद पटेल को मिली जीत की है।
राज्यसभा चुनाव की वोटिंग के बाद मंगलवार को करीब 10 घंटे के हाई-वोल्टेज ड्रामे के बाद नतीजे सामने आए, जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को 46-46 वोट मिले, वहीं अहमद पटेल ने 44 वोटों के साथ जीत दर्ज की। राज्य की 176 सदस्यीय विधानसभा में 2 कांग्रेसी विधायकों के वोट रद्द होने के बाद जीत का आंकड़ा 43।51 पहुंच गया। ऐसे में पटेल की जीत का अंतर भले ही मामूली दिखे, लेकिन राज्य की सियासत के हिसाब से देखें तो बड़े मायने रखती है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को हराने के लिए अमित शाह एंड कंपनी की तरफ से बेहद आक्रामक तैयारी दिखी। एक वक्त तो लगा कि अमित शाह ने मानो पटेल को हराने की ठान रखी है। वहीं कांग्रेस ने भी उन पर अपने विधायकों को डिगाने के लिए हर तरह के साम, दाम, दंड, भेद अपनाने के आरोप लगाए। ऐसे में चुनावी नतीजों के बाद एक बात तो साफ इन लड़ाई में कांग्रेस ही विजेता बनकर उभरी।
गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसी वजह से आम तौर पर बिना किसी शोर-शराबे के निपट जाने वाले राज्यसभा चुनाव में इस बार खूब हंगामा देखने को मिला था। यहां राजनीतिक जानकार अमित शाह की इन सारी कवायद को राज्य में चुनाव से पहले कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने की थी। हालांकि इस लड़ाई में कांग्रेस ही विजेता बनकर उभरी, जो उसके लिए संजीवनी जैसी है।
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि गुजरात के कद्दावर नेताओं में शंकरसिंह वाघेला ने राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का दामन छोड़ दिया। वाघेला की इस घोषणा के समय कांग्रेस ने इसे ज्यादा तरजीह न देते हुए कहा था कि उनके जाने से पार्टी को कोई खास नुकसान नहीं होगा। हालांकि इन चुनावों में कांग्रेस के अंदर मची फूट ने पार्टी को वाघेला कैंप की शक्ति का वक्त रहते एहसास करा दिया। ऐसे में पार्टी के पास इस नुकसान की भरपाई के लिए अब समय मिल जाएगा।
दरअसल कांग्रेस इस बार राज्य में पाटीदारों, दलितों और दूसरे पिछड़े तबकों के भीतर सरकार के प्रति असंतोष को भुनाते हुए बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेंकने की उम्मीद लगाए है। यहां राज्यसभा में अगर उसकी फजीहत होती, तो उसके लिए राज्य में उसके लिए विकल्प के रूप में लोगों का भरोसा जीतना थोड़ा मुश्किल हो जाता।
ऐसे में अब अहमद पटेल की इस जीत ने कांग्रेस के अंदर एक उम्मीद जरूर जगाई है, हालांकि पार्टी को गुजरात विधानसभा चुनाव में जीत के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं में इस उम्मीद को जगाने रखने और पूरी ऊर्जा से चुनाव में जुट जाने की जरूरत होगी।
तमाम तिकड़मों के बाद भी अहमद पटेल को नहीं रोक पाए अमित शाह
गुजरात विधानसभा चुनाव की एक सीट के लिए बीजेपी और कांग्रेस के बीच जो टक्कर देखने को मिली और जिस तरह से अंतिम समय तक सस्पेंस का माहौल बना रहा उसने कांटे की टक्कर वाले क्रिकेट मैचों के रोमांच को भी पीछे छोड़ दिया। हालांकि अपनी जिंदगी के सबसे कठिन चुनाव में जिस तरह अहमद पटेल ने जीत हासिल की, उसने बीजेपी खासकर अध्यक्ष अमित शाह की चाणक्य नीति को बड़ा झटका दिया है।
