आख़िर मोदी के नाम से कांग्रेस को क्यों लगने लगता है डर
कांग्रेस के पास उत्तराखंड में हरीश रावत के अलावा कोई ऐसा चेहरा नहीं
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
कांग्रेस व भाजपा में है अंतर,वहां ऊपर से नीचे तय होता है और कांग्रेस में नीचे से होती है बहस
गुरुवार को अपने आवास पर मीडिया से बातचीत में हरीश रावत ने कहा कि पार्टी चुनाव में स्थानीय चेहरा लाएगी तो उसकी तुलना भाजपा को भी स्थानीय चेहरा घोषित करना होगा। फिर जनता दोनों की तुलना करेगी। पार्टियों की तुलना भी आ जाएगी। ऐसे में मोदी जी हर राज्य में केवल गेस्ट आर्टिस्ट के रूप में नजर आएंगे और अपनी बात कहकर चले जाएंगे।
पार्टी किसी को भी सीएम उम्मीदवार घोषित कर दे। कोई भी नाम होगा उसके पीछे वह खड़ा रहेंगे। कांग्रेस संगठन में गुटबाजी मामले में उन्होंने कहा कि ये मुद्दा नहीं है। घर में कोई खुश ओर कोई नाखुश रहता है। इस पर बहस की जरूरत नहीं है। सब साथी हैं। एकजुट होकर काम किया है। कोई नाखुश है, उसे संभालना पड़ेगा। जहां संभव होगा, वह सबको खुश करेंगे।
हरीश रावत ने कहा कि चेहरा घोषित करने की परंपरा कांग्रेस की स्थापित की हुई हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि शीला दीक्षित को चेहरा घोषित किया तो दिल्ली में तीसरे नंबर की पार्टी के रूप में रही कांग्रेस लोकसभा चुनाव में संघर्ष की स्थिति में आ गई। उन्होंने कुछ अजूबा नहीं कहा है। पार्टी में गलती करते हैं तो सुधारा भी जाता है। समझाया जाता है। कांग्रेस व भाजपा में अंतर है। वहां ऊपर से नीचे तय होता है। कांग्रेस में नीचे से बहस होती है। मतभेद भी होते हैं। बाद में हाईकमान निर्णय करता है। इतने साल में रणनीतिक तौर पर सीखा है। इसलिए तो उन्होंने चेहरा घोषित करने पर जोर दिया है।
देहरादून। कांग्रेस के नेताओं को प्रधानमंत्री मोदी के नाम का सहारा क्यों लेना पड़ रहा है जबकि न तो मोदी उनकी पार्टी के नेता हैं और न ही वे विधानसभा चुनाव लड़ने उत्तराखंड ही आ रहे हैं। यह बात तब सामने आई जब कांग्रेस के खांटी नेता हरीश रावत ने प्रधानमंत्री मोदी के नाम का सहारा लेकर बयान दिया कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मुख्यमंत्री को चेहरा घोषित करना चाहिए। जबकि इसके जवाब में भाजपा को भी स्थानीय स्तर पर चेहरा लाने की उन्होंने बात कही। हालांकि साथ ही उन्होंने यह भी कहा तब जनता दोनों नेताओं की तुलना कर फैसला लेगी। उनका मोदी के नाम से भय तब सामने आया जब उन्होंने कहा चाहे स्थानीय निकाय हों या फिर विधानसभा के चुनाव, हर बार राज्य में चुनाव मोदी बनाम अन्य हो रहे हैं। ऐसे में इसका लाभ हमें नहीं मिल रहा है। यानि मोदी के नाम के सामने आते ही कांग्रेस की क्या घिग्घी बंध जाती है , इससे से यह ही सन्देश जाता है।
गौरतलब हो कि उत्तराखंड में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव होने हैं। हरीश रावत चुनाव में पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के लिए अपनी पार्टी पर बार-बार जोर दे रहे हैं। वैसे उनका कहना भी ठीक लगता है कि कांग्रेस जिसे भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करेगी वे उसके पीछे खड़े होंगे। लेकिन साथ ही वे कांग्रेस आला कमान पर अपना दांव भी चल रहे हैं और यह कहीं न कहीं सत्य भी है कि कांग्रेस के पास उत्तराखंड में हरीश रावत के अलावा कोई ऐसा चेहरा नहीं जो कांग्रेस को वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में चुनावी वैतरणी पार करवा सकता है।
लेकिन कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव उनकी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते लगते हैं वे कुछ दिन पहले उत्तराखंड दौरे में दूसरी बार दोहरा चुके हैं कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़े जाएंगे। इतना ही नहीं उन्होंने यहाँ तक कहा कि चेहरा घोषित करने वाली मांग को उन्होंने हरीश रावत के निजी विचार बता डाले। इतना ही नहीं उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं है।
ऐसे में अब प्रभारी की राय से इतर हरीश रावत ने एक बार फिर सार्वजनिक तौर पर उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर अपनी मांग दोहरा कर पार्टी हाईकमान को दबाव में लाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन वहीँ दूसरी तरफ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के पास हालांकि उत्तराखंड में हरीश रावत के अलावा कोई भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसे वह मुख्यमंत्री के रूप में आगे रख सके। उनका कहना है प्रदेश कांग्रेस में अभी तक जितने भी चेहरे कांग्रेस में नज़र आ रहे हैं उनमें से अधिकांश ने कभी भी अपनी विधानसभा से बाहर कदम नहीं रखा ऐसे में वे क्या प्रदेश की राजनीती करने के लिए उपयुक्त कहे जा सकते हैं।
[videopress jh8XIXaX]