गुजरात में राज्यसभा चुनाव की तीन सीटों के लिए चुनाव होने थे। विधानसभा में जो संख्या बल है उसके हिसाब से दो सीटें बीजेपी तो एक सीट कांग्रेस के खाते में जानी तय थी। बीजेपी ने इन दो सीटों पर अमित शाह और स्मृति ईरानी को उम्मीदवार बनाया और कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव और गांधी परिवार के बाद पार्टी के सबसे कद्दावर चेहरे अहमद पटेल को उतारा गया। इन प्रत्याशियों की जीत तय मानी जा रही थी लेकिन गेम तब बदला जब शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस छोड़ दी। इसके बाद पार्टी के छह विधायक बागी होकर बीजेपी में चले गए। कांग्रेस ने संकट भांप लिया कि ये अहमद पटेल को दोबारा राज्यसभा न जाने देने की साजिश है वो आनन फानन में अपने 44 विधायकों को लेकर कर्नाटक चली गई।
मामले में दिलचस्प मोड़ तब आया जब कर्नाटक के जिस रिसॉर्ट में ये विधायक रुके हुए थे, उसपर आयकर विभाग ने छापा मार दिया। इस छापे की गूंज संसद तक में सुनाई दी। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी अहमद पटेल को हराने के लिए हर दांव चल रही है। पहले उसके विधायकों को खरीदा गया और अब आयकर छापों से उन्हें डराने की कोशिश की जा रही है। यही नहीं कर्नाटक में कांग्रेस के केवल 44 विधायक पहुंचे यानी पार्टी के 7 और विधायक बागी हो गए। कांग्रेस को जीत के लिए अब भी एक और विधायक की दरकार थी क्योंकि जीत का आंकड़ा 45 विधायकों का था। हालांकि दो बागी कांग्रेसियों के वोट रद्द होने से अहमद पटेल की जीत के लिए 44 वोट ही पर्याप्त थे।
JDU-NCP विधायक बने गेम चेंजर
इन सबके बीच एक और बड़ी उठापटक बिहार में भी हुई। वहां महागठबंधन टूट गया और नीतीश कुमार लालू यादव का साथ छोड़कर बीजेपी के साथी बन गए। बीजेपी को इसका फायदा गुजरात में भी दिखा क्योंकि गुजरात में जेडीयू से भी एक विधायक छोटू बसावा हैं। बीजेपी आश्वस्त थी कि छोटू बसावा का वोट उसे ही मिलेगा। पार्टी ने भी उसे आश्वस्त किया था लेकिन छोटू बसावा ने कहा कि उन्होंने अहमद पटेल को वोट दिया है।
यही नहीं, गुजरात की विधानसभा में एनसीपी के भी दो वोट हैं। बीजेपी और कांग्रेस दोनों की ही इन वोटों पर नजर थी। दोनों में से जिसके खाते में ये वोट जाते उसकी जीत तकरीबन तय थी लेकिन एनसीपी के दोनों विधायकों ने अलग-अलग पार्टियों को वोट दिया। यानी एनसीपी का एक वोट कांग्रेस को और दूसरा वोट बीजेपी को मिला। यानी यहां बीजेपी एनसीपी को दोनों वोट पाने में विफल रही और अहमद पटेल की जीत तय हो गई।
गुजरात में महज बीजेपी-कांग्रेस नहीं था मुकाबला
गुजरात के इन राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने जो बिसात बिछाई उससे साफ हो गया था कि ये मुकाबला महज दो पार्टियों का मुकाबला नहीं होने जा रहा बल्कि इसके पीछे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस नेता अहमद पटेल की व्यक्तिगत अदावत भी है। पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम को देखा जाए तो ये साफ है कि अहमद पटेल को हराने के लिए बीजेपी ने हर संभव कोशिश की। यहां तक कि अंतिम समय में जब मामला चुनाव आयोग पहुंचा तो बीजेपी ने अपने छह-छह केंद्रीय मंत्री आयोग भेज दिए। वो भी एक बार नहीं बल्कि तीन घंटे में तीन बार। लेकिन इसके बावजूद फैसला पटेल के पक्ष में गया और अमित शाह को अपने हाल के दिनों की सबसे बड़ी सियासी शिकस्त अपने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से खानी पड़ी।